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सीतापुर: कृषि अवशेषों के जरिये तैयार किया जा रहा उन्नत ईंधन, ग्रामीणों को मिलेगा लाभ

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में खाना बनाने के लिए महिलाओं को अब धुआं रहित ईंधन मिल सकेगा. इसको लेकर कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया ने समूह की महिलाओं को प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया है.

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Published : May 17, 2020, 10:38 AM IST

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फसलों के अवशेष से बनेगा चारकोल.

सीतापुर: जिले के घरों में अब खाना बनाने के लिए महिलाओं को अब धुआं रहित ईंधन उपलब्ध कराने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह उन्नत ईंधन कृषि अवशेषों के माध्यम से तैयार किया जाता है. कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया ने इसके लिए समूह की महिलाओं को प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया है.

जानकारी देतीं कृषि वैज्ञानिक.

किसानों के पास कटाई और मड़ाई के बाद बहुत सारा कृषि अवशेष रह जाता है. जिसमें गेहूं के भूसे से लेकर सरसों, मटर, चना आदि के अवशेष शामिल हैं. पशुओं को खिलाने वाले कृषि अवशेषों को सुरक्षित रखने के बाद बचे हुए अवशेषों से धुआं रहित उन्नत ईंधन (चारकोल ब्रिक्ट्स) तैयार किया जा सकता है. इसके इस्तेमाल से गृहणियों को भोजन बनाने में तमाम कठिनाइयों से छुटकारा मिल सकेगा. इससे जहां उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रहेगा, वहीं इसमें कम लागत आने से खर्च में भी कमी आयेगी.

उन्नत ईंधन बनाने की यह तकनीक काफी बेहतर है. इसे तैयार कर बारिश के दिनों में इस्तेमाल करने के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है. इसका इस्तेमाल बढ़ने से ईंधन के लिए कटने वाले पेड़ों की कटान में भी कमी आयेगी. ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है, अब तक समूह में काम करने वाली 30 महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दिया जा चुका है.
डॉ. सौरभ, कृषि वैज्ञानिक

सीतापुर: जिले के घरों में अब खाना बनाने के लिए महिलाओं को अब धुआं रहित ईंधन उपलब्ध कराने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह उन्नत ईंधन कृषि अवशेषों के माध्यम से तैयार किया जाता है. कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया ने इसके लिए समूह की महिलाओं को प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया है.

जानकारी देतीं कृषि वैज्ञानिक.

किसानों के पास कटाई और मड़ाई के बाद बहुत सारा कृषि अवशेष रह जाता है. जिसमें गेहूं के भूसे से लेकर सरसों, मटर, चना आदि के अवशेष शामिल हैं. पशुओं को खिलाने वाले कृषि अवशेषों को सुरक्षित रखने के बाद बचे हुए अवशेषों से धुआं रहित उन्नत ईंधन (चारकोल ब्रिक्ट्स) तैयार किया जा सकता है. इसके इस्तेमाल से गृहणियों को भोजन बनाने में तमाम कठिनाइयों से छुटकारा मिल सकेगा. इससे जहां उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रहेगा, वहीं इसमें कम लागत आने से खर्च में भी कमी आयेगी.

उन्नत ईंधन बनाने की यह तकनीक काफी बेहतर है. इसे तैयार कर बारिश के दिनों में इस्तेमाल करने के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है. इसका इस्तेमाल बढ़ने से ईंधन के लिए कटने वाले पेड़ों की कटान में भी कमी आयेगी. ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है, अब तक समूह में काम करने वाली 30 महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दिया जा चुका है.
डॉ. सौरभ, कृषि वैज्ञानिक

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