संत कबीर नगर : संत कबीर नगर बस्ती मंडल का एक जिला है. इसका मुख्यालय खलीलाबाद में स्थित है. जिले का क्षेत्रफल 1659.15 वर्ग किलोमीटर है. संत कबीर नगर में कुल तीन विधासभा क्षेत्र हैं. धनघटा विधानसभा 314 पहले हैसर विधानसभा के नाम से जाना जाता था. 5 सितंबर 1997 को संत कबीर नगर जिला बनाने के बाद धनघटा विधानसभा हो गई. धनघटा विधानसभा सुतली उद्योग और भरवा मिर्चा के उत्पादन के लिए जाना जाता है.
अब भी बदहाल है धनघटा
धनघटा विधानसभा खलीलाबाद मुख्यालय से 25 किलोमीटर दक्षिण की तरफ बसा है. दक्षिण की तरफ अंबेडकर नगर को जोड़ने वाला एक गुड़हल घाट पुल है जो घाघरा नदी पर बना हुआ है. घाघरा नदी की तलहटी में यहां के स्थानीय लोग खीरा, तरबूज, खरबूज की खेती करते हैं. धनघटा विधानसभा बाढ़ ग्रस्त इलाका है. हर साल लोगों को बाढ़ की मार झेलनी पड़ती है. धनघटा विधानसभा क्षेत्र में कारोबार के नाम पर खेती से ज्यादातर लोग जुड़े हुए हैं. उनके पास व्यवसाय के नाम पर मजदूरी और कुछ छोटे-मोटे काम हैं. यहां पेटुआ सनई की भी खेती की जाती है, जिससे सुतली बनाई जाती है, लेकिन इन किसानों को पर्याप्त मात्रा में संसाधन और सरकारी योजनाओं का पर्याप्त लाभ न मिलने के कारण आज भी धनघटा विधानसभा अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है.
सन् 1991 में जिला बनने के बाद लोगों को उम्मीद जगी थी जिला बनने के बाद इसका विकास होगा और कारोबार के नए संसाधन उपलब्ध होंगे, लेकिन जिला बनने के बाद आज भी धनघटा विधानसभा अपनी बदहाली को देख रहा है. गांव में सड़कों की समस्या मूलभूत सुविधाओं की समस्या सरकारी योजनाओं में घोटाले और बरसात में बाढ़ की समस्या से अब तक जूझ रहा है. हालांकि सरकार विकास का दावा करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है.
धनघटा विधानसभा सीट की सियासत
धनघटा विधानसभा से सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी के विधायक चुनाव में जीत दर्ज कर चुके हैं. 2017 से यहां के विधायक श्रीराम चौहान हैं. धनघटा सीट (एससी) पर 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा के दशरथ यादव को 39164 वोट मिले और वह विधायक चुन लिए गए. वहीं बसपा के राम सिधारे दूसरे नंबर पर रहे थे, जिन्हें 38079 मत मिले थे. धनघटा विधानसभा की यह सीट 2007 से लेकर 2012 तक समाजवादी पार्टी के खाते में रही. 2012 की विधानसभा चुनाव में सपा के विधायक अलगू चौहान ने धनघटा विधानसभा पर झंडा लहरा दिया. वहीं, बसपा के राम सिधारे दूसरे स्थान पर और भाजपा के नीलमणि तीसरे स्थान पर थे.
लगातार पांच चुनावों में यह सीट सपा के पास रही, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर की वजह से धनघटा विधानसभा पर भाजपा के श्रीराम चौहान को जीत मिल गई. 2017 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को श्रीराम चौहान 40.1 प्रतिशत वोट मिले थे. वहीं सपा के अलगू प्रसाद चौहान को 31.58 प्रतिशत वोट मिले, वह दूसरे नंबर पर रहे. बसपा के टिकट पर लड़े नीलमणि को 26.18 प्रतिशत वोट मिले.
विधायक का रिर्पोट कार्ड
श्रीराम चौहान तीसरी बार विधायक हैं. इसके अलावा वे तीन बार बस्ती लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं. अटल जी की सरकार में खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के राज्यमंत्री रहे श्रीराम चौहान को वरिष्ठता और समर्पण का इनाम मिला है. श्रीराम चौहान का जन्म 20 सितंबर 1953 को हुआ. 1984 में पहली बार खलीलाबाद विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिली. 1989 में बीजेपी ने इन्हें हैंसर बाजार विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया. इस बार श्रीराम ने कांग्रेस पार्टी की गेंदा देवी को हरा दिया और पहली बार विधान सभा में पहुंचे. 1991 में इसी सीट से दोबारा जीत दर्ज की, लेकिन 1993 के विधानसभा चुनाव में श्रीराम चौहान को हार का सामना करना पड़ा. 1996 में श्रीराम चौहान को बस्ती लोकसभा सीट से सांसद चुना गया. 1998 और 1999 में भी वह बस्ती से सांसद चुने गए. साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में श्रीराम चौहान को खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों का राज्य मंत्री बनाया गया.
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2004 में लोकसभा चुनाव में बस्ती सीट से चुनाव हारने के कारण वर्ष 2009 में पार्टी ने टिकट नहीं दिया. श्रीराम चौहान साल 2012 के विधानसभा चुनाव में सिद्धार्थनगर के कपिलवस्तु सीट से चुनाव लड़े और हार गए. वर्ष 2017 में धनघटा सीट से भाजपा ने एक बार फिर श्रीराम चौहान को मौका दिया और इस बार भी उन्होंने जीत दर्ज की.
श्री राम चौहान को विधायक बनाए जाने के बाद वह मंत्री बने, लेकिन क्षेत्र की जनता को जो उम्मीद थी वह उम्मीद अभी अधूरी है. बाढ़ की समस्या अभी भी बनी हुई है. सड़कें खस्ता हाल है. गांव में विकास के नाम पर घोटाले सामने आए, जिसकी जांच चल रही है.