शाहजहांपुर: पूरा देश काकोरी कांड में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह की शहादत पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. अशफाक उल्ला का परिवार उनकी एक-एक याद को आज भी संजोए हुए है.
हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूले
शहीदों की नगरी शाहजहांपुर में एक नहीं बल्कि तीन-तीन शहीदों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी, जिनमें एक नाम है अमर शहीद अशफाक उल्ला खान का जिनका जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलाल नगर में 22 अक्टूबर 1900 में हुआ.
इस अमर शहीद की तमाम चीजें आज भी इनके परिवार ने संभाल कर रखी हैं, जिनमें जेल में लिखी उन उनकी एक एक चिट्टियां शामिल हैं. उनके परिवार में उनके तीन पोते आज भी उनकी विरासत को जिंदा रखे हुए हैं. अशफाक उल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती आज भी मुल्क में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है.
शहीदों की प्रतिमाएं दिलाती है कुर्बानी की याद
शहर के बीचो बीच अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की प्रतिमाएं हर वक्त उनकी कुर्बानी को याद दिलाती हैं. यहां के एवीरिच इंटर कॉलेज में अशफाक उल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल ने एक साथ एक ही क्लास में पढ़ाई की थी. आजादी के लिए दोनों को ही काकोरी कांड में 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई.
शाहजहांपुर को इन अमर शहीदों के नाम से जाना जाता है. अशफाक उल्ला खान काकोरी कांड के बाद जेल से इन यादगार पंक्तियों को लिखा है
शहीदों की मजार पर लगेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मिटने वालों का बस यही बाकी निशां होगा।।
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जब अशफाक उल्ला खां 19 दिसंबर 1927 को फांसी देने से पहले जब उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई तो उन्होंने उन्होंने कहा... कुछ आरजू नहीं है , है आरजू तो यह है, रख दे कोई खाक-ए-वतन कफन में.