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भदोही: अनुच्छेद 370 हटने से खुश दिख रहे कालीन व्यापारी, 200% तक बढ़ सकता है व्यापार - bhadohi latest news

जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने और अनुच्छेद 370 खत्म होने से कश्मीर से कालीन निर्यात में आने वाले सालो में 200 फीसदी का इजाफा हो सकता है.

कालीन.
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Published : Aug 8, 2019, 11:02 PM IST

भदोही: वैश्विक स्तर पर भारतीय कालीन उद्योग की अलग पहचान है. खासकर उत्तर प्रदेश के भदोही -मिर्ज़ापुर क्षेत्र और कश्मीर की निर्मित खूबसूरत कालीनों की बात ही कुछ और है. भदोही की तकनीक को कश्मीर ट्रांसफर किया जाएगा, जिससे वहां का कारोबार तो बढ़ेगा ही साथ ही वहां पर बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन भी होगा. जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनने और अनुच्छेद 370 अमान्य होने से कश्मीर से कालीन निर्यात में आने वाले सालों में 200 फीसदी का इजाफा होने की संभावना है.

अनुच्छेद 370 हटने से कालीन व्यापारियों में खुशी की लहर.

पढ़ें- ...जानिए क्यों कालीन निर्यात में घट रही है भदोही की भागीदारी

भदोही परिक्षेत्र से होता है 6 हजार करोड़ की कालीन का एक्सपोर्ट- यूपी के भदोही और जम्मू कश्मीर का जो कालीन उद्योग है उसे अपने क्षेत्रों की बड़ी सांस्कृतिक विरासत माना जाता है. सैकड़ों सालों से इन क्षेत्रों से अलग -अलग वैरायटी की कालीन का निर्माण होता आया है. समय के साथ कदम मिलाकर चलने की वजह से भदोही के कालीन उद्योग ने विदेशी बाजारों पर ऐसा कब्जा जमाया कि 6 हजार करोड़ से ज्यादा का एक्सपोर्ट अकेले भदोही परिक्षेत्र से होता है.

क्या कहते हैं जानकार-
देश के कालीन निर्यात में कश्मीर की सिर्फ 5 फीसदी के करीब की भागीदारी है. पूरे देश से सालाना 10 हजार करोड़ से ज्यादा का कालीन एक्सपोर्ट होता है. लेकिन अब कश्मीर के बुनकरों और वहां के उद्योग को बड़ा लाभ होने की उम्मीद है क्योंकि जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनने से यूपी समेत कई राज्यों के कालीन के कारोबारी अब कश्मीर जा सकेंगे. जिससे वहां का उद्योग बढ़ेगा और वहां के बुनकरों को रोजगार मिलेगा.
अगर दोनों इलाके के लोगों को ट्रेनिंग दी जाये तो तकनीक ट्रांसफर होगी. जिससे कश्मीर में भदोही की तकनीक पहुंचने से वहां के लोगों को ज्यादा लाभ मिलेगा और भदोही के कारोबारी भी सिल्क की कालीन का निर्माण कर सकते हैं.

कालीन कारोबारी क्या कहते हैं-
कालीन कारोबारी जाबिर अंसारी का कहना है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने से कश्मीर और भदोही दोनों जगह के लोगों को फायदा होगा. अब भदोही के कारोबारी कश्मीर में जमीन खरीद कर वहां कालीन उद्योग शुरु कर सकते हैं. इससे भदोही की कालीन तकनीक कश्मीर तक पहुंच जायेगी जिससे वहां के लोगों को भी फायदा होगा. साथ ही अन्य राज्यों की तरह भदोही और जम्मू कश्मीर का कालीन कारोबार एक हो जायेगा.

अनुच्छेद 370 हटने से कश्मीर और भदोही के बीच रिश्ता होगा मजबूत-
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने की वजह से भदोही से रिश्ता और मजबूत होगा. उद्योग की तकनीक ट्रांसफर होने से अधिक लाभ जम्मू कश्मीर को मिलेगा. क्योंकि भदोही से अच्छी उच्च क्वालिटी की कालीन कश्मीर में बनती है जिस वजह से वहां के बुनकर आसानी से भदोही की कालीन का निर्माण सीख सकते है. कश्मीर में सिल्क की कालीन का निर्माण होता है जबकि भदोही परिक्षेत्र में उलेन और कॉटन से कालीन का निर्माण किया जाता है.

कश्मीर का कारपेट फाइन जो सिल्क का बना होता है. जबकि भदोही का कारपेट उलेन और कॉटन का बना होता है. अगर दोनों इलाके के लोगों को ट्रेनिंग दी जाये तो तकनीक ट्रांसफर होगी. जिससे कश्मीर में भदोही की तकनीक पहुंचने से वहां के लोगों को ज्यादा लाभ मिलेगा और भदोही के कारोबारी भी सिल्क की कालीन का निर्माण कर सकते हैं.
-आलोक कुमार, डायरेक्टर, भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान

भदोही: वैश्विक स्तर पर भारतीय कालीन उद्योग की अलग पहचान है. खासकर उत्तर प्रदेश के भदोही -मिर्ज़ापुर क्षेत्र और कश्मीर की निर्मित खूबसूरत कालीनों की बात ही कुछ और है. भदोही की तकनीक को कश्मीर ट्रांसफर किया जाएगा, जिससे वहां का कारोबार तो बढ़ेगा ही साथ ही वहां पर बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन भी होगा. जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनने और अनुच्छेद 370 अमान्य होने से कश्मीर से कालीन निर्यात में आने वाले सालों में 200 फीसदी का इजाफा होने की संभावना है.

अनुच्छेद 370 हटने से कालीन व्यापारियों में खुशी की लहर.

पढ़ें- ...जानिए क्यों कालीन निर्यात में घट रही है भदोही की भागीदारी

भदोही परिक्षेत्र से होता है 6 हजार करोड़ की कालीन का एक्सपोर्ट- यूपी के भदोही और जम्मू कश्मीर का जो कालीन उद्योग है उसे अपने क्षेत्रों की बड़ी सांस्कृतिक विरासत माना जाता है. सैकड़ों सालों से इन क्षेत्रों से अलग -अलग वैरायटी की कालीन का निर्माण होता आया है. समय के साथ कदम मिलाकर चलने की वजह से भदोही के कालीन उद्योग ने विदेशी बाजारों पर ऐसा कब्जा जमाया कि 6 हजार करोड़ से ज्यादा का एक्सपोर्ट अकेले भदोही परिक्षेत्र से होता है.

क्या कहते हैं जानकार-
देश के कालीन निर्यात में कश्मीर की सिर्फ 5 फीसदी के करीब की भागीदारी है. पूरे देश से सालाना 10 हजार करोड़ से ज्यादा का कालीन एक्सपोर्ट होता है. लेकिन अब कश्मीर के बुनकरों और वहां के उद्योग को बड़ा लाभ होने की उम्मीद है क्योंकि जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनने से यूपी समेत कई राज्यों के कालीन के कारोबारी अब कश्मीर जा सकेंगे. जिससे वहां का उद्योग बढ़ेगा और वहां के बुनकरों को रोजगार मिलेगा.
अगर दोनों इलाके के लोगों को ट्रेनिंग दी जाये तो तकनीक ट्रांसफर होगी. जिससे कश्मीर में भदोही की तकनीक पहुंचने से वहां के लोगों को ज्यादा लाभ मिलेगा और भदोही के कारोबारी भी सिल्क की कालीन का निर्माण कर सकते हैं.

कालीन कारोबारी क्या कहते हैं-
कालीन कारोबारी जाबिर अंसारी का कहना है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने से कश्मीर और भदोही दोनों जगह के लोगों को फायदा होगा. अब भदोही के कारोबारी कश्मीर में जमीन खरीद कर वहां कालीन उद्योग शुरु कर सकते हैं. इससे भदोही की कालीन तकनीक कश्मीर तक पहुंच जायेगी जिससे वहां के लोगों को भी फायदा होगा. साथ ही अन्य राज्यों की तरह भदोही और जम्मू कश्मीर का कालीन कारोबार एक हो जायेगा.

अनुच्छेद 370 हटने से कश्मीर और भदोही के बीच रिश्ता होगा मजबूत-
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने की वजह से भदोही से रिश्ता और मजबूत होगा. उद्योग की तकनीक ट्रांसफर होने से अधिक लाभ जम्मू कश्मीर को मिलेगा. क्योंकि भदोही से अच्छी उच्च क्वालिटी की कालीन कश्मीर में बनती है जिस वजह से वहां के बुनकर आसानी से भदोही की कालीन का निर्माण सीख सकते है. कश्मीर में सिल्क की कालीन का निर्माण होता है जबकि भदोही परिक्षेत्र में उलेन और कॉटन से कालीन का निर्माण किया जाता है.

कश्मीर का कारपेट फाइन जो सिल्क का बना होता है. जबकि भदोही का कारपेट उलेन और कॉटन का बना होता है. अगर दोनों इलाके के लोगों को ट्रेनिंग दी जाये तो तकनीक ट्रांसफर होगी. जिससे कश्मीर में भदोही की तकनीक पहुंचने से वहां के लोगों को ज्यादा लाभ मिलेगा और भदोही के कारोबारी भी सिल्क की कालीन का निर्माण कर सकते हैं.
-आलोक कुमार, डायरेक्टर, भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान

Intro:वैश्विक स्तर पर भारतीय कालीन उद्योग की अलग पहचान है खासकर उत्तर प्रदेश के भदोही -मिर्ज़ापुर क्षेत्र और कश्मीर की निर्मित खूबसूरत कालीनों की बात ही कुछ और है l जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनने और धारा 35 ए खत्म होने से कश्मीर से कालीन निर्यात में आने वाले सालो में 200 फीसदी का इजाफा होने की सम्भावना है साथ ही भदोही की जो तकनीक है वह भी कश्मीर ट्रांसफर होगी जिससे वहां का कारोबार तो बढ़ेगा ही साथ ही वहां पर बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन भी होगा


Body:यूपी के भदोही और जम्मू कश्मीर का जो कालीन उद्योग है उसे अपने क्षेत्रो की बड़ी सांस्कृतिक विरासत माना जाता है सैकड़ो सालो से इन क्षेत्रो से अलग -अलग वैरायटी की कालीन का निर्माण होता आया है समय से कदम मिलाकर चलने की वजह से भदोही के कालीन उद्योग ने विदेशी बाजारों पर ऐसा कब्जा जमाया की 6 हजार करोड़ से ज्यादा का एक्सपोर्ट अकेले भदोही परिक्षेत्र से होता है लेकिन कश्मीर का कालीन उद्योग समय से कदम नहीं मिला पाया जिसकी बड़ी वजह 370 का होना माना जाता रहा है l जानकारों के अनुसार देश के कालीन निर्यात में कश्मीर की सिर्फ 5 फीसदी के करीब की ही भागेदारी है पूरे देश से सालाना 10 हजार करोड़ से ज्यादा का कालीन एक्सपोर्ट होता है l लेकिन अब कश्मीर के बुनकरों और वहां के उद्योग को बड़ा लाभ होने की उम्मीद है क्योकि जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनने से यूपी समेत कई राज्यों के कालीन के कारोबारी अब कश्मीर जा सकेंगे जिससे वहां का उद्योग बढ़ेगा और वहां के बुनकरों को रोजगार मिलेगा l कालीन कारोबारियों का कहना है की अब वह वहां जमीन खरीदकर अपने दफ्तर के साथ लूम भी स्थापित कर सकते है जिससे अन्य राज्यों की तरह भदोही और जम्मू कश्मीर का कालीन कारोबार एक हो जायेगा l 

Conclusion: कश्मीर से 370 हटने की वजह से भदोही से रिश्ता और मजबूत होगा उद्योग की तकनीक ट्रांसफर होने से अधिक लाभ जम्मू कश्मीर को मिलेगा क्योकि भदोही से अच्छी उच्च क्वालिटी की कालीन कश्मीर में बनती है जिस वजह से वहां के बुनकर आसानी से भदोही की कालीन का निर्माण सीख सकते है l कश्मीर में सिल्क की कालीन का निर्माण होता है जबकि भदोही परिक्षेत्र में उलेन और कॉटन से कालीन का निर्माण किया जाता है l जानकारों का मानना है की अगर दोनों इलाको के लोगो को ट्रेनिंग दी जाये तो तकनीक ट्रांसफर होगी जिससे कश्मीर में भदोही की तकनीक पहुँचने से वहां के लोगो को ज्यादा लाभ मिलेगा और भदोही के कारोबारी भी सिल्क की कालीन का निर्माण कर सकते है l 

बाइट - अलोक कुमार       डायरेक्टर -भारतीय कालीन प्रौधोगिकी संस्थान -भदोही         

    बाइट - जाबिर अंसारी                कालीन कारोबारी 
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