ETV Bharat / state

जल संकट से जूझता भदोही, रेन वाटर हार्वेस्टिंग योजना ध्वस्त

उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में जल संरक्षण के लिए खोदे गए बारह सौ से अधिक तालाबों में अधिकतर जहां बेपानी हो चुके हैं, वहीं सरकारी भवनों में लाखों खर्च कर बनी रेन वाटर हार्वेस्टिंग योजना भी पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है.

author img

By

Published : Mar 22, 2021, 1:42 PM IST

सहेजिए जल
सहेजिए जल

भदोही: जल संकट देश ही नहीं पूरे विश्व की एक गंभीर समस्या है. वर्षा जल संरक्षण को प्रोत्साहन देकर ही भूजल स्तर को रोका जा सकता है. ऐसे में जब सिस्टम ही लापरवाही बरते तो जल संरक्षण का सपना साकार नहीं हो पाता है. जल संरक्षण के लिए खोदे गए बारह सौ से अधिक तालाबों में अधिकतर जहां बेपानी हो चुके हैं, वहीं सरकारी भवनों में लाखों खर्च कर बनी रेन वाटर हार्वेस्टिंग योजना भी पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है. अधिसंख्य स्थानों पर तो कनेक्शन ही नहीं हो पाए हैं. वहीं रख-रखाव के अभाव में किया गया बोरिंग और टैंक भी पूरी तरह से फेल हो चुके हैं.

वर्षा जल अनमोल

वर्षा जल अनमोल प्राकृतिक उपहार है, जो प्रतिवर्ष लगभग पूरी पृथ्वी को बिना किसी भेदभाव के मिलता रहता है. समुचित प्रबंधन के अभाव में वर्षा जल व्यर्थ में बहता हुआ नदी नालों से होकर समुद्र के खारे पानी में मिलकर खारा हो जाता है. वर्तमान समय में जल संकट को दूर करने के लिए वर्षा जल संचयन ही एकमात्र विकल्प है. वर्षा जल के संग्रहण की समुचित व्यवस्था हो तो न केवल जल संकट से जूझते लोग अपनी तकलीफ जरूरतों के लिए पानी जुटा पाएंगे, बल्कि इससे भूजल भी रिचार्ज हो सकेगा. जल दोहन के कारण वर्ष 2013 में शासन ने पूरे जिले में डार्कजोन घोषित कर दिया था.

हालांकि 2019 में सर्वे रिपोर्ट के आधार पर भदोही और ज्ञानपुर ब्लॉक को छोड़कर अन्य चार ब्लॉक सुरियावां, अभोली और औराई और डीघ डार्कजोन के बाहर हो गए हैं. जल संरक्षण की मुहिम के तहत 2018 में मोरवा और वरुणा नदी के जीर्णोद्धार की पहल भी दम तोड़ चुकी है. मनरेगा के तहत करीब 1 करोड़ से अधिक की रकम खर्च हुए लेकिन अब भी मोरवा बेपानी ही दिख रहा है.

चिंताजनक हैं हालात, खिसकता जलस्तर

भूगर्भ जल के लगातार दोहन से कालीन नगरी में जलस्तर काफी चिंताजनक है. लघु सिंचाई विभाग की रिपोर्ट पर गौर करें तो जिले में शुद्ध पुनर्भरण जल क्षमता 400 मिलियन घन मीटर, शुद्ध जल निकास क्षमता 370 मिलियन घन मीटर और भूगर्भ जल विकास स्तर 92.25प्रतिशत है. ऐसे में भूजल दोहन को पूरी तरह प्रतिबंधित करना चाहिए. जल संचयन ना होने से जल स्तर नीचे ही खिसकता जा रहा है.

अवर अभियंता लघु सिंचाई छोटे लाल ने बताया कि एक दशक पूर्व जिन कुओं में 15 से 20 फीट पर पानी मिल जाता था, वहां अब 30 से 35 फीट तक पहुंच चुका है. यही हाल हैंडपंप आदि की बोरिंग में भी देखने को मिलती है. कभी 100 से 120 फीट पर ही शुद्ध पानी मिलता था, जबकि अब 150 से 180 फीट की बोरिंग कराई जा रही है.

एसडीएम शैलेंद्र मिश्रा ने बताया कि जल संरक्षण के लिए तालाबों की खुदाई की गई है. इसके लिए तमाम विधियों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें सीधे जमीन के अंदर खाई बनाकर रिचार्जिंग, कुएं में पानी उतारना, ट्यूबेल में पानी उतारना, और टैंक में जमा करना शामिल है. रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम जिन विभागों में प्रभावित नहीं है, उन्हें निर्देशित किया जाएगा.

भदोही: जल संकट देश ही नहीं पूरे विश्व की एक गंभीर समस्या है. वर्षा जल संरक्षण को प्रोत्साहन देकर ही भूजल स्तर को रोका जा सकता है. ऐसे में जब सिस्टम ही लापरवाही बरते तो जल संरक्षण का सपना साकार नहीं हो पाता है. जल संरक्षण के लिए खोदे गए बारह सौ से अधिक तालाबों में अधिकतर जहां बेपानी हो चुके हैं, वहीं सरकारी भवनों में लाखों खर्च कर बनी रेन वाटर हार्वेस्टिंग योजना भी पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है. अधिसंख्य स्थानों पर तो कनेक्शन ही नहीं हो पाए हैं. वहीं रख-रखाव के अभाव में किया गया बोरिंग और टैंक भी पूरी तरह से फेल हो चुके हैं.

वर्षा जल अनमोल

वर्षा जल अनमोल प्राकृतिक उपहार है, जो प्रतिवर्ष लगभग पूरी पृथ्वी को बिना किसी भेदभाव के मिलता रहता है. समुचित प्रबंधन के अभाव में वर्षा जल व्यर्थ में बहता हुआ नदी नालों से होकर समुद्र के खारे पानी में मिलकर खारा हो जाता है. वर्तमान समय में जल संकट को दूर करने के लिए वर्षा जल संचयन ही एकमात्र विकल्प है. वर्षा जल के संग्रहण की समुचित व्यवस्था हो तो न केवल जल संकट से जूझते लोग अपनी तकलीफ जरूरतों के लिए पानी जुटा पाएंगे, बल्कि इससे भूजल भी रिचार्ज हो सकेगा. जल दोहन के कारण वर्ष 2013 में शासन ने पूरे जिले में डार्कजोन घोषित कर दिया था.

हालांकि 2019 में सर्वे रिपोर्ट के आधार पर भदोही और ज्ञानपुर ब्लॉक को छोड़कर अन्य चार ब्लॉक सुरियावां, अभोली और औराई और डीघ डार्कजोन के बाहर हो गए हैं. जल संरक्षण की मुहिम के तहत 2018 में मोरवा और वरुणा नदी के जीर्णोद्धार की पहल भी दम तोड़ चुकी है. मनरेगा के तहत करीब 1 करोड़ से अधिक की रकम खर्च हुए लेकिन अब भी मोरवा बेपानी ही दिख रहा है.

चिंताजनक हैं हालात, खिसकता जलस्तर

भूगर्भ जल के लगातार दोहन से कालीन नगरी में जलस्तर काफी चिंताजनक है. लघु सिंचाई विभाग की रिपोर्ट पर गौर करें तो जिले में शुद्ध पुनर्भरण जल क्षमता 400 मिलियन घन मीटर, शुद्ध जल निकास क्षमता 370 मिलियन घन मीटर और भूगर्भ जल विकास स्तर 92.25प्रतिशत है. ऐसे में भूजल दोहन को पूरी तरह प्रतिबंधित करना चाहिए. जल संचयन ना होने से जल स्तर नीचे ही खिसकता जा रहा है.

अवर अभियंता लघु सिंचाई छोटे लाल ने बताया कि एक दशक पूर्व जिन कुओं में 15 से 20 फीट पर पानी मिल जाता था, वहां अब 30 से 35 फीट तक पहुंच चुका है. यही हाल हैंडपंप आदि की बोरिंग में भी देखने को मिलती है. कभी 100 से 120 फीट पर ही शुद्ध पानी मिलता था, जबकि अब 150 से 180 फीट की बोरिंग कराई जा रही है.

एसडीएम शैलेंद्र मिश्रा ने बताया कि जल संरक्षण के लिए तालाबों की खुदाई की गई है. इसके लिए तमाम विधियों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें सीधे जमीन के अंदर खाई बनाकर रिचार्जिंग, कुएं में पानी उतारना, ट्यूबेल में पानी उतारना, और टैंक में जमा करना शामिल है. रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम जिन विभागों में प्रभावित नहीं है, उन्हें निर्देशित किया जाएगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.