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'फादर्स डे' पर मिलने नहीं आया मैनेजर बेटा, राह देखती रहीं बुजुर्ग पिता की आंखें - fathers day

सहारनपुर के वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग पिता को उम्मीद थी कि 'फादर्स डे' के मौके पर पर उनका बैंक मैनेजर बेटा उनसे मिलने जरूर आएगा, लेकिन सुबह से शाम हो गई बेटा नहीं आया. उन्होंने बताया कि उम्र के इस पड़ाव में उनके बेटे और बहुओं ने उन्हें खाना देने से मना करते हुए घर से निकाल कर रुपये हड़प लिए.

रमेश बंसल, बेबस पिता.
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Published : Jun 17, 2019, 3:19 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

सहारनपुर: रविवार को 'फॉदर्स डे' देश भर में ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों में धूमधाम से मनाया गया. एक तरफ, जहां कई बेटों ने अपने पिता को तोहफे देकर उनका सम्मान किया, वहीं कई बेटे सैकड़ों मील दूर से पिता से मिलने के लिए घर आए. लेकिन बहू-बेटों की बेरुखी से तंग सहारनपुर के वृद्धाश्रम में रह रहे एक बुजुर्ग के मैनेजर बेटे ने उनसे मिलने आना तो दूर, फोन करके हालचाल भी नहीं लिया.

कलयुगी बेटों ने वृद्ध पिता को घर से निकाला.

कौन हैं रमेश बंसल...

  • रमेश बंसल नाम के ये बुजुर्ग मूल रूप से पंजाब के रहने वाले है.
  • करीब 40 साल पहले रमेश सहारनपुर आकर बस गए.
  • रमेश के दो बेटे हैं.
  • एक बेटा अंबाला के बैंक में ब्रांच मैनजर है जबकि दूसरा दिल्ली में शेयर मार्केट में मैनेजर की पोस्ट पर नौकरी करता है.

रमेश बंसल ने ईटीवी भारत से साझा किया अपना दर्द ...

  • रमेश बंसल ने ईटीवी से अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि उन्होंने अपने बेटों के लिए जी तोड़ मेहनत की.
  • बेटों को पढ़ाया- लिखाया और उन्हें काबिल बनाकर शादी भी कर दी.

मुझे नहीं पता था कि जिन बेटों को मैं अपनी बुढ़ापे की लाठी समझता था, वह बीवी के कहे में आकर मुझे घर से बेघर कर देंगे. दोनों बेटों ने जबरन मेरा घर भी बेच दिया और लाखों रुपये हड़प लिए.

-रमेश बंसल, बेबस पिता

...दो वक्त का खाना भी नहीं दे पाए बेटे

  • रमेश के दोनों बेटों ने उनकी देखभाल करना तो दूर, उन्हें दो वक्त का खाना भी नहीं दिया.
  • बेटों की बेरुखी के कारण रमेश वृद्धाश्रम में आ गए.
  • उन्होंने बताया कि जब भी वे खाना मांगते तो उनकी बहुएं खरी-खोटी सुनाकर ताना मारतीं रहतीं.
  • कुछ साल पहले उनकी पत्नी का भी निधन हो गया.
  • पत्नी की मौत के बाद लाचार बूढ़ा शरीर पूरी तरह बेटों पर आश्रित हो गया.
  • बहुओं को दो समय की रोटी देना बोझ लगने लगा और उन्हें घर से निकाल दिया.

इस पिता को उम्मीद थी कि इस 'फॉदर डे' पर उनका बेटा उनसे मिलने जरूर आएगा, लेकिन सुबह से शाम तक बेटों की राह तकते-तकते इनकी आंखे पथरा गई. बेटों का आना तो दूर उनका फोन भी नहीं आया. बेटों की बेरुखी के चलते अब इस पिता ने वृद्धाश्रम को ही अपना घर-परिवार मान लिया है. उनका कहना है कि जीना भी यहां और मरना भी यहां...

सहारनपुर: रविवार को 'फॉदर्स डे' देश भर में ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों में धूमधाम से मनाया गया. एक तरफ, जहां कई बेटों ने अपने पिता को तोहफे देकर उनका सम्मान किया, वहीं कई बेटे सैकड़ों मील दूर से पिता से मिलने के लिए घर आए. लेकिन बहू-बेटों की बेरुखी से तंग सहारनपुर के वृद्धाश्रम में रह रहे एक बुजुर्ग के मैनेजर बेटे ने उनसे मिलने आना तो दूर, फोन करके हालचाल भी नहीं लिया.

कलयुगी बेटों ने वृद्ध पिता को घर से निकाला.

कौन हैं रमेश बंसल...

  • रमेश बंसल नाम के ये बुजुर्ग मूल रूप से पंजाब के रहने वाले है.
  • करीब 40 साल पहले रमेश सहारनपुर आकर बस गए.
  • रमेश के दो बेटे हैं.
  • एक बेटा अंबाला के बैंक में ब्रांच मैनजर है जबकि दूसरा दिल्ली में शेयर मार्केट में मैनेजर की पोस्ट पर नौकरी करता है.

रमेश बंसल ने ईटीवी भारत से साझा किया अपना दर्द ...

  • रमेश बंसल ने ईटीवी से अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि उन्होंने अपने बेटों के लिए जी तोड़ मेहनत की.
  • बेटों को पढ़ाया- लिखाया और उन्हें काबिल बनाकर शादी भी कर दी.

मुझे नहीं पता था कि जिन बेटों को मैं अपनी बुढ़ापे की लाठी समझता था, वह बीवी के कहे में आकर मुझे घर से बेघर कर देंगे. दोनों बेटों ने जबरन मेरा घर भी बेच दिया और लाखों रुपये हड़प लिए.

-रमेश बंसल, बेबस पिता

...दो वक्त का खाना भी नहीं दे पाए बेटे

  • रमेश के दोनों बेटों ने उनकी देखभाल करना तो दूर, उन्हें दो वक्त का खाना भी नहीं दिया.
  • बेटों की बेरुखी के कारण रमेश वृद्धाश्रम में आ गए.
  • उन्होंने बताया कि जब भी वे खाना मांगते तो उनकी बहुएं खरी-खोटी सुनाकर ताना मारतीं रहतीं.
  • कुछ साल पहले उनकी पत्नी का भी निधन हो गया.
  • पत्नी की मौत के बाद लाचार बूढ़ा शरीर पूरी तरह बेटों पर आश्रित हो गया.
  • बहुओं को दो समय की रोटी देना बोझ लगने लगा और उन्हें घर से निकाल दिया.

इस पिता को उम्मीद थी कि इस 'फॉदर डे' पर उनका बेटा उनसे मिलने जरूर आएगा, लेकिन सुबह से शाम तक बेटों की राह तकते-तकते इनकी आंखे पथरा गई. बेटों का आना तो दूर उनका फोन भी नहीं आया. बेटों की बेरुखी के चलते अब इस पिता ने वृद्धाश्रम को ही अपना घर-परिवार मान लिया है. उनका कहना है कि जीना भी यहां और मरना भी यहां...

Intro:सहारनपुर : रविवार को फॉदर डे देश भर में ही नही दुनिया के तमाम देशों में धूमधाम से मनाया गया। सोशल मोडिया से लेकर घर परिवार में फॉदर डे की खूब शुभकामानाएं दी गई। युवाओ और कलयुगी बेटों ने भी अपने पिता के लिए बड़ी बड़ी बातें लिखी। जहां कई बेटों ने अपने पिता को तोहफे देकर सम्मान किया वहीं कई बेटे सेकड़ो मील से पिता को मिलने घर आये। लेकिन बहु बेटों की बेरुखी से तंग सहारनपुर के वृध्दाश्रम में रह एक बुजुर्ग के मैनेजर बेटे उनसे मिलने तो दूर पिता दिवस पर फोन करके भी हालचाल नही लिया। बुजुर्ग पिता को उम्मीद थी कि पिता दिवस के मौके पर उनके मैनेजर बेटे जरूर मिलने आएंगे लेकिन सुबह से शाम हो गई बेटे नही आये। ईटीवी ने बेबश पिता के पास पहुंच उनका दर्द साझा किया तो उनकी आंख भर आईं। उन्होंने बताया कि उम्र के इस पड़ाव में उनके बेटे बहुओं ने उन्हें खाना देने से मना कर दिया। इतना ही नही उनका मकान बेच कर पैसे भी हड़प लिए और घर से निकाल दिया। जिसके चलते अब ये पिता वृध्दाश्रम में अपनी आगे की जिंदगी काट रहे है।


Body:VO 1 - आपको बता दें कि रमेश बंसल नाम के ये बुजुर्ग मूल रूप से पंजाब के रहने वाले है। करीब 40 साल पहले सहारनपुर आकर बस गए। इनके दो बेटे है जिनमे से एक अंबाला के बैंक में ब्रांच मैनजर है जबकि दूसरा दिल्ली में शेयर मार्किट में मैनेजर की पोस्ट पर नोकरी करता है। दोनों बेटे अच्छा ख़ासा कमाते है। रमेश बंसल ने ईटीवी से अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि उन्होंने अपने बेटों के लिए जी तोड़ मेहनत की। पढ़ाया लिखाया और उन्हें काबिल कर ब्याह शादी भी कर दी। लेकिन उन्हें क्या पता था जिन बेटों को वे अपने बुढ़ापे की लाठी समझते है वे बीवी के कहे में आकर उसे घर से बेघर कर देंगे। दोनों बेटों ने जबरन पिता का घर भी बेच दिया और उनके पैसे हड़प लिये। बावजूद इसके दोनों बेटों ने उनकी देखभाल करना तो दूर उन्हें दो समय का खाना भी नही दिया। जिसके चलते बूढ़ा शरीर लेकर ये सहारनपुर के वृध्दाश्रम में आ गए। उन्होंने ईटीवी को बताया कि जब भी वे खाना मांगते तो उनकी बहुएं खरी खोटी सुनाकर ताना मारती रहती। उधर कुछ साल पहले उनकी पत्नी का भी निधन हो गया। पत्नी की मौत के बाद लाचार बूढ़ा शरीर पूरी तरह बेटों पर आश्रित हो गया। लेकिन बहुओं को दो समय की रोटी देना बोझ लगने लगा और बेटों ने उन्हें घर से निकाल दिया। इन पिता को उम्मीद थी कि इस फॉदर डे पर उसके बेटे मिलने जरूर आएंगे।लेकिन सुबह से शाम तक बेटों की राह तकते तकते इनकी आंखे पत्थरा गई बेटों का आना तो दूर उनका फोन भी नही आया। बेटों की बेरुखी के चलते अब इस पिता ने वृध्दाश्रम को को अपना घर परिवार मान लिया है। उनका कहना है कि जीना भी यही, मरना भी यहां।

बाईट - रमेश बंसल ( बेबश पिता )


Conclusion:रोशन लाल सैनी
सहारनपुर
9121293042
9759945153
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST
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