सहारनपुर: रविवार को 'फॉदर्स डे' देश भर में ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों में धूमधाम से मनाया गया. एक तरफ, जहां कई बेटों ने अपने पिता को तोहफे देकर उनका सम्मान किया, वहीं कई बेटे सैकड़ों मील दूर से पिता से मिलने के लिए घर आए. लेकिन बहू-बेटों की बेरुखी से तंग सहारनपुर के वृद्धाश्रम में रह रहे एक बुजुर्ग के मैनेजर बेटे ने उनसे मिलने आना तो दूर, फोन करके हालचाल भी नहीं लिया.
कौन हैं रमेश बंसल...
- रमेश बंसल नाम के ये बुजुर्ग मूल रूप से पंजाब के रहने वाले है.
- करीब 40 साल पहले रमेश सहारनपुर आकर बस गए.
- रमेश के दो बेटे हैं.
- एक बेटा अंबाला के बैंक में ब्रांच मैनजर है जबकि दूसरा दिल्ली में शेयर मार्केट में मैनेजर की पोस्ट पर नौकरी करता है.
रमेश बंसल ने ईटीवी भारत से साझा किया अपना दर्द ...
- रमेश बंसल ने ईटीवी से अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि उन्होंने अपने बेटों के लिए जी तोड़ मेहनत की.
- बेटों को पढ़ाया- लिखाया और उन्हें काबिल बनाकर शादी भी कर दी.
मुझे नहीं पता था कि जिन बेटों को मैं अपनी बुढ़ापे की लाठी समझता था, वह बीवी के कहे में आकर मुझे घर से बेघर कर देंगे. दोनों बेटों ने जबरन मेरा घर भी बेच दिया और लाखों रुपये हड़प लिए.
-रमेश बंसल, बेबस पिता
...दो वक्त का खाना भी नहीं दे पाए बेटे
- रमेश के दोनों बेटों ने उनकी देखभाल करना तो दूर, उन्हें दो वक्त का खाना भी नहीं दिया.
- बेटों की बेरुखी के कारण रमेश वृद्धाश्रम में आ गए.
- उन्होंने बताया कि जब भी वे खाना मांगते तो उनकी बहुएं खरी-खोटी सुनाकर ताना मारतीं रहतीं.
- कुछ साल पहले उनकी पत्नी का भी निधन हो गया.
- पत्नी की मौत के बाद लाचार बूढ़ा शरीर पूरी तरह बेटों पर आश्रित हो गया.
- बहुओं को दो समय की रोटी देना बोझ लगने लगा और उन्हें घर से निकाल दिया.
इस पिता को उम्मीद थी कि इस 'फॉदर डे' पर उनका बेटा उनसे मिलने जरूर आएगा, लेकिन सुबह से शाम तक बेटों की राह तकते-तकते इनकी आंखे पथरा गई. बेटों का आना तो दूर उनका फोन भी नहीं आया. बेटों की बेरुखी के चलते अब इस पिता ने वृद्धाश्रम को ही अपना घर-परिवार मान लिया है. उनका कहना है कि जीना भी यहां और मरना भी यहां...