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सीतापुर की संकटा देवी मंदिर में भक्तों के मिलती है हर संकट से मुक्ति - महमूदाबाद में संकटा देवी का मंदिर

सीतापुर में मां संकटा देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है. मंदिर के गर्भग्रह परिक्रमा मार्ग में भगवान राम, हनुमान, आदिदेव शंकर और राधाकृष्ण के मंदिर हैं. यहां विधि विधान से पूजा पाठ करने वाले लोग अपने कष्टों का निवारण पाते हैं.

ancient temple of maa sankata devi
मां संकटा देवी
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Published : Oct 25, 2020, 10:34 AM IST

सीतापुर: जिले के महमूदाबाद कस्बे में नगर के मुख्य मार्ग पर मां संकटा देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है. मुख्य मार्ग से गुजरने वाले राहगीरों को इस मंदिर की भव्य छटा आकर्षित करती है, क्योंकि मंदिर के बाहरी तीन द्वारों में से मध्य द्वार पर महाभारत के दौरान अर्जुन को गीता का संदेश देते भगवान कृष्ण की झांकी है. इसके दोनों ओर बने द्वारों पर राष्ट्रीय चिन्ह बने हुए हैं. मां संकटा देवी मंदिर पर प्रत्येक शुक्रवार और सोमवार के साथ पूर्णमासी, वासंतिक और शारदीय नवरात्र के साथ कुल मिलाकर पूरे वर्ष में करीब 144 दिन मेला लगता है.

संकटा देवी मंदिर के गर्भग्रह परिक्रमा मार्ग में भगवान राम, हनुमान, आदिदेव शंकर और राधाकृष्ण के मंदिर हैं. इसी के साथ मातारानी के सम्मुख भगवान विष्णु मंदिर और यज्ञशाला के साथ गगनचुंबी बद्री विशाल, जगन्नाथ, अन्नपूर्णा, संतोषी माता, काली माता, भैरव नाथ, बजरंगबली, द्वारिकाधीश के भव्य मंदिरों के साथ सरोवर में आदिदेव भगवान शंकर की आदमकद रौद्ररूपी प्रतिमा विराजमान है.

गाइडलाइंस का करना होगा पालन
वर्तमान समय में मंदिर को भव्य स्वरूप प्रदान करने के लिए प्रबंध समिति अध्यक्ष आर.के.वाजपेयी और उनके सहयोगी सतत प्रयत्नशील हैं. समिति ने अभी कुछ दिन पूर्व ही मंदिर के गर्भग्रह को रजत जड़ित कराया है. मंदिर परिसर में साईंनाथ और शनि देव के मंदिरों का निर्माण कार्य प्रगति पर है. समिति कोविड-19 के तहत गाइडलाइंस का पालन कराती है. कोविड-19 को लेकर इस बार समिति ने बासांतिक नवरात्र पर लगने वाला 15 दिवसीय वार्षिक मेला स्थगित रखा गया था और इस शारदीय नवरात्र में भी नई गाइड लाइन आने के बाद मंदिर में बहुत कम दर्शनार्थियों को प्रवेश दिया जा रहा है.

देवी भगवती का कैसे नाम पड़ा संकटा मइया
संकटों का नाश करने वाली देवी मां भगवती का नाम संकटा मइया कैसे पड़ा ? यह किसी को आधिकारिक तौर पर तो पता नहीं है, लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि स्थानीय श्री संकटा देवी मंदिर की स्थापना भर्र राजपूतों द्वारा करायी गई थी. कहा जाता है कि राजपूतों ने अपनी कुल देवी पाटन (पाटेश्वरी) के अंश को लाकर यहां स्थापना की थी और राजपूत किसी भी संकट के समय देवी की विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना किया करते थे. मंदिर परिसर में प्रवेश करने के तीन द्वारों में से मुख्य द्वार के ऊपर महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए भगवान श्री कृष्ण का भव्य गीता रथ दूर से ही भक्तों को आकर्षित करता है. मंदिर के दाहिनी ओर के विशाल सरोवर के अन्दर होलीराम राठौर द्वारा बनवाए गए रामेश्वर मंदिर में रौद्र रूप में स्थापित भगवान शिव की प्रतिमा की छटा देखते ही बनती है.


क्या कहते हैं प्रबंध समिति के अध्यक्ष
मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष आर.के.वाजपेयी ने बताया कि आजादी के पूर्व तक संकटा देवी मइया का दरबार एक छोटी मठिया के स्वरूप में था. आजादी के बाद भक्तों द्वारा मंदिर के विकास में निरंतर कराये जा रहे निर्माण के चलते मंदिर का स्वरूप पहले की अपेक्षा काफी भव्य हुआ है. गर्भगृह को रजत जड़ित बनाने के साथ भक्तों की सुविधा के लिए भारी बदलाव व सौंदर्यीकरण का कार्य बीते कई वर्षों से लगातार चल रहा है. मंदिर में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों, कवि सम्मेलन का लोग आनन्द लेते हैं. शानदार अतिशबाजी के साथ पन्द्रह दिवसीय वार्षिक मेले का समापन होता है जो इस साल कोरोना को लेकर स्थगित रहा.

क्या कहते हैं मंदिर के मुख्य पुजारी
संकटा देवी मंदिर के मुख्य पुजारी पं.पुरुषोत्तम शुक्ल ने बताया कि प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार, पूर्णमासी, शारदीय नवरात्र, विजयादशमी, बासंतिक नवरात्र, शिवरात्रि, रामनवमी के अवसर पर बड़ा मेला लगता है. जिन लोंगो की संकटा योगिनी दशा चल रही होती है वे यहां विधि विधान से पूजा पाठ करके अपने कष्टों का निवारण पाते हैं. बड़ी संख्या में यहां लोग सत्य नारायण की कथा सुनते हैं और हजारों की संख्या में बच्चों के मुंडन, अन्नप्रासन व वर-वधू के सम्बंधों की शुरूआत होती है.

सीतापुर: जिले के महमूदाबाद कस्बे में नगर के मुख्य मार्ग पर मां संकटा देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है. मुख्य मार्ग से गुजरने वाले राहगीरों को इस मंदिर की भव्य छटा आकर्षित करती है, क्योंकि मंदिर के बाहरी तीन द्वारों में से मध्य द्वार पर महाभारत के दौरान अर्जुन को गीता का संदेश देते भगवान कृष्ण की झांकी है. इसके दोनों ओर बने द्वारों पर राष्ट्रीय चिन्ह बने हुए हैं. मां संकटा देवी मंदिर पर प्रत्येक शुक्रवार और सोमवार के साथ पूर्णमासी, वासंतिक और शारदीय नवरात्र के साथ कुल मिलाकर पूरे वर्ष में करीब 144 दिन मेला लगता है.

संकटा देवी मंदिर के गर्भग्रह परिक्रमा मार्ग में भगवान राम, हनुमान, आदिदेव शंकर और राधाकृष्ण के मंदिर हैं. इसी के साथ मातारानी के सम्मुख भगवान विष्णु मंदिर और यज्ञशाला के साथ गगनचुंबी बद्री विशाल, जगन्नाथ, अन्नपूर्णा, संतोषी माता, काली माता, भैरव नाथ, बजरंगबली, द्वारिकाधीश के भव्य मंदिरों के साथ सरोवर में आदिदेव भगवान शंकर की आदमकद रौद्ररूपी प्रतिमा विराजमान है.

गाइडलाइंस का करना होगा पालन
वर्तमान समय में मंदिर को भव्य स्वरूप प्रदान करने के लिए प्रबंध समिति अध्यक्ष आर.के.वाजपेयी और उनके सहयोगी सतत प्रयत्नशील हैं. समिति ने अभी कुछ दिन पूर्व ही मंदिर के गर्भग्रह को रजत जड़ित कराया है. मंदिर परिसर में साईंनाथ और शनि देव के मंदिरों का निर्माण कार्य प्रगति पर है. समिति कोविड-19 के तहत गाइडलाइंस का पालन कराती है. कोविड-19 को लेकर इस बार समिति ने बासांतिक नवरात्र पर लगने वाला 15 दिवसीय वार्षिक मेला स्थगित रखा गया था और इस शारदीय नवरात्र में भी नई गाइड लाइन आने के बाद मंदिर में बहुत कम दर्शनार्थियों को प्रवेश दिया जा रहा है.

देवी भगवती का कैसे नाम पड़ा संकटा मइया
संकटों का नाश करने वाली देवी मां भगवती का नाम संकटा मइया कैसे पड़ा ? यह किसी को आधिकारिक तौर पर तो पता नहीं है, लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि स्थानीय श्री संकटा देवी मंदिर की स्थापना भर्र राजपूतों द्वारा करायी गई थी. कहा जाता है कि राजपूतों ने अपनी कुल देवी पाटन (पाटेश्वरी) के अंश को लाकर यहां स्थापना की थी और राजपूत किसी भी संकट के समय देवी की विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना किया करते थे. मंदिर परिसर में प्रवेश करने के तीन द्वारों में से मुख्य द्वार के ऊपर महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए भगवान श्री कृष्ण का भव्य गीता रथ दूर से ही भक्तों को आकर्षित करता है. मंदिर के दाहिनी ओर के विशाल सरोवर के अन्दर होलीराम राठौर द्वारा बनवाए गए रामेश्वर मंदिर में रौद्र रूप में स्थापित भगवान शिव की प्रतिमा की छटा देखते ही बनती है.


क्या कहते हैं प्रबंध समिति के अध्यक्ष
मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष आर.के.वाजपेयी ने बताया कि आजादी के पूर्व तक संकटा देवी मइया का दरबार एक छोटी मठिया के स्वरूप में था. आजादी के बाद भक्तों द्वारा मंदिर के विकास में निरंतर कराये जा रहे निर्माण के चलते मंदिर का स्वरूप पहले की अपेक्षा काफी भव्य हुआ है. गर्भगृह को रजत जड़ित बनाने के साथ भक्तों की सुविधा के लिए भारी बदलाव व सौंदर्यीकरण का कार्य बीते कई वर्षों से लगातार चल रहा है. मंदिर में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों, कवि सम्मेलन का लोग आनन्द लेते हैं. शानदार अतिशबाजी के साथ पन्द्रह दिवसीय वार्षिक मेले का समापन होता है जो इस साल कोरोना को लेकर स्थगित रहा.

क्या कहते हैं मंदिर के मुख्य पुजारी
संकटा देवी मंदिर के मुख्य पुजारी पं.पुरुषोत्तम शुक्ल ने बताया कि प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार, पूर्णमासी, शारदीय नवरात्र, विजयादशमी, बासंतिक नवरात्र, शिवरात्रि, रामनवमी के अवसर पर बड़ा मेला लगता है. जिन लोंगो की संकटा योगिनी दशा चल रही होती है वे यहां विधि विधान से पूजा पाठ करके अपने कष्टों का निवारण पाते हैं. बड़ी संख्या में यहां लोग सत्य नारायण की कथा सुनते हैं और हजारों की संख्या में बच्चों के मुंडन, अन्नप्रासन व वर-वधू के सम्बंधों की शुरूआत होती है.

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