ETV Bharat / state

अब लार की जांच से पता लग जाएगा मुंह का कैंसर, लखनऊ के सीबीएमआर ने किया रिसर्च - LUCKNOW CBMR

अब मुंह के कैंसर की पहचान लार से हो सकेगी. लखनऊ के सीबीएमआर और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने अपनी रिसर्च में इसकी पुष्टि की है.

ETV Bharat
लखनऊ सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च (pic credit; ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 19, 2025, 5:00 PM IST

लखनऊ: आने वाले समय में लार से ही मुंह के कैंसर की पहचान हो सकेगी. लखनऊ के सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए अध्ययन में इसकी पुष्टि हुई है. इसे मॉलेकुलर ओमिक्स जर्नल ने मान्यता देते हुए प्रकाशित किया है.

इस अध्ययन से भविष्य में कैंसर के मरीजों की पहचान शुरुआती चरण में हो सकेगी, जिससे इलाज करना आसान होगा. सीबीएमआर के डीन प्रो. नीरज सिन्हा और अनामिका सिंह के साथ बीएचयू के डॉ. राहुल यादव, डॉ. व्योमिका बंसल, डॉ. प्रीति तिवारी और चंदन सिंह ने 100 लोगों पर यह अध्ययन किया.

प्रो. नीरज सिन्हा ने बताया कि पहले समूह में 50 स्वस्थ्य व्यक्ति थे. दूसरे में मुख कैंसर से पहले चरण की अवस्था और कैंसर की पुष्टि वाले 50 मरीज थे. सभी की लार का सैंपल लिया गया. इनमें एनएमआर स्पेक्ट्रोस्कोपी से मेटाबोलाइट्स की जांच की गई. दोनों समूह में 70 फीसदी तक अंतर मिला.


इसे भी पढ़ें - यूपी के कैंसर मरीजों को मिलेगी राहत; लखनऊ के इस संस्थान में नए 350 बेड, होगी माइक्रो वैस्कुलर सर्जरी - KALYAN SINGH CANCER INSTITUTE


तीन मेटाबोलाइट्स में दिखा अंतर : प्रो. नीरज सिन्हा ने कहा कि शरीर में सबसे पहले जीन का अध्ययन होता है. जीन के भीतर प्रोटीन और इसके अंदर मेटाबोलाइट्स का अध्ययन करके बदलाव देखा जाता है. इस अध्ययन में 20 मेटाबोलाइट्स की पहचान की गई. दोनों समूह की जांच में नौ मेटाबोलाइट्स में 70 फीसदी से ज्यादा का अंतर दिखा.

ये मेटाबोलाइट्स एसीटोन, ट्रिप्टोफेन, 5-एमिनोपेटानोइक एसिड, बीटाइन, एसपारटिक एसिड, इथेनॉल, एसीटोएसीटेट, एडिपिक एसिड और साइट्रेट थे. विशेष रूप से तीन मेटाबोलाइट्स एसीटोन, ट्रिप्टोफैन और 5-एमिनोपेंटानोइक एसिड में यह अंतर बेहद ज्यादा था. इन्हें कैंसर के जोखिम कारक के रूप में देखा गया.

स्टेज-1 और स्टेज-2 के बीच अंतर करना भी हो जाएगा संभव : इस अध्ययन से कैंसर के पहले व दूसरे चरण के मरीजों में अंतर करना भी संभव हो सकेगा. कैंसर का शुरुआती चरण में इलाज आसानी से संभव है. जैसे-जैसे इसकी स्टेज बढ़ती है, इलाज मुश्किल हो जाता है.

हर साल मुंह के कैंसर से 52 हजार मौतें : कैंसर में मुंह के कैंसर के मामले सबसे ज्यादा होते हैं. उत्तर प्रदेश और आसपास के क्षेत्र में तंबाकू के ज्यादा सेवन से इसके मामले सबसे अधिक यहीं हैं. पूरे विश्व में मुख कैंसर के मामलों में एक तिहाई अकेले भारत में ही हैं. देश में हर साल मुख कैंसर के 77 हजार नए मामले और करीब 52 हजार मौतें होती हैं.

यह भी पढ़ें - लखनऊ के इस कैंसर संस्थान में लगेंगी 7 करोड़ की मशीनें; ब्लड इंफेक्शन की होगी तुरंत जांच - KALYAN SINGH CANCER INSTITUTE LKO

लखनऊ: आने वाले समय में लार से ही मुंह के कैंसर की पहचान हो सकेगी. लखनऊ के सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए अध्ययन में इसकी पुष्टि हुई है. इसे मॉलेकुलर ओमिक्स जर्नल ने मान्यता देते हुए प्रकाशित किया है.

इस अध्ययन से भविष्य में कैंसर के मरीजों की पहचान शुरुआती चरण में हो सकेगी, जिससे इलाज करना आसान होगा. सीबीएमआर के डीन प्रो. नीरज सिन्हा और अनामिका सिंह के साथ बीएचयू के डॉ. राहुल यादव, डॉ. व्योमिका बंसल, डॉ. प्रीति तिवारी और चंदन सिंह ने 100 लोगों पर यह अध्ययन किया.

प्रो. नीरज सिन्हा ने बताया कि पहले समूह में 50 स्वस्थ्य व्यक्ति थे. दूसरे में मुख कैंसर से पहले चरण की अवस्था और कैंसर की पुष्टि वाले 50 मरीज थे. सभी की लार का सैंपल लिया गया. इनमें एनएमआर स्पेक्ट्रोस्कोपी से मेटाबोलाइट्स की जांच की गई. दोनों समूह में 70 फीसदी तक अंतर मिला.


इसे भी पढ़ें - यूपी के कैंसर मरीजों को मिलेगी राहत; लखनऊ के इस संस्थान में नए 350 बेड, होगी माइक्रो वैस्कुलर सर्जरी - KALYAN SINGH CANCER INSTITUTE


तीन मेटाबोलाइट्स में दिखा अंतर : प्रो. नीरज सिन्हा ने कहा कि शरीर में सबसे पहले जीन का अध्ययन होता है. जीन के भीतर प्रोटीन और इसके अंदर मेटाबोलाइट्स का अध्ययन करके बदलाव देखा जाता है. इस अध्ययन में 20 मेटाबोलाइट्स की पहचान की गई. दोनों समूह की जांच में नौ मेटाबोलाइट्स में 70 फीसदी से ज्यादा का अंतर दिखा.

ये मेटाबोलाइट्स एसीटोन, ट्रिप्टोफेन, 5-एमिनोपेटानोइक एसिड, बीटाइन, एसपारटिक एसिड, इथेनॉल, एसीटोएसीटेट, एडिपिक एसिड और साइट्रेट थे. विशेष रूप से तीन मेटाबोलाइट्स एसीटोन, ट्रिप्टोफैन और 5-एमिनोपेंटानोइक एसिड में यह अंतर बेहद ज्यादा था. इन्हें कैंसर के जोखिम कारक के रूप में देखा गया.

स्टेज-1 और स्टेज-2 के बीच अंतर करना भी हो जाएगा संभव : इस अध्ययन से कैंसर के पहले व दूसरे चरण के मरीजों में अंतर करना भी संभव हो सकेगा. कैंसर का शुरुआती चरण में इलाज आसानी से संभव है. जैसे-जैसे इसकी स्टेज बढ़ती है, इलाज मुश्किल हो जाता है.

हर साल मुंह के कैंसर से 52 हजार मौतें : कैंसर में मुंह के कैंसर के मामले सबसे ज्यादा होते हैं. उत्तर प्रदेश और आसपास के क्षेत्र में तंबाकू के ज्यादा सेवन से इसके मामले सबसे अधिक यहीं हैं. पूरे विश्व में मुख कैंसर के मामलों में एक तिहाई अकेले भारत में ही हैं. देश में हर साल मुख कैंसर के 77 हजार नए मामले और करीब 52 हजार मौतें होती हैं.

यह भी पढ़ें - लखनऊ के इस कैंसर संस्थान में लगेंगी 7 करोड़ की मशीनें; ब्लड इंफेक्शन की होगी तुरंत जांच - KALYAN SINGH CANCER INSTITUTE LKO

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.