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सहारनपुर: नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान का कई वर्षों पुराना रहा है इतिहास

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में नेताजी सुभाष चंद्र बोस गार्डन एवं प्रशिक्षण केंद्र का कई वर्षों पुराना इतिहास रहा है. इस शोध केंद्र को मुगल शासन काल से शाही आनंद ग्रह के रूप में जाना जाता था. मुगलों ने इस प्रशिक्षण केंद्र को मराठा सरदार को उपहार के रूप में भेंट किया था.

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Published : Feb 7, 2020, 11:43 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान.

सहारनपुर: जिले में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान वानस्पतिक पौधों के संकलन, शोध कार्य एवं विकास का मुख्य केंद्र रहा है. यह शोध केंद्र अंतिम मुगल शासन काल 1750 ईशा में शाही आनंद ग्रह के रूप में स्थापित हुआ था. इस केंद्र को उद्यान के रूप में संचालन करने के लिए गुलाम कादिर ने सन् 1786 ईo में सात गांव की माल गुजारी दी गई.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान.

यहां होती थी उपयोगी पौधों की खेती
इस उद्यान की देखभाल मराठा राजाओं के हाथ में आई और तत्पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चली गई. यहां मुख्यता शोध और उपयोगी पौधों की खेती की जाती रही है. सन् 1817 में यह उद्यान अंग्रेजी शासन के अधीन आ गया था. डॉ. गोवान को यहां का प्रथम निदेशक नियुक्त किया गया, इस उद्यान में संपूर्ण विश्व से विभिन्न प्रजाति के पौधों का संकलन कर स्थानीय जलवायु के अनुकूल बनाया गया. पपीता, जापानी पर्सीमोन, लोकाट, पियर इत्यादि यहां की प्रमुख प्रजातियां है.

पहले यह गार्डन नहीं था, यह शोध केंद्र के रूप में जाना जाता था. 1750 में मराठाओं के समय जो इतिहास मिलता है, उसके हिसाब से यह कभी मुगल ने किसी मराठा सरदार को भेंट किया था. बाद में जब अंग्रेज इस देश में आए और ईस्ट इंडिया कंपनी यहां पर आई, तो उन्होंने कब्जा कर लिया. उसके बाद अंग्रेज यहां पर इसके अधीक्षक के रूप में नियुक्त हुए, उन्होंने यहां पर विभिन्न कार्य किए.
राजेंद्र प्रसाद, ज्वाइंट डायरेक्टर

सहारनपुर: जिले में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान वानस्पतिक पौधों के संकलन, शोध कार्य एवं विकास का मुख्य केंद्र रहा है. यह शोध केंद्र अंतिम मुगल शासन काल 1750 ईशा में शाही आनंद ग्रह के रूप में स्थापित हुआ था. इस केंद्र को उद्यान के रूप में संचालन करने के लिए गुलाम कादिर ने सन् 1786 ईo में सात गांव की माल गुजारी दी गई.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान.

यहां होती थी उपयोगी पौधों की खेती
इस उद्यान की देखभाल मराठा राजाओं के हाथ में आई और तत्पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चली गई. यहां मुख्यता शोध और उपयोगी पौधों की खेती की जाती रही है. सन् 1817 में यह उद्यान अंग्रेजी शासन के अधीन आ गया था. डॉ. गोवान को यहां का प्रथम निदेशक नियुक्त किया गया, इस उद्यान में संपूर्ण विश्व से विभिन्न प्रजाति के पौधों का संकलन कर स्थानीय जलवायु के अनुकूल बनाया गया. पपीता, जापानी पर्सीमोन, लोकाट, पियर इत्यादि यहां की प्रमुख प्रजातियां है.

पहले यह गार्डन नहीं था, यह शोध केंद्र के रूप में जाना जाता था. 1750 में मराठाओं के समय जो इतिहास मिलता है, उसके हिसाब से यह कभी मुगल ने किसी मराठा सरदार को भेंट किया था. बाद में जब अंग्रेज इस देश में आए और ईस्ट इंडिया कंपनी यहां पर आई, तो उन्होंने कब्जा कर लिया. उसके बाद अंग्रेज यहां पर इसके अधीक्षक के रूप में नियुक्त हुए, उन्होंने यहां पर विभिन्न कार्य किए.
राजेंद्र प्रसाद, ज्वाइंट डायरेक्टर

Intro:सहारनपुर : सहारनपुर में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस गार्डन एवं प्रशिक्षण केंद्र का कई वर्षों पुराना इतिहास है, इस शोध केंद्र को मुगल शासन काल में शाही आनंद ग्रह के रूप में जाना जाता था, उसके पश्चात यह शोध केंद्र अंग्रेजी शासन के अधीन आ गया जहां पर विभिन्न वनस्पतियों के ऊपर शोध किया जाता है, मुगल शासक ने मराठा सरदार को उपहार के रूप में भेंट किया था यह उद्यान,


Body:VO1 : सहारनपुर में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान व शोध केंद्र अंतिम मुगल शासन काल में 1750 में शाही आनंद ग्रह के रूप में स्थापित उद्यानिकी प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र प्राचीन काल से वानस्पतिक पौधों के संकलन शोध कार्य एवं विकास का भारतवर्ष में मुख्य केंद्र रहा है, इस केंद्र को उद्यान के रूप में संचालन हेतु रोहिला सामंत गुलाम कादिर ने सन 1786 ईo में उद्यान को 7 गांव की मालगुजारी दी गई, इसके पश्चात इस उद्यान की देखभाल मराठा राजाओं के हाथ में आई और तत्पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में आ गई, जो यहां मुख्यतः शोध तथा उपयोगी पौधों की खेती करवाते रहे, सन 1817 में यह उद्यान अंग्रेजी शासन के अधीन आ गया और डॉ गोवान को यहां का प्रथम निदेशक नियुक्त किया गया, इस उद्यान में संपूर्ण विश्व से विभिन्न प्रजाति के पौधों का संकलन कर स्थानीय जलवायु के अनुकूल बनाया गया जैसे पपीता, जापानी पर्सीमोन, लोकाट, पियर इत्यादि प्रमुख प्रजातियां है,


Conclusion:उक्त गार्डन के इतिहास को लेकर जब ज्वाइंट डायरेक्टर राजेंद्र प्रसाद से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि यह गार्डन ना होकर के पहले शोध केंद्र के रूप में रहा है, यह 1750 में मराठा पीरियड में जो इतिहास मिलता है उसके हिसाब से यह कभी मुगल ने किसी मराठा सरदार को यह जगह डोनेट की थी, बाद में जब अंग्रेज देश में आए और ईस्ट इंडिया कंपनी यहां पर आई तो उसने इसको अडॉप्ट कर लिया उसके बाद अंग्रेज यहां पर इसके अधीक्षक के रूप में नियुक्त हुए, उन्होंने यहां पर विभिन्न-विभिन्न कार्य किए, जैसे की पहली बार यहां कॉफी का उत्पादन किया गया उसके बाद इंडिया के दूसरे स्थानों पर उसका विस्तार हुआ, इसी तरह यहां पर कुछ ऐसी रेयर वैरायटी है जो कहीं पर नहीं मिलती जो बाहर विदेशों से लाकर यहां पर प्रजातियां लगाई जाती है,

बाइट : राजेंद्र प्रसाद (ज्वाइंट डायरेक्टर)

RAMKUMAR PUNDIR
SAHARANPUR
9410821417
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST
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