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सहारनपुर: अनाथ गांव की कहानी, ग्रामीणों की जुबानी - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

यूपी के सहारनपुर जिले में सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया गांव आज बदहाल स्थिति में है. बल्कि अनाथों की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. सांसद बाबू हुकुम सिंह के निधन के बाद सुखेड़ी गांव में सरकारी योजनाएं तो दूर विकास कार्यों का भी टोटा पड़ा हुआ है.

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अनाथ गांव की कहानी.
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Published : Oct 18, 2020, 10:55 AM IST

सहारनपुर: एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद आदर्श ग्राम योजना चलाकर सभी सांसदों अपने क्षेत्र का गांव गोद लेकर आदर्श ग्राम बनाने के दावे कर रहे हैं. वहीं सहारनपुर का सुखेड़ी गांव सांसद के निधन के बाद न सिर्फ अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. बल्कि अनाथों की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. सांसद बाबू हुकुम सिंह के निधन के बाद सुखेड़ी गांव में सरकारी योजनाएं तो दूर विकास कार्यों का भी टोटा पड़ा हुआ है.

अनाथ गांव की कहानी.

सांसद की मौत के बाद रुका विकास कार्य
बता दें कि 11 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना का शुभारंभ किया था. योजना के तहत सभी सांसदों को 5 साल के कार्यकाल में अपने क्षेत्र के 3-3 गांव गोद लेकर आदर्श ग्राम बनाने के निर्देश दिए गए थे. पीएम मोदी के निर्देश पर कैराना से सांसद स्व. बाबू हुकम सिंह ने भी सहारनपुर की विधानसभा क्षेत्र के सुखेड़ी गांव को गोद लिया था. सुखेड़ी गांव को गोद लिए जाने के बाद ग्रामीणों में जश्न का माहौल बना हुआ था. हर किसी को गांव में शहर जैसी सुविधाएं मिलने की आस लगी थी.

अब खुल रही सरकार की पोल
समय के साथ-साथ गांव में कुछ योजनाओं के तहत थोड़ा बहुत काम भी होने लगा. गांव में पानी की टंकी का निर्माण किया गया. साथ ही तीन गलियां भी बनाई गईं. ओडीएफ योजना के तहत घरों में शौचालयों का निर्माण कराया गया. इसके अलावा लड़कियों के लिए कन्या इंटर कॉलेज प्रस्तावित हुआ था जो मौजूदा सांसद ने दूसरे गांव में ट्रांसफर करा दिया. ग्राम प्रधान प्रतिनिधि के मुताबिक सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत सुखेड़ी गांव में कुल एक करोड़ का भी काम नहीं हो पाया है. आलम यह है कि स्वस्छ्ता मिशन अभियान की भी धज्जिया उड़ाई जा रही है. गलियों में बहता पानी और सड़क किनारे कूड़े के ढेर, सरकारी दावों को पोल खोलने के लिए काफी है.

गांव हो गया अनाथ
3 फरवरी 2018 को बीमारी के चलते सांसद बाबू हुकुम सिंह का निधन हो गया. सांसद के निधन को खबर मिली तो गांव पर दुखों का पहाड़ टूट गया. एक पल में हंसता खेलता गांव अनाथ हो गया. सांसद के निधन के साथ-साथ उनके गांव को आदर्श ग्राम बनाने का सपना भी चकनाचूर हो गया. विकास कार्यों से वंचित गांव में विकास कार्य होने लगे थे. हालांकि एक गांव को शहर जैसी सुविधाएं देने की घोषणा देने के बाद सुखेड़ी गांव के ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना नहीं था. बाबू हुकम सिंह ने सांसद निधि से विकास कार्य कराने शुरू भी किए, लेकिन बीमारी के कारण उनकी मौत हो गई.

नहीं लगा गांव में टावर

ग्रामीणों का कहना है कि पिछले ढाई साल से उनका गांव सरकारी योजनाओं और विकास कार्यों की बाट जोह रहा है. गांव में न तो अस्पताल बना है और ना ही इंटर कॉलेज आया है. wifi लगाना तो दूर मोबाइल कंपनी का टावर भी नहीं लगा है. जिससे ग्रामीणों को फोन पर बात करने और स्कूली बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करने में परेशानी हो रही है. स्ट्रीट लाइट और पक्की नालियां भी नहीं बनी है. एक दो गलियां उन्ही के कार्यकाल में बनाई गई थी. उनकी मौत के बाद चुने गए नए सांसद और विधायक उनके गांव में केवल वोट मांगने ही आए थे. उसके बाद कभी गांव आकर उनकी सुध नहीं ली. उधर खण्ड विकास अधिकारी विजय कुमार तिवारी का कहना है कि सांसद के निधन के बाद भी सरकारी योजनाएं यथावत काम कर रही हैं. गांव में किसी तरह की कोई समस्या नहीं है. लगातार स्वच्छता एवं सफाई सबंधी कार्य किए जा रहे हैं.

सहारनपुर: एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद आदर्श ग्राम योजना चलाकर सभी सांसदों अपने क्षेत्र का गांव गोद लेकर आदर्श ग्राम बनाने के दावे कर रहे हैं. वहीं सहारनपुर का सुखेड़ी गांव सांसद के निधन के बाद न सिर्फ अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. बल्कि अनाथों की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. सांसद बाबू हुकुम सिंह के निधन के बाद सुखेड़ी गांव में सरकारी योजनाएं तो दूर विकास कार्यों का भी टोटा पड़ा हुआ है.

अनाथ गांव की कहानी.

सांसद की मौत के बाद रुका विकास कार्य
बता दें कि 11 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना का शुभारंभ किया था. योजना के तहत सभी सांसदों को 5 साल के कार्यकाल में अपने क्षेत्र के 3-3 गांव गोद लेकर आदर्श ग्राम बनाने के निर्देश दिए गए थे. पीएम मोदी के निर्देश पर कैराना से सांसद स्व. बाबू हुकम सिंह ने भी सहारनपुर की विधानसभा क्षेत्र के सुखेड़ी गांव को गोद लिया था. सुखेड़ी गांव को गोद लिए जाने के बाद ग्रामीणों में जश्न का माहौल बना हुआ था. हर किसी को गांव में शहर जैसी सुविधाएं मिलने की आस लगी थी.

अब खुल रही सरकार की पोल
समय के साथ-साथ गांव में कुछ योजनाओं के तहत थोड़ा बहुत काम भी होने लगा. गांव में पानी की टंकी का निर्माण किया गया. साथ ही तीन गलियां भी बनाई गईं. ओडीएफ योजना के तहत घरों में शौचालयों का निर्माण कराया गया. इसके अलावा लड़कियों के लिए कन्या इंटर कॉलेज प्रस्तावित हुआ था जो मौजूदा सांसद ने दूसरे गांव में ट्रांसफर करा दिया. ग्राम प्रधान प्रतिनिधि के मुताबिक सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत सुखेड़ी गांव में कुल एक करोड़ का भी काम नहीं हो पाया है. आलम यह है कि स्वस्छ्ता मिशन अभियान की भी धज्जिया उड़ाई जा रही है. गलियों में बहता पानी और सड़क किनारे कूड़े के ढेर, सरकारी दावों को पोल खोलने के लिए काफी है.

गांव हो गया अनाथ
3 फरवरी 2018 को बीमारी के चलते सांसद बाबू हुकुम सिंह का निधन हो गया. सांसद के निधन को खबर मिली तो गांव पर दुखों का पहाड़ टूट गया. एक पल में हंसता खेलता गांव अनाथ हो गया. सांसद के निधन के साथ-साथ उनके गांव को आदर्श ग्राम बनाने का सपना भी चकनाचूर हो गया. विकास कार्यों से वंचित गांव में विकास कार्य होने लगे थे. हालांकि एक गांव को शहर जैसी सुविधाएं देने की घोषणा देने के बाद सुखेड़ी गांव के ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना नहीं था. बाबू हुकम सिंह ने सांसद निधि से विकास कार्य कराने शुरू भी किए, लेकिन बीमारी के कारण उनकी मौत हो गई.

नहीं लगा गांव में टावर

ग्रामीणों का कहना है कि पिछले ढाई साल से उनका गांव सरकारी योजनाओं और विकास कार्यों की बाट जोह रहा है. गांव में न तो अस्पताल बना है और ना ही इंटर कॉलेज आया है. wifi लगाना तो दूर मोबाइल कंपनी का टावर भी नहीं लगा है. जिससे ग्रामीणों को फोन पर बात करने और स्कूली बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करने में परेशानी हो रही है. स्ट्रीट लाइट और पक्की नालियां भी नहीं बनी है. एक दो गलियां उन्ही के कार्यकाल में बनाई गई थी. उनकी मौत के बाद चुने गए नए सांसद और विधायक उनके गांव में केवल वोट मांगने ही आए थे. उसके बाद कभी गांव आकर उनकी सुध नहीं ली. उधर खण्ड विकास अधिकारी विजय कुमार तिवारी का कहना है कि सांसद के निधन के बाद भी सरकारी योजनाएं यथावत काम कर रही हैं. गांव में किसी तरह की कोई समस्या नहीं है. लगातार स्वच्छता एवं सफाई सबंधी कार्य किए जा रहे हैं.

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