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सीतापुर: शारदीय नवरात्र के पहले दिन ललिता देवी शक्तिपीठ पर उमड़े श्रद्धालु - lalita devi shaktipeeth

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित ललिता देवी शक्तिपीठ में शारदीय नवरात्रि के पहले दिन भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. यहां उन्होंने पूजा-अर्चना की और विश्व कल्याण की कामना भी की.

ललिता देवी शक्तिपीठ
ललिता देवी शक्तिपीठ
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Published : Oct 17, 2020, 7:48 PM IST

सीतापुर: शारदीय नवरात्र के पहले दिन 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य में स्थित मां ललिता देवी मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन किया. यहां पर कोविड-19 की गाइडलाइंस का पालन करते हुए श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश और पूजा-अर्चना करने की व्यवस्था की गई थी. श्रद्धालुओं ने नवरात्र के पावन अवसर पर देवी मां के दर्शन कर देश और समाज के कल्याण के लिए प्रार्थना की.

पहले दिन उमड़े श्रद्धालु.

नैमिषारण्य को सतयुग का तीर्थ माना गया है. यहीं पर हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथों, चार वेद, छह शास्त्र और 18 पुराणों की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी. इसी नैमिषारण्य तीर्थ का सबसे प्रमुख और प्राचीन धार्मिक स्थल है ललिता देवी मंदिर. इस मंदिर की शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि एक बार ऋषियों ने दानवों के आतंक से पीड़ित होकर ब्रम्हा जी से अपनी साधना पूरी करने के लिए किसी सुरक्षित स्थान की अपेक्षा की थी. उनके आग्रह पर ब्रम्हा जी ने अपना ब्रम्ह मनोमय चक्र छोड़कर उनसे कहा कि जिस अरण्य क्षेत्र में यह चक्र गिरेगा वही क्षेत्र आपकी साधना के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा.

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श्रद्धालुओं ने की पूजा-अर्चना.

मान्यता है कि जब यह चक्र नैमिषारण्य में गिरकर धरती का भेदन करने लगा तो साढ़े छह पाताल तोड़ने के बाद पृथ्वी जलमग्न होने लगी, जिस पर सभी लोग फिर ब्रम्हा जी के पास गए और उनसे इस प्रलय को रोकने का अनुरोध किया. इसके बाद ब्रम्हा जी ने सभी को शिव जी के पास भेज दिया. शिव जी ने उन्हें बताया कि नैमिषारण्य में ललिता नाम की कन्या तपस्या कर रही है, वही इस चक्र की नेमि को रोक सकती है. इसके बाद सभी ने ललिता शक्ति की स्तुति की और उन्होंने ही चक्र की नेमि को रोककर पृथ्वी को प्रलय से बचाया.

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कतार में लगे श्रद्धालु.

एक मान्यता यह भी है कि हवन कुंड में सती जी के कूदकर आत्मदाह करने के बाद उनके शव को अपने कांधे में लेकर भगवान शिव क्रोध में इधर-उधर घूमने लगे थे. जिससे सृष्टि का संचालन रुक गया था. इसके बाद भगवान विष्णु ने सती जी के शव के टुकड़े कर दिये थे. सती जी के शरीर का भाग जिस-जिस स्थान पर गिरा उससे शक्ति पीठ की स्थापना हुई. मान्यता है कि इस स्थान पर सती जी का हृदय भाग गिरा था, जिससे इस पीठ की स्थापना हुई और इस शक्तिपीठ का नाम ललिता देवी पड़ा.

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ललिता देवी मंदिर

इस मंदिर की मान्यता के बारे में मंदिर के आचार्य शानू शास्त्री ने विस्तार से जानकारी दी और मंदिर के प्राचीन और पौराणिक महत्व पर प्रकाश डाला. वहीं दूसरी ओर श्रद्धालुओं ने भी इस बात को स्वीकार किया कि यहां भक्तिभाव के साथ मांगी गयी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

सीतापुर: शारदीय नवरात्र के पहले दिन 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य में स्थित मां ललिता देवी मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन किया. यहां पर कोविड-19 की गाइडलाइंस का पालन करते हुए श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश और पूजा-अर्चना करने की व्यवस्था की गई थी. श्रद्धालुओं ने नवरात्र के पावन अवसर पर देवी मां के दर्शन कर देश और समाज के कल्याण के लिए प्रार्थना की.

पहले दिन उमड़े श्रद्धालु.

नैमिषारण्य को सतयुग का तीर्थ माना गया है. यहीं पर हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथों, चार वेद, छह शास्त्र और 18 पुराणों की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी. इसी नैमिषारण्य तीर्थ का सबसे प्रमुख और प्राचीन धार्मिक स्थल है ललिता देवी मंदिर. इस मंदिर की शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि एक बार ऋषियों ने दानवों के आतंक से पीड़ित होकर ब्रम्हा जी से अपनी साधना पूरी करने के लिए किसी सुरक्षित स्थान की अपेक्षा की थी. उनके आग्रह पर ब्रम्हा जी ने अपना ब्रम्ह मनोमय चक्र छोड़कर उनसे कहा कि जिस अरण्य क्षेत्र में यह चक्र गिरेगा वही क्षेत्र आपकी साधना के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा.

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श्रद्धालुओं ने की पूजा-अर्चना.

मान्यता है कि जब यह चक्र नैमिषारण्य में गिरकर धरती का भेदन करने लगा तो साढ़े छह पाताल तोड़ने के बाद पृथ्वी जलमग्न होने लगी, जिस पर सभी लोग फिर ब्रम्हा जी के पास गए और उनसे इस प्रलय को रोकने का अनुरोध किया. इसके बाद ब्रम्हा जी ने सभी को शिव जी के पास भेज दिया. शिव जी ने उन्हें बताया कि नैमिषारण्य में ललिता नाम की कन्या तपस्या कर रही है, वही इस चक्र की नेमि को रोक सकती है. इसके बाद सभी ने ललिता शक्ति की स्तुति की और उन्होंने ही चक्र की नेमि को रोककर पृथ्वी को प्रलय से बचाया.

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कतार में लगे श्रद्धालु.

एक मान्यता यह भी है कि हवन कुंड में सती जी के कूदकर आत्मदाह करने के बाद उनके शव को अपने कांधे में लेकर भगवान शिव क्रोध में इधर-उधर घूमने लगे थे. जिससे सृष्टि का संचालन रुक गया था. इसके बाद भगवान विष्णु ने सती जी के शव के टुकड़े कर दिये थे. सती जी के शरीर का भाग जिस-जिस स्थान पर गिरा उससे शक्ति पीठ की स्थापना हुई. मान्यता है कि इस स्थान पर सती जी का हृदय भाग गिरा था, जिससे इस पीठ की स्थापना हुई और इस शक्तिपीठ का नाम ललिता देवी पड़ा.

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ललिता देवी मंदिर

इस मंदिर की मान्यता के बारे में मंदिर के आचार्य शानू शास्त्री ने विस्तार से जानकारी दी और मंदिर के प्राचीन और पौराणिक महत्व पर प्रकाश डाला. वहीं दूसरी ओर श्रद्धालुओं ने भी इस बात को स्वीकार किया कि यहां भक्तिभाव के साथ मांगी गयी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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