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स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से जूझ रहा नौ महीने का शंभू, 17 करोड़ 50 लाख रुपये के टीके से बचेगी जान

सहारनपुर का एक मासूम (Saharanpur child suffering from SMA) स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) से जूझ रहा है. उसकी जान बचाने के लिए 17 करोड़ 50 लाख रुपये का टीका लगाने की जरूरत है. परिवार मदद की गुहार लगा रहा है.

सहारनपुर के शंभू को दुर्लभ बीमारी.
सहारनपुर के शंभू को दुर्लभ बीमारी.
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Published : Aug 1, 2023, 8:25 PM IST

सहारनपुर के शंभू को दुर्लभ बीमारी.

सहारनपुर : 'मेरा बच्चा नौ महीने का है, वह बहुत मासूम है. वह दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है. उसके इलाज में 17 करोड़ 50 लाख का खर्च आएगा. हमारे पास इतना पैसा नहीं है. हमारा और कोई बच्चा भी नहीं है. प्लीज, आप सब उसकी जान बचाने के लिए मदद कीजिए. मैं अपने बच्चे के बिना नहीं रह सकती हूं. आप लोगों का ही सहारा है. पता नहीं उसे ये बीमारी कैसे हो गई'.

आंखों में आंसू लिए ये पुकार उस मां की है, जिनका मासूम बेटा शंभू स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) से पीड़ित है. मां अपने बच्चे की तस्वीर लेकर लोगों से मदद की गुहार लगा रही है, जब भी वह अपने बेटे को देखती है, उसका दिल रो पड़ता है. जिले के गांव खजुरवाला के रहने वाले अमित शर्मा किसान हैं. परिवार में पत्नी मीनाक्षी और नौ महीने का शंभू है. शंभू माता-पिता का इकलौता है. परिवार में जब उसका जन्म हुआ तो परिवार खुशी से झूम उठा था, लेकिन परिवार को नहीं पता था कि कुछ ही महीनों बाद उनकी खुशियां काफूर हो जाएंगी.

हाथों और पैरों में नहीं हो रही मूवमेंट : पिता अमित ने बताया कि शंभू जब चार महीने का था तब उसके हाथों और पैरों में मूवमेंट नहीं हो रहा था. जबकि हाथ-पांव देखने में तंदुरुस्त लग रहे थे. बैठाने की कोशिश करने पर वह बैठ भी नहीं पा रहा था. वह चाहकर भी पैरों को बिल्कुल नहीं हिला पा रहा था. दायां हाथ भी बहुत कम हिल रहा था. इसके बाद शंभु को स्थानीय डॉक्टर को दिखाया तो देहरादून के जौलीग्रांट के लिए रेफर कर दिया गया. जौलीग्रांट के डॉक्टरों ने जांच के बाद स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी की आशंका जताई. डॉक्टरों ने पुष्टि के लिए दिल्ली एम्स भेज दिया. यहां जांच में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 (SMA) की पुष्टि हुई.

महंगे इलाज की फिक्र ने बढ़ाई टेंशन : परिजनों ने बताया चिकित्सकों ने इलाज में 17 करोड़ 50 लाख रुपये का खर्च बताया है. महंगे इलाज की फिक्र में परिवार के लोगों की टेंशन बढ़ गई. बेबस माता-पिता ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ से भी अपील की है.चौंकाने वाली बात ये है कि इंजेक्शन की अंतरराष्ट्रीय कीमत साढ़े 23 करोड़ रुपये है. भारत सरकार की ओर से टैक्स फ्री करने के बाद यह 17 करोड़ 50 लाख में मिल जाएगा. शंभु देव के चाचा गौरव शर्मा ने बताया कि परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. डॉक्टरों ने बताया है कि जोलगेन्समा इंजेक्शन लगने के बाद ही बच्चे की हालत ठीक हो पाएगी.

जानिए क्या है SMA और इसके लक्षण: स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी ( SMA ) एक बहुत खतरनाक बीमारी है. यह बिमारी चार प्रकार की होती है. इससे पीड़ित को अगर इंजेक्शन समय पर न दिया जाये तो मौत निश्चित रहती है. SMA टाइप 1 बीमारी 6 माह के बच्चों में आती है. इसे वेर्डनिग-हॉफमैन की बीमारी भी कहा जाता है. टाइप 1 लगभग 60% रोगियों को प्रभावित करती है. इसके लक्षण 1 से 6 महीने के बच्चे में दिखाई देते हैं. कई बच्चों में जन्म के समय भी इस बीमारी के लक्षण आ सकते हैं. इससे पीड़ित मासूमों को चूसने और निगलने में परेशानी होती है. मांसपेशियां इतनी कमजोर हो जाती है कि बच्चा उठने-बैठने लायक नहीं रहता. श्वसन संबंधी संक्रमण और फेफड़े खराब होने (न्यूमोथोरैक्स) की संभावना अधिक होती है.

यह भी पढ़ें : तीरा के ट्रीटमेंट के लिए अमेरिका से आयात कराया गया 16 करोड़ का इंजेक्शन

SMA टाइप 2 में छह महीने बाद दिखते हैं लक्षण : SMA टाइप 2 को डुबोविट्ज रोग के रूप में भी जाना जाता है. इसके लक्षण 6 से 18 महीने की उम्र में दिखने लगते हैं. यह बच्चों की निचले अंगों को प्रभावित करता है. इससे पीड़ित बच्चा बैठ तो सकता है, लेकिन चल-फिर नहीं सकता है. टाइप 2 एसएमए वाले अधिकांश बच्चे परिपक्वता तक जीवित रहते हैं. SMA टाइप 3 में बच्चे के 18 महीने की उम्र तक पहुंचने के बाद इसके लक्षण दिखते हैं. इसे कुगेलबर्ट-वेलैंडर या जुवेनाइल-ऑनसेट एसएमए भी कहा जाता है. टाइप 3 वाले कुछ बच्चों में व्यस्क होने तक लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. हल्की मांसपेशियों में कमजोरी, चलने में परेशानी और बार-बार होने वाला श्वसन संक्रमण टाइप 3 लक्षणों के उदाहरण हैं. एसएमए टाइप 4 में लक्षण 30 की उम्र तक नहीं दिखाई देते हैं. इसमें मांसपेशियों के कमजोर होने की गति काफी धीमी रहती है.

यह भी पढ़ें : 16 करोड़ के इंजेक्शन के लिए परिवार ने पीएम मोदी से लगाई गुहार

सहारनपुर के शंभू को दुर्लभ बीमारी.

सहारनपुर : 'मेरा बच्चा नौ महीने का है, वह बहुत मासूम है. वह दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है. उसके इलाज में 17 करोड़ 50 लाख का खर्च आएगा. हमारे पास इतना पैसा नहीं है. हमारा और कोई बच्चा भी नहीं है. प्लीज, आप सब उसकी जान बचाने के लिए मदद कीजिए. मैं अपने बच्चे के बिना नहीं रह सकती हूं. आप लोगों का ही सहारा है. पता नहीं उसे ये बीमारी कैसे हो गई'.

आंखों में आंसू लिए ये पुकार उस मां की है, जिनका मासूम बेटा शंभू स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) से पीड़ित है. मां अपने बच्चे की तस्वीर लेकर लोगों से मदद की गुहार लगा रही है, जब भी वह अपने बेटे को देखती है, उसका दिल रो पड़ता है. जिले के गांव खजुरवाला के रहने वाले अमित शर्मा किसान हैं. परिवार में पत्नी मीनाक्षी और नौ महीने का शंभू है. शंभू माता-पिता का इकलौता है. परिवार में जब उसका जन्म हुआ तो परिवार खुशी से झूम उठा था, लेकिन परिवार को नहीं पता था कि कुछ ही महीनों बाद उनकी खुशियां काफूर हो जाएंगी.

हाथों और पैरों में नहीं हो रही मूवमेंट : पिता अमित ने बताया कि शंभू जब चार महीने का था तब उसके हाथों और पैरों में मूवमेंट नहीं हो रहा था. जबकि हाथ-पांव देखने में तंदुरुस्त लग रहे थे. बैठाने की कोशिश करने पर वह बैठ भी नहीं पा रहा था. वह चाहकर भी पैरों को बिल्कुल नहीं हिला पा रहा था. दायां हाथ भी बहुत कम हिल रहा था. इसके बाद शंभु को स्थानीय डॉक्टर को दिखाया तो देहरादून के जौलीग्रांट के लिए रेफर कर दिया गया. जौलीग्रांट के डॉक्टरों ने जांच के बाद स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी की आशंका जताई. डॉक्टरों ने पुष्टि के लिए दिल्ली एम्स भेज दिया. यहां जांच में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 (SMA) की पुष्टि हुई.

महंगे इलाज की फिक्र ने बढ़ाई टेंशन : परिजनों ने बताया चिकित्सकों ने इलाज में 17 करोड़ 50 लाख रुपये का खर्च बताया है. महंगे इलाज की फिक्र में परिवार के लोगों की टेंशन बढ़ गई. बेबस माता-पिता ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ से भी अपील की है.चौंकाने वाली बात ये है कि इंजेक्शन की अंतरराष्ट्रीय कीमत साढ़े 23 करोड़ रुपये है. भारत सरकार की ओर से टैक्स फ्री करने के बाद यह 17 करोड़ 50 लाख में मिल जाएगा. शंभु देव के चाचा गौरव शर्मा ने बताया कि परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. डॉक्टरों ने बताया है कि जोलगेन्समा इंजेक्शन लगने के बाद ही बच्चे की हालत ठीक हो पाएगी.

जानिए क्या है SMA और इसके लक्षण: स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी ( SMA ) एक बहुत खतरनाक बीमारी है. यह बिमारी चार प्रकार की होती है. इससे पीड़ित को अगर इंजेक्शन समय पर न दिया जाये तो मौत निश्चित रहती है. SMA टाइप 1 बीमारी 6 माह के बच्चों में आती है. इसे वेर्डनिग-हॉफमैन की बीमारी भी कहा जाता है. टाइप 1 लगभग 60% रोगियों को प्रभावित करती है. इसके लक्षण 1 से 6 महीने के बच्चे में दिखाई देते हैं. कई बच्चों में जन्म के समय भी इस बीमारी के लक्षण आ सकते हैं. इससे पीड़ित मासूमों को चूसने और निगलने में परेशानी होती है. मांसपेशियां इतनी कमजोर हो जाती है कि बच्चा उठने-बैठने लायक नहीं रहता. श्वसन संबंधी संक्रमण और फेफड़े खराब होने (न्यूमोथोरैक्स) की संभावना अधिक होती है.

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SMA टाइप 2 में छह महीने बाद दिखते हैं लक्षण : SMA टाइप 2 को डुबोविट्ज रोग के रूप में भी जाना जाता है. इसके लक्षण 6 से 18 महीने की उम्र में दिखने लगते हैं. यह बच्चों की निचले अंगों को प्रभावित करता है. इससे पीड़ित बच्चा बैठ तो सकता है, लेकिन चल-फिर नहीं सकता है. टाइप 2 एसएमए वाले अधिकांश बच्चे परिपक्वता तक जीवित रहते हैं. SMA टाइप 3 में बच्चे के 18 महीने की उम्र तक पहुंचने के बाद इसके लक्षण दिखते हैं. इसे कुगेलबर्ट-वेलैंडर या जुवेनाइल-ऑनसेट एसएमए भी कहा जाता है. टाइप 3 वाले कुछ बच्चों में व्यस्क होने तक लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. हल्की मांसपेशियों में कमजोरी, चलने में परेशानी और बार-बार होने वाला श्वसन संक्रमण टाइप 3 लक्षणों के उदाहरण हैं. एसएमए टाइप 4 में लक्षण 30 की उम्र तक नहीं दिखाई देते हैं. इसमें मांसपेशियों के कमजोर होने की गति काफी धीमी रहती है.

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