ETV Bharat / state

सीतापुर: कर्बला में दफन हुआ 52 डंडे का ताजिया, कौमी एकता की है मिसाल

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में मुगल शासनकाल में अवध की राजधानी रहा कस्बा खैराबाद का मशहूर 52 डंडे का ताजिया बुधवार को कर्बला के दहल में सुपुर्दे खाक किया गया. इस ताजिये का अपना खास इतिहास है. जिसके चलते इसे कौमी एकता की बड़ी मिसाल माना जाता है.

कर्बला में दफन हुआ 52 डंडे का ताजिया.
author img

By

Published : Sep 12, 2019, 9:12 AM IST

सीतापुर: मुगल शासनकाल में अवध की राजधानी रहा कस्बा खैराबाद का मशहूर 52 डंडे का ताजिया बुधवार को कर्बला के दहल में सुपुर्दे खाक किया गया. इस खास मौके पर हिन्दू-मुसलमान दोनों धर्मो के लाखों अकीदतमंदों ने हजरत इमाम हुसैन की शहादत को सलाम करते हुए अपनी मनौतियां भी मांगी. इस ताजिये का अपना खास इतिहास है. जिसके चलते इसे कौमी एकता की बड़ी मिसाल माना जाता है.

कर्बला में दफन हुआ 52 डंडे का ताजिया.

ग्यारहवीं तारीख को किया जाता है दफन
यूं तो हर जगह मोहर्रम माह की दसवीं तारीख को कर्बला में ताजिये दफन किये जाते हैं. लेकिन खैराबाद कस्बे के इस ऐतिहासिक ताजिये को ग्यारहवीं तारीख को दफन किया जाता है. यह ताजिया मुहर्रम की दसवीं तारीख को कस्बे के रौजा दरवाजा स्थित हजरत यूसुफ खान की दरगाह से उठाया जाता है. उसके बाद पूरे कस्बे में गश्त करने के बाद ग्यारहवीं मोहर्रम को कर्बला में पहुंचता है. यहां पर एक दहल तैयार किया जाता है. जिसमें अकीदतमंद दूध, बताशे और अगरबत्ती आदि लगाकर जियारत करते हैं. बाद में उसी दहल में ताजिये को सुपुर्दे खाक किया जाता है.

यह भी पढ़ें: इराक: अशूरा के दौरान मची भगदड़, 31 से अधिक लोगों की मौत

सभी धर्मों के लोग होते हैं शामिल
इस ताजिये का पुराना और अहम इतिहास है. कस्बे के एक बुजुर्ग ने खैराबाद कस्बे के सभी 52 मोहल्लों से एक एक डंडा इकठ्ठा कर 52 डंडे का ताजिया तैयार किया था. इस ताजिये का मकसद कस्बे में कौमी एकता को मजबूत करना था. जिसकी बड़ी मिसाल आज भी परंपरागत तरीके से देखने को मिलती है. इस ताजियेदारी मे सभी धर्मों के लाखों लोग पूरी अकीदत के साथ शामिल होते हैं. खास बात यह भी है कि लोग इस खास ताजिये पर फूल और तबर्रुख आदि पेश करके अपनी मनौतियां भी मांगते हैं. उसे पूरी होने के बाद अगले साल यहां आकर फिर फूल और तबर्रुख पेश करते हैं. ताजियेदारी का यह सिलसिला हजरत इमाम हुसैन की शहादत की यादगार में मनाया जाता है.

यह भी पढ़ें: शिवपाल बने पीड़ित परिवार के लिए मसीहा

हजरत इमाम हुसैन की याद में ताजिया निकाला जाता है. जिसे 10 तारिख की जगह 11 तारिख को दफन किया जाता है. बूढ़े बाबा के नाम से जाना जाता है.
कारी इस्लाम, अकीदतमंद

52 मौहल्लों के नाम से एक डंडा बांधा जाता था. जिसके चलते इसे 52 डंडे का ताजिया नाम दिया गया
जलीस बेग, स्थानीय

सीतापुर: मुगल शासनकाल में अवध की राजधानी रहा कस्बा खैराबाद का मशहूर 52 डंडे का ताजिया बुधवार को कर्बला के दहल में सुपुर्दे खाक किया गया. इस खास मौके पर हिन्दू-मुसलमान दोनों धर्मो के लाखों अकीदतमंदों ने हजरत इमाम हुसैन की शहादत को सलाम करते हुए अपनी मनौतियां भी मांगी. इस ताजिये का अपना खास इतिहास है. जिसके चलते इसे कौमी एकता की बड़ी मिसाल माना जाता है.

कर्बला में दफन हुआ 52 डंडे का ताजिया.

ग्यारहवीं तारीख को किया जाता है दफन
यूं तो हर जगह मोहर्रम माह की दसवीं तारीख को कर्बला में ताजिये दफन किये जाते हैं. लेकिन खैराबाद कस्बे के इस ऐतिहासिक ताजिये को ग्यारहवीं तारीख को दफन किया जाता है. यह ताजिया मुहर्रम की दसवीं तारीख को कस्बे के रौजा दरवाजा स्थित हजरत यूसुफ खान की दरगाह से उठाया जाता है. उसके बाद पूरे कस्बे में गश्त करने के बाद ग्यारहवीं मोहर्रम को कर्बला में पहुंचता है. यहां पर एक दहल तैयार किया जाता है. जिसमें अकीदतमंद दूध, बताशे और अगरबत्ती आदि लगाकर जियारत करते हैं. बाद में उसी दहल में ताजिये को सुपुर्दे खाक किया जाता है.

यह भी पढ़ें: इराक: अशूरा के दौरान मची भगदड़, 31 से अधिक लोगों की मौत

सभी धर्मों के लोग होते हैं शामिल
इस ताजिये का पुराना और अहम इतिहास है. कस्बे के एक बुजुर्ग ने खैराबाद कस्बे के सभी 52 मोहल्लों से एक एक डंडा इकठ्ठा कर 52 डंडे का ताजिया तैयार किया था. इस ताजिये का मकसद कस्बे में कौमी एकता को मजबूत करना था. जिसकी बड़ी मिसाल आज भी परंपरागत तरीके से देखने को मिलती है. इस ताजियेदारी मे सभी धर्मों के लाखों लोग पूरी अकीदत के साथ शामिल होते हैं. खास बात यह भी है कि लोग इस खास ताजिये पर फूल और तबर्रुख आदि पेश करके अपनी मनौतियां भी मांगते हैं. उसे पूरी होने के बाद अगले साल यहां आकर फिर फूल और तबर्रुख पेश करते हैं. ताजियेदारी का यह सिलसिला हजरत इमाम हुसैन की शहादत की यादगार में मनाया जाता है.

यह भी पढ़ें: शिवपाल बने पीड़ित परिवार के लिए मसीहा

हजरत इमाम हुसैन की याद में ताजिया निकाला जाता है. जिसे 10 तारिख की जगह 11 तारिख को दफन किया जाता है. बूढ़े बाबा के नाम से जाना जाता है.
कारी इस्लाम, अकीदतमंद

52 मौहल्लों के नाम से एक डंडा बांधा जाता था. जिसके चलते इसे 52 डंडे का ताजिया नाम दिया गया
जलीस बेग, स्थानीय

Intro:सीतापुर:मुगल शासनकाल में अवध की राजधानी रहा कस्बा खैराबाद का मशहूर 52 डंडे का ताज़िया बुधवार को कर्बला के दहल में सुपुर्दे खाक किया गया. इस ताज़िये का अपना खास इतिहास है जिसके चलते इसे कौमी एकता की बड़ी मिसाल माना जाता है.इस खास मौके पर हिन्दू-मुसलमान दोनों धर्मो के लाखों अकीदतमंदों ने हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को सलाम करते हुए अपनी मनौतियां भी मांगी.


Body:यूं तो हर जगह मोहर्रम माह की दसवीं तारीख को कर्बला में ताज़िये दफन किये जाते हैं लेकिन खैराबाद कस्बे के इस ऐतिहासिक ताज़िये को ग्यारहवीं तारीख को दफन किया जाता है. यह ताज़िया मुहर्रम की दसवीं तारीख को कस्बे के रौज़ा दरवाजा स्थित हज़रत यूसुफ खान की दरगाह से उठाया जाता है उसके बाद पूरे कस्बे में गश्त करने के बाद ग्यारहवीं मोहर्रम को कर्बला में पहुंचता है. यहां पर एक दहल तैयार किया जाता है जिसमे अकीदतमंद दूध, बताशे और अगरबत्ती आदि लगाकर जियारत करते हैं और बाद में उसी दहल में ताज़िये को सुपुर्दे खाक किया जाता है.


Conclusion:इस ताज़िये का पुराना और अहम इतिहास है.कस्बे के एक बुजुर्ग ने खैराबाद कस्बे के सभी 52 मोहल्लों से एक एक डंडा इकठ्ठा कर 52 डंडे का ताज़िया तैयार किया था.इस ताज़िये का मकसद कस्बे में कौमी एकता को मज़बूत करना था जिसकी बडी मिसाल आज भी परंपरागत तरीके से देखने को मिलती है. इस ताजियेदारी मे सभी धर्मों के लाखो लोग पूरी अक़ीदत के साथ शामिल होते हैं.खास बात यह भी है कि लोग इस खास ताज़िये पर फूल और तबर्रुख आदि पेश करके अपनी मनौतियां भी मांगते हैं और उसे पूरी होने के बाद अगले साल यहां आकर फिर फूल और तबर्रुख पेश करते हैं. ताजियेदारी का यह सिलसिला हज़रत इमाम हुसैन की शहादत की यादगार में मनाया जाता है.

बाइट-कारी इस्लाम ( अकीदतमंद)
बाइट-जलीस बेग (स्थानीय निवासी)
बाइट-शहान बेग (अकीदतमंद)
पीटीसी-नीरज श्रीवास्तव

सीतापुर से नीरज श्रीवास्तव की स्पेशल रिपोर्ट,9415084887
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.