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Shravasti News : एक फोन पर सेवा में हाे जाती हैं हाजिर, गर्भवती और बच्चाें काे स्वस्थ बना रहीं एएनएम दमयंती

पहाड़ों की तलहटी में बसे गांवाें में गर्भवती और बच्चाें काे एएनएम दमयंती मौर्या स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा रहीं हैं. रिटायरमेंट के बेहद करीब हाेने के बावजूद उनका जज्बा कम नहीं हुआ है.

श्रावस्ती
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Published : Jan 24, 2023, 11:51 AM IST

श्रावस्ती : इंडो-नेपाल सीमा पर पहाड़ों की तलहटी में बसे गांवाें तक जाने वाले रास्ते मुश्किलाें से भरे हैं. इन्हीं से गुजर कर एएनएम दमयंती मौर्या लाेगाें तक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा रहीं हैं. वह लगभग 34 सालाें से गर्भवती और बच्चाें काे स्वस्थ बनाए रखने का बीड़ा उठा रहीं हैं. महज एक फाेन पर वह ग्रामीणाें की सेवा में हाजिर हाे जाती हैं. हर कोई उन्हें एएनएम दीदी कहकर बुलाता है.

मोतीपुर कला, मसहा कला और बभनी कुकुरभुकवा गांव पहाड़ों की तलहटी में बसे हैं. इन गांवाें में आदिवासी थारू जनजाति के लाेग रहते हैं. इन गांवाें तक जाने वाले रास्ते दुर्गम हैं. इसके बावजूद एएनएम दमयंती ग्रामीणाें के बीच पहुंच कर उन्हें सरकार की याेजनाओं की जानकारी दे रहीं हैं. गर्भवती और बच्चाें का टीकाकरण करा रहीं हैं.

एएनएम दीदी कहकर बुलाते हैं लाेग : ग्रामीण बताते हैं कि दमयंती बलिया जिले की मूल निवासी हैं. वह काफी मिलनसार हैं. वह नियमित गांव में आती-जाती रहती हैं. गांव की महिलाओं और बच्चाें काे काेई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी आने पर वह एक फाेन पर पहुंच जाती हैं. ग्रामीणों की सेवा करने के उद्देश्य से उन्हाेंने बभनी कुकुरभुकवा गांव में अपना स्थायी मकान भी बना लिया है. क्षेत्र का हर शख्स उन्हें एएनएम दीदी कहकर बुलाता है. अपना मकान होने के बावजूद भी वह रात में यहां से 5 किमी दूर मोतीपुर कला के स्वास्थ्य उपकेंद्र पर ठहरती हैं.

समय पर लगते हैं टीकें : मोतीपुर कला निवासी शिक्षक कर्मवीर राना का कहना है कि दमयंती दीदी जिस तरह से अपनी ड्यूटी करती हैं, वह दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत है. दिन हो या रात, एक फोन पर ही वह एक गांव से दूसरे गांव पहुंचकर सेवा में जुट जाती हैं. उनके प्रयास से ही गांव में सभी को समय पर टीके लगते हैं. कारोबारी सुरेंद्र बताते हैं कि कोविड काल में दमयंती ने लगातार लाेगाें काे जागरूक किया.

1989 से है तैनाती : एएनएम दमयंती बताती हैं कि वर्ष 1989 में स्वास्थ्य विभाग में उनकी तैनाती बतौर एएनएम ग्राम पंचायत मोतीपुर कला में हुई. यह गांव जनजाति बाहुल्य गांव है. यहां के रीति-रिवाज और परिवेश पूरी तरह से अलग हैं. मन में कुछ घबराहट भी थी, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों का पूरा सहयोग मिला. नाैकरी के दौरान उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई. अब वह थारू समाज के लाेगाें से इस तरह घुलमिल गईं हैं कि अब इन्हें छोड़कर जाने का मन नहीं करता है.

सिरसिया सीएचसी के अधीक्षक डॉ. प्रवीण और बीसीपीएम विनोद श्रीवास्तव का कहना है कि एएनएम दमंयती मौर्या जिस निष्ठा और समर्पण भाव से अपनी ड्यूटी करती हैं, वह सराहनीय है. अभी 1 साल तक उनका कार्यकाल बाकी है.

यह भी पढ़ें : थारू जनजाति का माघी लहान, आधी रात में स्नान से शुरू होता है सेलिब्रेशन

श्रावस्ती : इंडो-नेपाल सीमा पर पहाड़ों की तलहटी में बसे गांवाें तक जाने वाले रास्ते मुश्किलाें से भरे हैं. इन्हीं से गुजर कर एएनएम दमयंती मौर्या लाेगाें तक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा रहीं हैं. वह लगभग 34 सालाें से गर्भवती और बच्चाें काे स्वस्थ बनाए रखने का बीड़ा उठा रहीं हैं. महज एक फाेन पर वह ग्रामीणाें की सेवा में हाजिर हाे जाती हैं. हर कोई उन्हें एएनएम दीदी कहकर बुलाता है.

मोतीपुर कला, मसहा कला और बभनी कुकुरभुकवा गांव पहाड़ों की तलहटी में बसे हैं. इन गांवाें में आदिवासी थारू जनजाति के लाेग रहते हैं. इन गांवाें तक जाने वाले रास्ते दुर्गम हैं. इसके बावजूद एएनएम दमयंती ग्रामीणाें के बीच पहुंच कर उन्हें सरकार की याेजनाओं की जानकारी दे रहीं हैं. गर्भवती और बच्चाें का टीकाकरण करा रहीं हैं.

एएनएम दीदी कहकर बुलाते हैं लाेग : ग्रामीण बताते हैं कि दमयंती बलिया जिले की मूल निवासी हैं. वह काफी मिलनसार हैं. वह नियमित गांव में आती-जाती रहती हैं. गांव की महिलाओं और बच्चाें काे काेई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी आने पर वह एक फाेन पर पहुंच जाती हैं. ग्रामीणों की सेवा करने के उद्देश्य से उन्हाेंने बभनी कुकुरभुकवा गांव में अपना स्थायी मकान भी बना लिया है. क्षेत्र का हर शख्स उन्हें एएनएम दीदी कहकर बुलाता है. अपना मकान होने के बावजूद भी वह रात में यहां से 5 किमी दूर मोतीपुर कला के स्वास्थ्य उपकेंद्र पर ठहरती हैं.

समय पर लगते हैं टीकें : मोतीपुर कला निवासी शिक्षक कर्मवीर राना का कहना है कि दमयंती दीदी जिस तरह से अपनी ड्यूटी करती हैं, वह दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत है. दिन हो या रात, एक फोन पर ही वह एक गांव से दूसरे गांव पहुंचकर सेवा में जुट जाती हैं. उनके प्रयास से ही गांव में सभी को समय पर टीके लगते हैं. कारोबारी सुरेंद्र बताते हैं कि कोविड काल में दमयंती ने लगातार लाेगाें काे जागरूक किया.

1989 से है तैनाती : एएनएम दमयंती बताती हैं कि वर्ष 1989 में स्वास्थ्य विभाग में उनकी तैनाती बतौर एएनएम ग्राम पंचायत मोतीपुर कला में हुई. यह गांव जनजाति बाहुल्य गांव है. यहां के रीति-रिवाज और परिवेश पूरी तरह से अलग हैं. मन में कुछ घबराहट भी थी, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों का पूरा सहयोग मिला. नाैकरी के दौरान उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई. अब वह थारू समाज के लाेगाें से इस तरह घुलमिल गईं हैं कि अब इन्हें छोड़कर जाने का मन नहीं करता है.

सिरसिया सीएचसी के अधीक्षक डॉ. प्रवीण और बीसीपीएम विनोद श्रीवास्तव का कहना है कि एएनएम दमंयती मौर्या जिस निष्ठा और समर्पण भाव से अपनी ड्यूटी करती हैं, वह सराहनीय है. अभी 1 साल तक उनका कार्यकाल बाकी है.

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