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पाक माह रमजान की दूसरी अहम इबादत है नमाज-ए-तरावीह

पवित्र माह रमजान की शुरुआत हो चुकी है. इस पवित्र माह में रोजे की इबादत के बाद दूसरा अहम स्थान नमाज-ए-तरावीह का है. तरावीह की नमाज की बड़ी फजीलत है.

नमाज-ए-तरावीह.
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Published : May 11, 2019, 6:32 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

सहारनपुर : बेशुमार रिवायतों में रोजे और नमाज-ए-तरावीह का जिक्र एक साथ किया गया है, जिससे पवित्र माह रमजानुल मुबारक में रोजा रखने के साथ-साथ तरावीह पढ़ने की खास महत्ता है. दारुल उलूम के 'मुफ्ती-ए-आजम मुफ्ती हबीबुर्रहमान खैराबादी ने नमाज-ए-तरावीह की महत्ता पर प्रकाश डाला.

दारुल उलूम के 'मुफ्ती-ए-आजम' ने नमाज-ए-तरावीह के बारे में जानकारी दी.


दारुल उलूम के 'मुफ्ती-ए-आजम' से बातचीत के अंश

  • हजरत अब्दुल रहमान बिन औफ रजि. की रिवायत है कि सरकारे दो आलम मोहम्मद सल्ल. ने इरशाद फरमाया रमजान का महीना पाक महीना है.
  • इसमें अल्लाह ने तुम पर इसके रोजे फर्ज किये हैं और मैंने तुम्हारे लिए इस माह में कयाम (इबादत के लिए खड़ा होना) मसनून करार दिया है.
  • इसलिए जो शख्स ईमान की हालत में इस महीने के रोजे रखेगा और उसमें कयाम करेगा तो वह गुनाहों से इस तरह पाक और साफ हो जाएगा जैसे उसकी मां ने उसे आज ही जन्म दिया हो.
  • चौदह सौ सालों से इसी पर अमल होता रहा है. पवित्र माह रमजानुल मुबारक के पूरे महीने में बीस रकअत तरावीह मर्द और औरत दोनों के लिए सुन्नते कुअक्कदा है.
  • बिना किसी वजह के तरावीह छोड़ने वाला या बीस रकअत से कम रकअत पढ़ने वाला गुनाहगार होगा.
  • तरावीह जमात के साथ पढ़ना मसनून है और महिलाओं को अपने घरों में ही तरावीह की नमाज अदा करनी चाहिए.

रमजान माह और कुरआने करीम का है विशेष रिश्ता

  • कुरआन करीम और रमजान का विशेष रिश्ता है. रमजानुल मुबारक में ही कुरआन करीम नाजिल हुआ.इस महीने में सरकार दो आलम सल्ल. कुरआन करीम की ज्यादा तिलावत किया करते थे.
  • कुरआन करीम पढ़ने और सुनने का सबसे बड़ा माध्यम तरावीह की नमाज ही है. दौरे नबवी में ही तरावीह में कुरआन करीम पढ़ने और सुनने का सिलसिला शुरू हो गया था.
  • शुरू में लोग छोटी-छोटी जमाअतें बनाकर तरावीह की नमाज पढ़ा करते थे. बाद में हजरत उमर फारूक रजि. ने अपने दौरे खिलाफत में तरावीह की बाजमात नमाज मुकर्रर कर दी.
  • तब से लेकर आज तक रमजानुल मुबारक में हर एक मस्जिद में तरावीह की नमाज में कुरआन करीम पढ़ा और सुना जाता है.

सहारनपुर : बेशुमार रिवायतों में रोजे और नमाज-ए-तरावीह का जिक्र एक साथ किया गया है, जिससे पवित्र माह रमजानुल मुबारक में रोजा रखने के साथ-साथ तरावीह पढ़ने की खास महत्ता है. दारुल उलूम के 'मुफ्ती-ए-आजम मुफ्ती हबीबुर्रहमान खैराबादी ने नमाज-ए-तरावीह की महत्ता पर प्रकाश डाला.

दारुल उलूम के 'मुफ्ती-ए-आजम' ने नमाज-ए-तरावीह के बारे में जानकारी दी.


दारुल उलूम के 'मुफ्ती-ए-आजम' से बातचीत के अंश

  • हजरत अब्दुल रहमान बिन औफ रजि. की रिवायत है कि सरकारे दो आलम मोहम्मद सल्ल. ने इरशाद फरमाया रमजान का महीना पाक महीना है.
  • इसमें अल्लाह ने तुम पर इसके रोजे फर्ज किये हैं और मैंने तुम्हारे लिए इस माह में कयाम (इबादत के लिए खड़ा होना) मसनून करार दिया है.
  • इसलिए जो शख्स ईमान की हालत में इस महीने के रोजे रखेगा और उसमें कयाम करेगा तो वह गुनाहों से इस तरह पाक और साफ हो जाएगा जैसे उसकी मां ने उसे आज ही जन्म दिया हो.
  • चौदह सौ सालों से इसी पर अमल होता रहा है. पवित्र माह रमजानुल मुबारक के पूरे महीने में बीस रकअत तरावीह मर्द और औरत दोनों के लिए सुन्नते कुअक्कदा है.
  • बिना किसी वजह के तरावीह छोड़ने वाला या बीस रकअत से कम रकअत पढ़ने वाला गुनाहगार होगा.
  • तरावीह जमात के साथ पढ़ना मसनून है और महिलाओं को अपने घरों में ही तरावीह की नमाज अदा करनी चाहिए.

रमजान माह और कुरआने करीम का है विशेष रिश्ता

  • कुरआन करीम और रमजान का विशेष रिश्ता है. रमजानुल मुबारक में ही कुरआन करीम नाजिल हुआ.इस महीने में सरकार दो आलम सल्ल. कुरआन करीम की ज्यादा तिलावत किया करते थे.
  • कुरआन करीम पढ़ने और सुनने का सबसे बड़ा माध्यम तरावीह की नमाज ही है. दौरे नबवी में ही तरावीह में कुरआन करीम पढ़ने और सुनने का सिलसिला शुरू हो गया था.
  • शुरू में लोग छोटी-छोटी जमाअतें बनाकर तरावीह की नमाज पढ़ा करते थे. बाद में हजरत उमर फारूक रजि. ने अपने दौरे खिलाफत में तरावीह की बाजमात नमाज मुकर्रर कर दी.
  • तब से लेकर आज तक रमजानुल मुबारक में हर एक मस्जिद में तरावीह की नमाज में कुरआन करीम पढ़ा और सुना जाता है.
Intro:पवित्र माह रमजान की दूसरी अहम इबादत है तरावीह

-तरावीह पढऩा हर मुसलमान मर्द व औरत के लिए जरूरी

     
पवित्र माह रमजान में रोजे की इबादत के बाद दूसरा अहम स्थान नमाजे तरावीह का है। तरावीह की नमाज की बड़ी फजीलत है, बेशुमार रिवायतों में रोजे और नमाज-ए-तरावीह का जिक्र एक साथ किया गया है जिससे पवित्र माह रमजानुल मुबारक में रोजा रखने के साथ-साथ तरावीह पढऩे की खास महत्ता है।



Body:पवित्र माह रमजान की दूसरी अहम इबादत है तरावीह

-तरावीह पढऩा हर मुसलमान मर्द व औरत के लिए जरूरी

         पवित्र माह रमजान में रोजे की इबादत के बाद दूसरा अहम स्थान नमाजे तरावीह का है। तरावीह की नमाज की बड़ी फजीलत है, बेशुमार रिवायतों में रोजे और नमाज-ए-तरावीह का जिक्र एक साथ किया गया है जिससे पवित्र माह रमजानुल मुबारक में रोजा रखने के साथ-साथ तरावीह पढऩे की खास महत्ता है।


दारुल उलूम के 'मुफ़्ती ए आज़म ,मुफ़्ती हबीबुर्रहमान खैराबादी ने नमाजे तरावीह की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हजरत अब्दुल रहमान बिन औफ रजि. की रिवायत है कि सरकारे दो आलम मोहम्मद सल्ल. ने इरशाद फरमाया 'रमजान का महीना ऐसा महीना है जिसमें अल्लाह ने तुम पर इसके रोजे फर्ज किये हैं और मैंने तुम्हारे लिए इस माह में कयाम (इबादत के लिए खड़ा होना) मसनून करार दिया है इसलिए जो शख्स ईमान की हालत में इस महीने के रोजे रखेगा और उसमें कयाम करेगा तो वह गुनाहों से इस तरह पाक और साफ हो जाएगा जैसे उसकी मा ने उसे आज ही जन्म दिया हो। फुकहा किराम ने इसकी तशरीह फरमाई है कि तरावीह की नमाज सुन्नते मुअक्कदा (जरूरी) है, इसकी बीस रकअते हैं और ये बीस रकअतें सरकारे दो आलम सल्ल. से साबित हैं इसलिए सहाबा किराम, ताबईन, तबेताबईन, इमाम अबू हनीफा, इमाम शाफई, इमाम अहमद और एक कौल के मुताबिक इमाम मालिक रह. का मसलक भी यही है कि तरावीह की बीस रकआत हैं, चौदह सो सालों से इसी पर अमल होता रहा है और हरमैन शरीफैन में भी बीस रकअत पढऩे का ही मामूल है। मौलाना ने बताया कि पवित्र माह रमजानुल मुबारक के पूरे महीने में बीस रकअत तरावीह मर्द व औरत दोनों के लिए सुन्नते कुअक्कदा है। बिना किसी वजह के तरावीह छोडऩे वाला या बीस रकअत से कम रकअत पढऩे वाला गुनाहगार होगा। तरावीह जमात के साथ पढऩा मसनून है तथा महिलाओं को अपने घरों में ही तरावीह की नमाज अदा करनी चाहिए।


रमजान माह व कुरआने करीम का है विशेष रिश्ता

कुरआन करीम और रमजान का विशेष रिश्ता है। रमजानुल मुबारक में ही कुरआन करीम नाजिल हुआ, इस महीने में सरकार दो आलम सल्ल. कुरआन करीम की ज्यादा तिलावत किया करते थे। कुरआन करीम पढऩे व सुनने का सबसे बड़ा माध्यम तरावीह की नमाज ही है। दौरे नबवी में ही तरावीह में कुरआन करीम पढऩे और सुनने का सिलसिला शुरू हो गया था। शुरू में लोग छोटी छोटी जमाअतें बनाकर तरावीह की नमाज पढ़ा करते थे, बाद में हजरत उमर फारूक रजि. ने अपने दौरे खिलाफत में तरावीह की बाजमात नमाज मुकर्रर कर दी तब से लेकर आज तक रमजानुल मुबारक में हर एक मस्जिद में तरावीह की नमाज में कुरआन करीम पढ़ा व सुना जाता है।


बाइट 1 मुफ़्ती हबीबुर्रहमान खैराबादी
मुफ़्ती ए आज़म दारुल उलूम देवबन्द


बाइट 2 नसीम अख्तर शाह कैसर
उस्ताद वक्फ दारुल उलूम देवबन्द



Conclusion:बलवीर सैनी
देवबन्द ,सहारनपुर
मोबाइल न0 9319488130
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST
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