सहारनपुर: जिले में 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है. जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएस सोढ़ी ने बताया कि समाज में बच्चे जंक फूड खाना अधिक पसंद कर रहे हैं, जो सेहत और दिमाग दोनों के लिए हानिकारक है. डॉक्टर ने बताया कि कम उम्र के बच्चों के लिए मोबाइल फोन भी दिमाग के लिए बहुत ही नुकसानदायक है.
मोबाइल से हो रहा बच्चों में तनाव. मोबाइल फोन बढ़ा रहा मानसिक तनावमुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएस सोढ़ी ने बताया कि जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित कर तनाव एवं अवशाद से उबारने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है. बावजूद इसके आज बच्चा मानसिक विकार एवं तनाव की झपेट में आ रहा है. बिना किसी वजह से बच्चे और युवा दोनों ही तनाव में आकर घर छोड़ना और आत्महत्या जैसे घातक कदम उठा रहे हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक मानसिक तनाव की बीमारी बड़ी समस्या बनती जा रही है, जिसकी मुख्य वजह खानपान तो है ही, साथ ही मोबाइल फोन भी मानसिक तनाव बढ़ाने का काम कर रहा है.
युवा हो रहे हैं मानसिक बीमारी का शिकारहर वर्ष 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक दिवस मनाया जाता है. इस दिन सरकार की ओर से प्रत्येक जिले में जगह जगह कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है, ताकि लोग अपने साथ बच्चों को भी मानसिक तनाव से बचा सकें. जानलेवा बुखार और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के सामने मानसिक तनाव को लोग हल्के में लेकर चलते हैं, लेकिन यह मानसिक तनाव ही शुगर, ब्लड प्रेशर और हार्ट संबंधी बीमारियों को जन्म देता है. खास बात यह है कि वर्तमान में मानसिक तनाव की झपेट में ज्यादातर युवा वर्ग आ रहा है. जानकारों के मुताबिक 7 साल के बच्चे से लेकर 25 साल तक के युवा मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे हैं.
शॉर्टकट अपनाना बंद करें युवासहारनपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएस सोढ़ी ने बताया कि आज का युवा कम समय में शॉर्टकट मारकर पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है. इसकी मुख्य वजह आइडेंटिक क्राइसिस वर्ड होता है. इसमें हर वर्ग का इंसान बच्चा हो या युवा समाज में अपनी एक पहचान बनाना चाहता है. उसके लिए कई लोग सब्र कर लेते हैं, जबकि ज्यादातर लोग शॉर्टकट रास्ता अपनाते हैं. कई बार कुछ बनने के लिए ऐसे लोग गलत रास्ता और साधन इस्तेमाल कर अपने आपको दिखाने के प्रयास करते हैं.
माता-पिता को बदलना चाहिए घर का वातावरणआज के बच्चों को पुरानी पीढ़ी के बच्चों से तुलना करें तो पहले बच्चों को पढ़ाई, अन्य काम और खेलने का समय तय किया जाता था, लेकिन आजकल बच्चों का व्यवहार बदलता जा रहा है. ऐसे बच्चों का बचपन से परिवार देखरेख नहीं कर पाते, क्योंकि उनके माता पिता भी विभिन्न कारणों से तनाव में रहते हैं. वे अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते, जिसके चलते वे बच्चे अपनी समस्या न तो अपनी मां से शेयर कर पाते हैं और न ही पिता को बता पाते हैं. इसके कारण वे मानसिक तनाव के शिकार होते हैं. यही वजह है कि ऐसे बच्चे कम उम्र में ही डिप्रेशन में आ जाते हैं.
खेल-कूद महत्वपूर्ण साधन पहले बच्चे बाहर घूमने फिरने के साथ क्रिकेट, बैडमिंटन, हॉकी के साथ अन्य खेल-कूद भी करते रहते थे. खेल में हार जीत होती थी, तो बच्चा उस हार को स्वीकार कर लेता था. आज हार हुई है, तो कल जीत होगी ऐसा विचार उनके मन में रहता था, लेकिन आज के बच्चे बाहर खेलने के लिए निकलते ही नहीं और मामूली सी बात पर वह डिप्रेशन में चले जाते हैं.
फास्ट फूड छोड़कर अपनाएं पौष्टिक आहारइसके पीछे खान-पान और मोबाइल फोन का इस्तेमाल भी बड़ी समस्या है. आज-कल के बच्चे हरी सब्जियां, पौष्टिक खाना छोड़कर जंक फूड और फास्ट फूड की तरफ ज्यादा जा रहे हैं. आदत इतनी खराब हो गई है कि खाने का कोई समय नहीं है. जब मन किया फास्ट फूड खा लिया, जो कि शरीर के लिए ही नहीं दिमाग के लिए भी हानिकारक होता है. कुल मिलाकर आज का युवा पौष्टिक छोड़कर स्वाद के पीछे दौड़ रहा है.
छोटे बच्चों को मोबाइल से रखें दूरआधुनिकता के दौर में मोबाइल फोन भी डिप्रेशन का मुख्य कारण बनता जा रहा है. बड़ों से बेहतर छोटे-छोटे बच्चे स्मार्ट फोन चला रहे हैं. बड़े हो या बच्चे हर कोई मोबाइल में व्यस्त रहते हैं और जब जिंदगी की हकीकत से रूबरू होता है, तो इस वक्त वह अपने आपको असहाय समझने लगता है और मानसिक तनाव का शिकार होने लगता है.
तनाव से बचाव के लिए माता पिता को अपने घर का माहौल बदलना चाहिए. बच्चों को बाहरी एक्टिविटी कराते रहें, जिससे प्रतिदिन बच्चा हार जीत को फेश करता रहे. साथ ही पौष्टिक खान-पान देते रहें. मोबाइल फोन से होने वाले फायदे-नुकसान की जानकारी बच्चों को देनी चाहिए. उनके साथ दोस्तों की तरह व्यवहार करें. उनके साथ अच्छा व्यवहार रखें. इसके लिए सरकर की ओर से भी जागरूकता कार्यक्रम किये जा रहे हैं.
डॉ. बीएस सोढ़ी, सीएमओ