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भदोही के लाल यशस्वी जायसवाल, सबसे कम उम्र में दोहरा शतक लगाकर बनाया विश्व रिकॉर्ड

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Published : Feb 8, 2020, 11:47 AM IST

Updated : Feb 8, 2020, 12:07 PM IST

अंडर-19 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल मैच में भारतीय टीम को जीत दिलाने वाले यशस्वी जायसवाल की सफलता के पीछे छुपी है उतार-चढ़ाव भरी संघर्ष की कहानी, तो आइए जानते हैं यशस्वी की इस कहानी के बारे में..

सबसे कम उम्र में दोहरा शतक लगाकर बनाया विश्व रिकार्ड.
सबसे कम उम्र में दोहरा शतक लगाकर बनाया विश्व रिकार्ड.

भदोही: कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो हर मंजिल आसान हो जाती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में एक छोटे से कस्बे के रहने वाले क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल ने. गरीबी का साया होते हुए भी यशस्वी आज इस मुकाम पर पहुंच चुके हैं कि लोग उनकी तारीफों के पुल बांधते नहीं थक रहे हैं. दरअसल एक समय ऐसा भी था कि यशस्वी को अपना खर्च निकालने के लिए मुंबई में गोलगप्पे तक बेचने पड़े थे. अंडर-19 वर्ल्ड कप में अभी हाल में ही में यशस्वी ने पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल मैच में नाबाद शतक लगाकर भारतीय टीम को जीत दिलाई है.

सबसे कम उम्र में दोहरा शतक लगाकर बनाया विश्व रिकार्ड.
सबसे कम उम्र में दोहरा शतक जड़कर बनाया विश्व रिकॉर्ड
यशस्वी जायसवाल मुंबई की तरफ से खेलते हुए लिस्ट-ए-क्रिकेट में सबसे कम उम्र में दोहरा शतक जड़ने का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं. दरअसल विजय हजारे ट्राफी में 17 साल की उम्र में यशस्वी ने झारखण्ड के खिलाफ 154 गेंदों में शानदार 203 रन बनाए थे, जिसमें उन्होंने 12 छक्के और 17 चौके लगाए थे. विजय हजारे ट्रॉफी में दोहरा शतक बनाने वाले यशस्वी तीसरे बल्लेबाज बने हैं. इतनी कम उम्र के यशस्वी को यह सफलता बहुत कठिन परिश्रम के बाद मिली है.


'क्रिकेट के भगवान' सचिन तेंदुलकर ने दिया था अपना बल्ला

यशस्वी देश ही नहीं बल्कि विदेशो में भी जाने जा रहे हैं. क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने यशस्वी को अपने बल्ले पर सिग्नेचर कर दिया था. यशस्वी वह खिलाड़ी हैं, जिसने अपना खर्च निकालने के लिए प्रैक्टिस के बाद मुंबई में एक गोलगप्पे की दुकान पर काम कर गोलगप्पे बेचने का काम भी किया था और दो साल आजाद मैदान में टेंट में रहकर प्रैक्टिस की थी. यशस्वी भदोही जिले के सुरियावां नगर के रहने वाले हैं. उनके पिता एक पेण्ट हार्डवेयर की दुकान चलाते हैं और उनकी मां हाउस वाइफ हैं.

बचपन के सपने को किया साकार
यशस्वी को बचपन से ही क्रिकेट का शौक था और उनकी जिद थी की वह देश के लिए क्रिकेट खेलें. घर की हालत ठीक न होने से आगे बढ़ने में काफी मुश्किलें आड़े आ रही थी. उनके परिजनों ने किसी तरह कड़ी मशक्कत के बाद करीब 9 साल पहले यशस्वी को मुंबई भेजा था. यशस्वी ने एक मैच में 319 रन बनाए, जिसके बाद वह चयनकर्ताओं की नजर में आए और फिर उनका चयन भारतीय क्रिकेट की अंडर-19 टीम के लिए हुआ. भारत के लिए सचिन के बेटे अर्जुन के साथ जब वह श्रीलंका खेलने गए तो सचिन तेंदुलकर यशस्वी के खेल से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यशस्वी को अपना एक बल्ला गिफ्ट किया था.

काफी संघर्ष से भरी है यशस्वी की कहानी
यशस्वी के क्रिकेट खेलने के पीछे भी एक बड़ी रोचक कहानी है. दरअसल यशस्वी के पिता खुद एक अच्छे क्षेत्रीय क्रिकेटर रह चुके हैं. पारिवारिक वजहों और आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते वह अपना सपना पूरा नहीं कर पाए थे. जिसके बाद उन्होंने यह सपना अपने बेटों में देखा और उन्होंने दोनों बेटों को बचपन से खुद ही ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया. यशस्वी के खेल को देखकर उन्होंने उसे मुंबई भेजा, जहां अपने पिता का सपना अब उनका बेटा पूरा कर रहा है. अभी भी किसी भी मैच में यशस्वी अपने पिता से टिप्स लेना नहीं भूलते हैं. यशस्वी के माता-पिता की इच्छा है कि वे अब उसे इंडियन टीम में देखना चाहते हैं.

14 वर्ष की उम्र में बनाए थे 319 रन
यशस्वी जब 14 वर्ष की उम्र के थे, तो स्कूल की तरफ से गिल्ड-शील्ड टूर्नामेंट में खेलते हुए एक पारी में उन्होंने 319 रन बनाए थे. इस मैच में यशस्वी ने आलराउंडर प्रदर्शन करते हुए 99 रन देकर 13 विकेट भी हासिल किए थे, जिसके बाद उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ था. इस आलराउंडर प्रदर्शन से खुश होकर दिलीप वेंगसरकर ने यशस्वी को सम्मानित भी किया था. यशस्वी कई मैच अपनी लेग स्पिन के बलबूते जिता चुके हैं. वह बाएं हाथ के शानदार बल्लेबाज होने के साथ ही नियमित लेग स्पिनर भी हैं.

गोलगप्पे बेचकर बनाया विश्व रिकॉर्ड
यशस्वी की मां कंचन बताती हैं कि हम लोगों की आर्थिक हालात ठीक नहीं थी, लेकिन यशस्वी हमेशा कहता था की उसे मुंबई जाकर तैयारी करनी है. यशस्वी की जिद से पिता उसे मुंबई लेकर गए. वहां उनके भाई के यहां कुछ दिन रहा, लेकिन जगह कम होने के कारण उसे उनके घर से निकलना पड़ा. इसके बाद उसने आजाद मैदान टेंट में रहकर प्रैक्टिस शुरू की, लेकिन घर की हालत ठीक न होने के चलते उसको खर्च के लिए ज्यादा रुपया नहीं दे पा रहे थे.

यशस्वी ने अपने पिता से कहा कि अगर आप कहें तो वह एक गोलगप्पे की दुकान पर काम कर ले, इससे उसको खर्च के लिए कुछ रुपये भी मिल जाएंगे. इसके बाद उसने मुंबई में गोलगप्पे बेचना शुरु कर दिया था. परिजनों की चाहत है कि यशस्वी अंडर-19 वर्ल्ड कप जीतकर आएं और आने वाले समय में वह सीनियर टीम इंडिया में अपनी जगह बनाएं.

इसे भी पढ़ें:- भदोही: मकर सक्रांति पर 'राजनीतिक पतंगों' की धूम, मोदी-शाह की डिमांड

भदोही: कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो हर मंजिल आसान हो जाती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में एक छोटे से कस्बे के रहने वाले क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल ने. गरीबी का साया होते हुए भी यशस्वी आज इस मुकाम पर पहुंच चुके हैं कि लोग उनकी तारीफों के पुल बांधते नहीं थक रहे हैं. दरअसल एक समय ऐसा भी था कि यशस्वी को अपना खर्च निकालने के लिए मुंबई में गोलगप्पे तक बेचने पड़े थे. अंडर-19 वर्ल्ड कप में अभी हाल में ही में यशस्वी ने पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल मैच में नाबाद शतक लगाकर भारतीय टीम को जीत दिलाई है.

सबसे कम उम्र में दोहरा शतक लगाकर बनाया विश्व रिकार्ड.
सबसे कम उम्र में दोहरा शतक जड़कर बनाया विश्व रिकॉर्ड
यशस्वी जायसवाल मुंबई की तरफ से खेलते हुए लिस्ट-ए-क्रिकेट में सबसे कम उम्र में दोहरा शतक जड़ने का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं. दरअसल विजय हजारे ट्राफी में 17 साल की उम्र में यशस्वी ने झारखण्ड के खिलाफ 154 गेंदों में शानदार 203 रन बनाए थे, जिसमें उन्होंने 12 छक्के और 17 चौके लगाए थे. विजय हजारे ट्रॉफी में दोहरा शतक बनाने वाले यशस्वी तीसरे बल्लेबाज बने हैं. इतनी कम उम्र के यशस्वी को यह सफलता बहुत कठिन परिश्रम के बाद मिली है.


'क्रिकेट के भगवान' सचिन तेंदुलकर ने दिया था अपना बल्ला

यशस्वी देश ही नहीं बल्कि विदेशो में भी जाने जा रहे हैं. क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने यशस्वी को अपने बल्ले पर सिग्नेचर कर दिया था. यशस्वी वह खिलाड़ी हैं, जिसने अपना खर्च निकालने के लिए प्रैक्टिस के बाद मुंबई में एक गोलगप्पे की दुकान पर काम कर गोलगप्पे बेचने का काम भी किया था और दो साल आजाद मैदान में टेंट में रहकर प्रैक्टिस की थी. यशस्वी भदोही जिले के सुरियावां नगर के रहने वाले हैं. उनके पिता एक पेण्ट हार्डवेयर की दुकान चलाते हैं और उनकी मां हाउस वाइफ हैं.

बचपन के सपने को किया साकार
यशस्वी को बचपन से ही क्रिकेट का शौक था और उनकी जिद थी की वह देश के लिए क्रिकेट खेलें. घर की हालत ठीक न होने से आगे बढ़ने में काफी मुश्किलें आड़े आ रही थी. उनके परिजनों ने किसी तरह कड़ी मशक्कत के बाद करीब 9 साल पहले यशस्वी को मुंबई भेजा था. यशस्वी ने एक मैच में 319 रन बनाए, जिसके बाद वह चयनकर्ताओं की नजर में आए और फिर उनका चयन भारतीय क्रिकेट की अंडर-19 टीम के लिए हुआ. भारत के लिए सचिन के बेटे अर्जुन के साथ जब वह श्रीलंका खेलने गए तो सचिन तेंदुलकर यशस्वी के खेल से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यशस्वी को अपना एक बल्ला गिफ्ट किया था.

काफी संघर्ष से भरी है यशस्वी की कहानी
यशस्वी के क्रिकेट खेलने के पीछे भी एक बड़ी रोचक कहानी है. दरअसल यशस्वी के पिता खुद एक अच्छे क्षेत्रीय क्रिकेटर रह चुके हैं. पारिवारिक वजहों और आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते वह अपना सपना पूरा नहीं कर पाए थे. जिसके बाद उन्होंने यह सपना अपने बेटों में देखा और उन्होंने दोनों बेटों को बचपन से खुद ही ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया. यशस्वी के खेल को देखकर उन्होंने उसे मुंबई भेजा, जहां अपने पिता का सपना अब उनका बेटा पूरा कर रहा है. अभी भी किसी भी मैच में यशस्वी अपने पिता से टिप्स लेना नहीं भूलते हैं. यशस्वी के माता-पिता की इच्छा है कि वे अब उसे इंडियन टीम में देखना चाहते हैं.

14 वर्ष की उम्र में बनाए थे 319 रन
यशस्वी जब 14 वर्ष की उम्र के थे, तो स्कूल की तरफ से गिल्ड-शील्ड टूर्नामेंट में खेलते हुए एक पारी में उन्होंने 319 रन बनाए थे. इस मैच में यशस्वी ने आलराउंडर प्रदर्शन करते हुए 99 रन देकर 13 विकेट भी हासिल किए थे, जिसके बाद उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ था. इस आलराउंडर प्रदर्शन से खुश होकर दिलीप वेंगसरकर ने यशस्वी को सम्मानित भी किया था. यशस्वी कई मैच अपनी लेग स्पिन के बलबूते जिता चुके हैं. वह बाएं हाथ के शानदार बल्लेबाज होने के साथ ही नियमित लेग स्पिनर भी हैं.

गोलगप्पे बेचकर बनाया विश्व रिकॉर्ड
यशस्वी की मां कंचन बताती हैं कि हम लोगों की आर्थिक हालात ठीक नहीं थी, लेकिन यशस्वी हमेशा कहता था की उसे मुंबई जाकर तैयारी करनी है. यशस्वी की जिद से पिता उसे मुंबई लेकर गए. वहां उनके भाई के यहां कुछ दिन रहा, लेकिन जगह कम होने के कारण उसे उनके घर से निकलना पड़ा. इसके बाद उसने आजाद मैदान टेंट में रहकर प्रैक्टिस शुरू की, लेकिन घर की हालत ठीक न होने के चलते उसको खर्च के लिए ज्यादा रुपया नहीं दे पा रहे थे.

यशस्वी ने अपने पिता से कहा कि अगर आप कहें तो वह एक गोलगप्पे की दुकान पर काम कर ले, इससे उसको खर्च के लिए कुछ रुपये भी मिल जाएंगे. इसके बाद उसने मुंबई में गोलगप्पे बेचना शुरु कर दिया था. परिजनों की चाहत है कि यशस्वी अंडर-19 वर्ल्ड कप जीतकर आएं और आने वाले समय में वह सीनियर टीम इंडिया में अपनी जगह बनाएं.

इसे भी पढ़ें:- भदोही: मकर सक्रांति पर 'राजनीतिक पतंगों' की धूम, मोदी-शाह की डिमांड

Intro:अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है कुछ ऐसा कर रहे है यूपी के भदोही जिले के एक छोटे से कस्बे के रहने वाले क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल ,जो बहुत ही गरीब परिवार के ताल्लुक रखते हुए आज इस मुकाम पर पहुंचे है एक समय ऐसा भी था की यशस्वी को अपना खर्च निकालने के लिए मुंबई में गोलगप्पे तक बेचने पड़े थे l अंडर 19 वर्ल्ड कप में अभी हाल में ही यशस्वी ने पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल मैच में नाबाद शतक लगाकर टीम को जीत दिलाई है l


Body: मुंबई की तरफ से खेलते हुए यशस्वी जायसवाल लिस्ट ए क्रिकेट में सबसे कम उम्र में दोहरा शतक जड़ने का रिकार्ड अपने नाम कर चुके है l विजय हजारे ट्राफी में 17 साल की उम्र में यशस्वी ने झारखण्ड के खिलाफ 154 गेंदों में 203 रन बनाये थे जिसमे उन्होंने 12 छक्के और 17 चौके मारे थे l विजय हजारे ट्राफी में दोहरा शतक बनाने वाले तीसरे बल्लेबाज बने है l इतनी कम उम्र के यशस्वी को यह सफलता बहुत कठिन परिश्रम के बाद मिली है आज जिस खिलाडी को देश ही नहीं बल्कि विदेशो में पहचाना जाता हो और क्रिकेट के भगवान् कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने जिसे अपना बल्ला सिग्नेचर कर दिया हो वह खिलाडी अपना खर्च निकालने के लिए प्रेक्टिस के बाद मुंबई में एक गोलगप्पे की दुकान पर काम कर गोलगप्पे बेचने का काम करता था और दो साल आजाद मैदान में टेंट में रहकर प्रेक्टिस की थी l यशस्वी भदोही जिले के सुरियावां नगर के रहने वाले है उनके पिता एक पेण्ट हार्डवेयर की दुकान चलाते है और उनकी माँ हॉउस वाइफ है l बचपन से ही यशस्वी को क्रिकेट का शौक था उसकी जिद थी की वह बड़े लेविल पर क्रिकेट खेलेगा लेकिन घर की माली हालत ठीक न होना आड़े आ रहा था फिर भी उसके परिजनों ने किसी तरह जीतोड़ मेहनत के बाद करीब 9 साल पहले यशस्वी को मुंबई को भेजा l यशस्वी ने एक मैच में 319 रन बनाये तब चयनकर्ताओं की नजर में वह आया और फिर उसका चयन भारतीय क्रिकेट की अंडर 19 टीम में हुआ l भारत ए के लिए सचिन के बेटे के साथ जब वह श्रीलंका खेलने गया तो सचिन तेंदुलकर यशस्वी के खेल से इतना प्रभावित हुए की उन्होंने उसे अपना एक बल्ला गिफ्ट किया था l
Conclusion:यशस्वी का क्रिकेट खेलना इसकी भी एक बड़ी रोचक कहानी है दरसल यशस्वी के पिता खुद एक अच्छे क्षेत्रीय क्रिकेटर है लेकिन पारिवारिक वजहों और आर्थिक स्तिथि ठीक न होने की वजह से वह अपना सपना पूरा नहीं कर पाए तो उन्होंने यह सपना अपने बेटो में देखा और उन्होंने अपने दोनों बेटो को बचपन से खुद ट्रेनिंग देना शुरू किया और यशस्वी के खेल को देखकर उन्होंने उसे मुंबई भेजा जहाँ अपने पिता का सपना अब उनका बेटा पूरा कर रहा है अभी भी किसी भी मैच से पहले यशस्वी पिता से टिप्स लेना नहीं भूलता है l यशस्वी के माता -पिता अब उसे इंडियन टीम में देखा चाहते है l
यशस्वी जब 14 वर्ष की उम्र का था तो वह एक स्कूल की तरफ से गिल्ड शील्ड टूर्नामेंट में खेलते हुए एक पारी में उन्होंने 319 रन बनाये थे इसी मैच में यशस्वी आलराउंडर प्रदर्शन करते हुए 99 रन देकर 13 विकेट भी हासिल किये थे । इस प्रदर्शन से उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में भी दर्ज हुआ था और इस आलराउंडर प्रदर्शन से खुश होकर दिलीप वेंगसरकर ने यशस्वी को सम्मानित भी किया था। यशस्वी कई मैच अपनी लेग स्पिन के बूते जिता भी चुके है वो बाएं हाथ के शानदार बल्लेबाज होने के साथ-साथ नियमित लेग स्पिनर भी है। यशस्वी की माँ कंचन बताती है की हम लोगो की आर्थिक हालात ठीक नहीं थे लेकिन यशस्वी हमेशा कहता था की उसे मुंबई जाकर तैयारी करनी है यशस्वी की जिद से पिता उनके मुंबई लेकर गए वहां उनके भाई के यहाँ कुछ दिन रहा लेकिन जगह कम होने के कारण उसे उनके घर से निकलना पड़ा फिर उसके बाद उसने आजाद मैदान में टेंट रहकर प्रेक्टिस शुरू की लेकिन उसके घर से माली हालत ठीक न होने के चलते उसके परिजन उसको खर्च के लिए ज्यादा रुपया नहीं दे पा रहे थे तो यशस्वी ने अपने पिता से कहा की अगर आप कहे तो वह एक गोलगप्पे की दुकान पर काम कर ले इससे उसको खर्च के लिए कुछ रूपये भी मिल जायेगे जिसके बाद उसने मुंबई में गोलगप्पे बेचे थे l अब यशस्वी की उपलब्धि से उसके माता पिता बहुत खुश है और परिजन अब चाहते है की यशस्वी अंडर 19 वर्ल्ड को जीतकर आये और आने वाले समय में वह सीनियर टीम इंडिया में अपनी जगह बनाये l

बाइट - भूपेंद्र जायसवाल - यशस्वी के पिता

सर वॉइस ओवर नहीं है इसमें और विसुअल भी लंबा है जैसा पैकेज तैयार करना हो कर लें
दीपू पांडेय , भदोही , 9005344633
Last Updated : Feb 8, 2020, 12:07 PM IST
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