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शाहजहांपुर: बलिदान दिवस पर याद किये गए शहीद अशफाक उल्ला खां

शाहजहांपुर के लाल शहीद अशफाक उल्ला खां को उनके बलिदान दिवस पर पूरा देश नमन कर रहा है. काकोरी कांड में 19 दिसंबर 1927 को इन्हें फांसी दे दी गई थी.

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बलिदान दिवस पर याद किये शहीद अशफाक उल्ला खां
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Published : Dec 19, 2019, 2:59 PM IST

Updated : Sep 4, 2020, 3:10 PM IST

शाहजहांपुर: पूरा देश काकोरी कांड में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह की शहादत पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. अशफाक उल्ला का परिवार उनकी एक-एक याद को आज भी संजोए हुए है.

जानकारी देते शहीद के प्रपौत्र.

हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूले

शहीदों की नगरी शाहजहांपुर में एक नहीं बल्कि तीन-तीन शहीदों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी, जिनमें एक नाम है अमर शहीद अशफाक उल्ला खान का जिनका जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलाल नगर में 22 अक्टूबर 1900 में हुआ.

इस अमर शहीद की तमाम चीजें आज भी इनके परिवार ने संभाल कर रखी हैं, जिनमें जेल में लिखी उन उनकी एक एक चिट्टियां शामिल हैं. उनके परिवार में उनके तीन पोते आज भी उनकी विरासत को जिंदा रखे हुए हैं. अशफाक उल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती आज भी मुल्क में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है.

शहीदों की प्रतिमाएं दिलाती है कुर्बानी की याद

शहर के बीचो बीच अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की प्रतिमाएं हर वक्त उनकी कुर्बानी को याद दिलाती हैं. यहां के एवीरिच इंटर कॉलेज में अशफाक उल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल ने एक साथ एक ही क्लास में पढ़ाई की थी. आजादी के लिए दोनों को ही काकोरी कांड में 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई.

शाहजहांपुर को इन अमर शहीदों के नाम से जाना जाता है. अशफाक उल्ला खान काकोरी कांड के बाद जेल से इन यादगार पंक्तियों को लिखा है

शहीदों की मजार पर लगेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मिटने वालों का बस यही बाकी निशां होगा।।
ये भी पढ़ें:-जब पुलिस को आया एक कॉल और कहा बचा लो मुझे...फिर हुआ ये
जब अशफाक उल्ला खां 19 दिसंबर 1927 को फांसी देने से पहले जब उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई तो उन्होंने उन्होंने कहा... कुछ आरजू नहीं है , है आरजू तो यह है, रख दे कोई खाक-ए-वतन कफन में.

शाहजहांपुर: पूरा देश काकोरी कांड में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह की शहादत पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. अशफाक उल्ला का परिवार उनकी एक-एक याद को आज भी संजोए हुए है.

जानकारी देते शहीद के प्रपौत्र.

हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूले

शहीदों की नगरी शाहजहांपुर में एक नहीं बल्कि तीन-तीन शहीदों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी, जिनमें एक नाम है अमर शहीद अशफाक उल्ला खान का जिनका जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलाल नगर में 22 अक्टूबर 1900 में हुआ.

इस अमर शहीद की तमाम चीजें आज भी इनके परिवार ने संभाल कर रखी हैं, जिनमें जेल में लिखी उन उनकी एक एक चिट्टियां शामिल हैं. उनके परिवार में उनके तीन पोते आज भी उनकी विरासत को जिंदा रखे हुए हैं. अशफाक उल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती आज भी मुल्क में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है.

शहीदों की प्रतिमाएं दिलाती है कुर्बानी की याद

शहर के बीचो बीच अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की प्रतिमाएं हर वक्त उनकी कुर्बानी को याद दिलाती हैं. यहां के एवीरिच इंटर कॉलेज में अशफाक उल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल ने एक साथ एक ही क्लास में पढ़ाई की थी. आजादी के लिए दोनों को ही काकोरी कांड में 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई.

शाहजहांपुर को इन अमर शहीदों के नाम से जाना जाता है. अशफाक उल्ला खान काकोरी कांड के बाद जेल से इन यादगार पंक्तियों को लिखा है

शहीदों की मजार पर लगेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मिटने वालों का बस यही बाकी निशां होगा।।
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जब अशफाक उल्ला खां 19 दिसंबर 1927 को फांसी देने से पहले जब उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई तो उन्होंने उन्होंने कहा... कुछ आरजू नहीं है , है आरजू तो यह है, रख दे कोई खाक-ए-वतन कफन में.

Intro:बलिदान दिवस पर विशेष खबर

स्लग अशफाक उल्ला खां

एंकर आज पूरा देश काकोरी कांड में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह की शहादत पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है वही अशफाक उल्ला का परिवार उनकी एक एक याद को आज भी संजोए हुए रखा है काकोरी कांड में जब अशफाक उल्ला खां 19 दिसंबर 1927 को फांसी देने से पहले जब उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई तो उन्होंने उन्होंने कहा कुछ आरजू नहीं है , है आरजू तो यह है। रख दे कोई ख़ाक ए वतन कफन में।। यह लाइने शाहजहांपुर की उस अमर शहीद की है जिसने मुल्क की आजादी की खातिर हंसते हंसते फांसी पर झूल गए।



Body:दरअसल शहीदों की नगरी शाहजहांपुर में जहां एक नहीं बल्कि तीन-तीन शहीदों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी है जिनमें एक नाम है अमर शहीद अशफाक उल्ला खान जो शहर के मोहल्ला एमन जई जलाल नगर में 22 अक्टूबर 1900 में जन्मे है इस अमर शहीद की तमाम चीजें आज भी इनके परिवार ने संभाल कर रखी हैं जिनमें जेल में लिखी उन उनकी एक एक चिट्टियां शामिल हैं उनके परिवार में उनके तीन पोते आज भी उनकी विरासत को जिंदा रखे हुए हैं अशफाक उल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती आज भी मुल्क में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है उनके परिवार वालों को इस बात का फक्र है कि उन्होंने ऐसे परिवार में जन्म लिया जिन्हें आज पूरा मुल्क सलाम करता है

वाइट अशफाक उल्ला खान शहीद अशफाक उल्ला के प्रपौत्र


Conclusion:शहर के बीचो बीच में अशफाक उल्ला खां पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की प्रतिमाएं हर वक्त उनकी कुर्बानी को याद दिलाते हैं यहां के ए वी रिच इंटर कॉलेज में अशफाक उल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल ने एक साथ एक ही क्लास में पढ़ाई की थी आजादी के लिए दोनों को ही काकोरी कांड में 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई हाय शाहजहांपुर को इन अमर शहीदों के नाम से जाना जाता है अशफाक उल्ला खान काकोरी कांड के बाद जेल से यादगार पंक्तियों को लिखा है
शहीदों की मजार पर लगेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मिटने वालों का बस यही बाकी निशां होगा।।

ईटीवी भारत देश के ऐसे सच्चे सपूत को हृदय से सलाम करता है

संजय श्रीवास्तव ईटीवी भारत शाहजहांपुर 94 15 15 2485
Last Updated : Sep 4, 2020, 3:10 PM IST
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