सहारनपुर: शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का जन्मदिन सोमवार को देश भर में धूमधाम से मनाया गया. वहीं शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के जन्मदिन पर सरकार की ओर से पूरे देश में कहीं कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया. हालांकि पंजाब प्रांत में न सिर्फ राजकीय अवकाश घोषित है, बल्कि राज्य सरकार भगत सिंह के जन्मदिन को मनाती है. खास बात तो यह है कि केंद्र सरकार भगत सिंह को शहीद भी मानने को तैयार नहीं है. इसका खुलासा कुछ दिन पहले एक आरटीआई में हो चुका है.
भगत सिंह के जन्मदिन पर ETV भारत की टीम ने उनके भतीजे सरदार किरनजीत सिंह से खास बातचीत की. भगत सिंह के भतीजे सरदार किरनजीत सिंह सिंधु ने बताया कि सरकार 1947 से पहले बलिदान देने वालों को शहीद का दर्जा नहीं दे रही. भगत सिंह के जन्मदिन के दिन को राष्ट्रीय अवकाश की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि अगर अवकाश नहीं कर सकती तो पाठ्यक्रमों में युवाओं को शहीदों के बारे में पढ़ाया जाए. वहीं उन्होंने कृषि सबन्धित बिल का विरोध करते हुए कहा कि भगत सिंह का परिवार इन बिलों का विरोध करता है क्योंकि इससे महंगाई तो बढ़ेगी ही किसान को भी बड़ा नुकसान होने वाला है.
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का का जन्म 28 सितंबर 1907 को फैसलाबाद जिले के छोटे से ग़ांव में हुआ था. उन्होंने देश की आजादी के लिए अल्पायु में ही न सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी थी, बल्कि हंसते-हंसते फांसी के फंदे से झूल गए थे. ETV भारत से खास बातचीत में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के भतीजे सरदार किरनजीत सिंह ने बताया कि आज उनका 113वां जन्मदिन मनाया जा रहा है. जिस तरह से उनके ताऊ सरदार भगत सिंह ने बहादुरी और निडरता के साथ हंसते-हंसते देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. वह आज भी देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है. जिन मुद्दों को लेकर समाज के उत्थान के लिए बलिदान दिया था वो सब अभी अधूरे हैं. आज देश में जहां बहुत तरक्की हुई, वहीं किसान बहुत दुखी है.
अभी हाल फिलहाल में कृषि सम्बन्धित तीन बिल पारित किए गए हैं. उन बिल ने किसानों की कमर तोड़ दी है और सारे किसान उसके विरुद्ध लामबंद होकर सड़क पर उतर आए हैं. उन्होंने बताया कि सरदार भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने पगड़ी संभालो जट्टा की मुहिम में लाला लाजपत राय के साथ मिलकर चलाई थी, ताकि किसानों का उत्थान किया जा सके. आज भी शहीदों के सपनों का देश बनाने के लिए यहां से बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और किसानों की हालत सुधारने के लिए संघर्ष करने की जरूरत है. साथ ही शहीदों को याद करने की जरूरत है. सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव , चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस उनके जन्मदिन मनाए जाने जरूरी हैं. इस दिन पर देश में युवा उन्हें याद करें तभी नई पीढ़ी को देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने की प्रेरणा मिल सकती है. ईटीवी भारत के सवाल का जवाब देते हुए भगत सिंह के भतीजे ने कहा कि युवाओं को प्रेरणा देने के लिए यह बहुत जरूरी है कि सरकार 28 सितंबर को शहीद भगत सिंह की याद में मनाए.
हालांकि पंजाब प्रांत में आज के दिन राजकीय अवकाश घोषित किया हुआ है. अन्य राज्यों एवं राष्ट्रीय स्तर पर अगर छुट्टी न भी हो तो इस दिन उनकी याद में सरकार की ओर से कार्यक्रम किए जाएं, क्योंकि युवाओं के लिए यही असली आइडल हैं. भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारी बलिदानियों का नाम लेकर ही आप देश की युवा पीढ़ी को देश पर मर मिटने का संदेश दे सकते हैं. उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रमों में उनके बारे में पढ़ाया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनसे प्रेरणा लें और उनके रास्ते पर चलकर देश को महान और उज्जवल बना सके. केंद्र सरकार के भगत सिंह को शहीद मानने से इनकार के सवाल पर उन्होंने बताया कि सरकार का कहना है कि 1947 से पहले के किसी को भी शहीद नहीं मानते. यह केवल सरदार भगत सिंह की बात नहीं सरकार इससे पहले किसी को भी शहीद की श्रेणी में नहीं रखती. यह स्वतंत्रता सेनानी परिवारों के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.
सरकार को अपने कानून में संशोधन करके उन प्रमुख लोगों को शहीद घोषित करना चाहिए, जिनके बारे में सबको मालूम है. देश के 7.5 लाख लोगों ने बलिदान देकर इस देश को आजादी दिलाई, जबकि भारत के करोड़ों लोगों के दिलों में तो शहीद भगत सिंह शहीद-ए-आज़म के तौर पर स्थापित हैं. सरकार का कोई कानून उन्हें नहीं रोक सकता, लेकिन यह जरूरी है कि उन्हें शहीद का संवैधानिक दर्जा भी दिया जाए. कृषि सम्बन्धी बिल पास किए जाने पर उन्होंने कहा कि सरकार के तीनों बिल किसान विरोधी हैं और इससे किसानों के आर्थिक हालत ज्यादा कमजोर होंगे. सरकार जो कहती है कि किसान अपने उत्पाद को कहीं भी ले जा सकते हैं, जबकि यह सुविधा तो पहले से किसानों को मिली हुई है. पहले भी किसान अपनी फसल को पूरे देश में कहीं भी ले जा सकते थे. जिस तरह से सेंशल कॉम्युडिटी एक्ट हटाया गया है इससे भयानक रूप से महंगाई आएगी, क्योंकि लोग जमाखोरी करके दाम बढ़ाते हैं. इससे किसान को ही नुकसान नहीं होगा, बल्कि आम जनता का भी बजट बिगड़ जाएगा. इसलिए शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का परिवार इन बिलों का खुले रूप से विरोध करता है.