सहारनपुर : बेशुमार रिवायतों में रोजे और नमाज-ए-तरावीह का जिक्र एक साथ किया गया है, जिससे पवित्र माह रमजानुल मुबारक में रोजा रखने के साथ-साथ तरावीह पढ़ने की खास महत्ता है. दारुल उलूम के 'मुफ्ती-ए-आजम मुफ्ती हबीबुर्रहमान खैराबादी ने नमाज-ए-तरावीह की महत्ता पर प्रकाश डाला.
दारुल उलूम के 'मुफ्ती-ए-आजम' से बातचीत के अंश
- हजरत अब्दुल रहमान बिन औफ रजि. की रिवायत है कि सरकारे दो आलम मोहम्मद सल्ल. ने इरशाद फरमाया रमजान का महीना पाक महीना है.
- इसमें अल्लाह ने तुम पर इसके रोजे फर्ज किये हैं और मैंने तुम्हारे लिए इस माह में कयाम (इबादत के लिए खड़ा होना) मसनून करार दिया है.
- इसलिए जो शख्स ईमान की हालत में इस महीने के रोजे रखेगा और उसमें कयाम करेगा तो वह गुनाहों से इस तरह पाक और साफ हो जाएगा जैसे उसकी मां ने उसे आज ही जन्म दिया हो.
- चौदह सौ सालों से इसी पर अमल होता रहा है. पवित्र माह रमजानुल मुबारक के पूरे महीने में बीस रकअत तरावीह मर्द और औरत दोनों के लिए सुन्नते कुअक्कदा है.
- बिना किसी वजह के तरावीह छोड़ने वाला या बीस रकअत से कम रकअत पढ़ने वाला गुनाहगार होगा.
- तरावीह जमात के साथ पढ़ना मसनून है और महिलाओं को अपने घरों में ही तरावीह की नमाज अदा करनी चाहिए.
रमजान माह और कुरआने करीम का है विशेष रिश्ता
- कुरआन करीम और रमजान का विशेष रिश्ता है. रमजानुल मुबारक में ही कुरआन करीम नाजिल हुआ.इस महीने में सरकार दो आलम सल्ल. कुरआन करीम की ज्यादा तिलावत किया करते थे.
- कुरआन करीम पढ़ने और सुनने का सबसे बड़ा माध्यम तरावीह की नमाज ही है. दौरे नबवी में ही तरावीह में कुरआन करीम पढ़ने और सुनने का सिलसिला शुरू हो गया था.
- शुरू में लोग छोटी-छोटी जमाअतें बनाकर तरावीह की नमाज पढ़ा करते थे. बाद में हजरत उमर फारूक रजि. ने अपने दौरे खिलाफत में तरावीह की बाजमात नमाज मुकर्रर कर दी.
- तब से लेकर आज तक रमजानुल मुबारक में हर एक मस्जिद में तरावीह की नमाज में कुरआन करीम पढ़ा और सुना जाता है.