ETV Bharat / state

सहारनपुर : मुसलमान बनाते हैं मंदिर, विदेशों में भी होती है मांग

author img

By

Published : Mar 21, 2019, 11:06 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:20 PM IST

सहारनपुर में एक नहीं बल्कि हजारों शख्सियतें ऐसी हैं, जो इस एकता की मिसाल पेश कर रहीं हैं. इनकी खास बात यह है कि इनमें से कोई भी खास लोग नहीं हैं. ये हैं वुड कार्विंग और लकड़ी कारोबार से जुड़े लोग, जो मंदिरों पर खूबसूरत कारीगरी करके भगवान का आशियाना बना रहे हैं. खास बात तो यह है कि इन मंदिरों को बनाने वाले 90% से ज्यादा लोग मुसलमान हैं.

मुसलमान बनाते हैं मंदिर, विदेशों में भी होती है मांग

वो हिंदू है, वो मुसलमान है,
वो पढ़ता गीता, वो पढ़ता कुरान है.
क्यों भूले हो लहू का रंग है सबका एक,
धर्म से भी बड़ा, एकता का पैगाम है.

इन्हीं लाइनों से जुड़ी सहारनपुर में एक नहीं बल्कि हजारों शख्सियतें ऐसी हैं, जो इस एकता की मिसाल पेश कर रहीं हैं. ये कोई खास लोग नहीं हैं. ये हैं वुड कार्विंग और लकड़ी कारोबार से जुड़े लोग, जो मंदिरों पर खूबसूरत कारीगरी करके भगवान का आशियाना बना रहे हैं. खास बात तो यह है कि इन मंदिरों को बनाने वाले 90% से ज्यादा लोग मुसलमान हैं.

मुसलमान बनाते हैं मंदिर, विदेशों में भी होती है मांग

जुम्मे और ईद की नमाज पर दुआओं के लिए उठने वाले ये हाथ जब हिंदू देवी-देवताओं के आशियाने को सजाते हैं, तो चाहकर भी लोगों की निगाहें नहीं हट पाती हैं. मंदिर बनाकर ये मुस्लिम कारीगर अपने लिए दो जून की रोटी भी कमा रहे हैं. इनके बनाए मंदिरों की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब की जा रही है.

कारखाना मालिक मोहम्मद इरशाद ने बताया कि उनके कारखाने में सिर्फ शीशम और नीम के मंदिर बनते हैं. इन मंदिरों की डिमांड देश में तो है ही साथ में विदेशों में भी इन्हें काफी पसंद किया जाता है. ब्रिटेन, अमेरिका और मलेशिया कुछ ऐसे देश हैं, जहां मोहमद इरशाद के कारखाने से मंदिर का सप्लाई होता है.

कुशल कारीगर शीशम और नीम की भारी-भरकम लकड़ियों को तराश कर उनको सुंदर मंदिरों का रूप देते हैं. कारीगरों का कहना है कि ये कई पीढ़ियों से मंदिर बनाते आ रहे हैं. ये मंदिर के ऊपर ॐ और स्वास्तिक भी लगाते हैं. शीशम और नीम का बना होने की वजह से ये 10 से 15 साल तक बिल्कुल खराब नहीं होते हैं.

वहीं मोहम्मद इरशाद ने बताया कि देश के किसी कोने से अगर मंदिर का ऑर्डर आया है तो वो उसे ट्रांसपोर्ट के जरिए ऑर्डर भेजते हैं. मगर जब ऑर्डर विदेश भेजना होता है तो उसे कोरियर किया जाता है.

मंदिर बनाने वाले कारखाना मालिक मोहमद इरशाद का कहना है कि उन्हें मंदिर बनाकर भगवान की सेवा करने की अनुभूति होती है. हालांकि कई कट्टरपंथी लोग उनके मंदिर बनाने पर ऐतराज भी जताते हैं लेकिन ये किसी की परवाह किए बगैर लकड़ी के सुंदर मंदिर बना रहे हैं.

ईद व जुम्मे पर नमाज पढ़ने वाले हाथों का यूं मंदिरों को बनाना उन लोगों के मुंह पर करारा थप्पड़ है, जो हिंदुओं-मुस्लिमों को धर्म का हवाला देकर उनमें नफरत का बीज बोते हैं. इन कारीगरों का काम समाज को कौमी एकता का संदेश देता है. किसी ने सच ही कहा है...

हमें नेकी बनानी थी, मगर हम बद बना बैठे,
कहीं मंदिर बना बैठे, कहीं मस्जिद बना बैठे,
हदें इंसानियत की भूलकर, लड़ते रहे यूं ही,
हमें इंसा बनाने थे, मगर सरहदें बना बैठे.

वो हिंदू है, वो मुसलमान है,
वो पढ़ता गीता, वो पढ़ता कुरान है.
क्यों भूले हो लहू का रंग है सबका एक,
धर्म से भी बड़ा, एकता का पैगाम है.

इन्हीं लाइनों से जुड़ी सहारनपुर में एक नहीं बल्कि हजारों शख्सियतें ऐसी हैं, जो इस एकता की मिसाल पेश कर रहीं हैं. ये कोई खास लोग नहीं हैं. ये हैं वुड कार्विंग और लकड़ी कारोबार से जुड़े लोग, जो मंदिरों पर खूबसूरत कारीगरी करके भगवान का आशियाना बना रहे हैं. खास बात तो यह है कि इन मंदिरों को बनाने वाले 90% से ज्यादा लोग मुसलमान हैं.

मुसलमान बनाते हैं मंदिर, विदेशों में भी होती है मांग

जुम्मे और ईद की नमाज पर दुआओं के लिए उठने वाले ये हाथ जब हिंदू देवी-देवताओं के आशियाने को सजाते हैं, तो चाहकर भी लोगों की निगाहें नहीं हट पाती हैं. मंदिर बनाकर ये मुस्लिम कारीगर अपने लिए दो जून की रोटी भी कमा रहे हैं. इनके बनाए मंदिरों की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब की जा रही है.

कारखाना मालिक मोहम्मद इरशाद ने बताया कि उनके कारखाने में सिर्फ शीशम और नीम के मंदिर बनते हैं. इन मंदिरों की डिमांड देश में तो है ही साथ में विदेशों में भी इन्हें काफी पसंद किया जाता है. ब्रिटेन, अमेरिका और मलेशिया कुछ ऐसे देश हैं, जहां मोहमद इरशाद के कारखाने से मंदिर का सप्लाई होता है.

कुशल कारीगर शीशम और नीम की भारी-भरकम लकड़ियों को तराश कर उनको सुंदर मंदिरों का रूप देते हैं. कारीगरों का कहना है कि ये कई पीढ़ियों से मंदिर बनाते आ रहे हैं. ये मंदिर के ऊपर ॐ और स्वास्तिक भी लगाते हैं. शीशम और नीम का बना होने की वजह से ये 10 से 15 साल तक बिल्कुल खराब नहीं होते हैं.

वहीं मोहम्मद इरशाद ने बताया कि देश के किसी कोने से अगर मंदिर का ऑर्डर आया है तो वो उसे ट्रांसपोर्ट के जरिए ऑर्डर भेजते हैं. मगर जब ऑर्डर विदेश भेजना होता है तो उसे कोरियर किया जाता है.

मंदिर बनाने वाले कारखाना मालिक मोहमद इरशाद का कहना है कि उन्हें मंदिर बनाकर भगवान की सेवा करने की अनुभूति होती है. हालांकि कई कट्टरपंथी लोग उनके मंदिर बनाने पर ऐतराज भी जताते हैं लेकिन ये किसी की परवाह किए बगैर लकड़ी के सुंदर मंदिर बना रहे हैं.

ईद व जुम्मे पर नमाज पढ़ने वाले हाथों का यूं मंदिरों को बनाना उन लोगों के मुंह पर करारा थप्पड़ है, जो हिंदुओं-मुस्लिमों को धर्म का हवाला देकर उनमें नफरत का बीज बोते हैं. इन कारीगरों का काम समाज को कौमी एकता का संदेश देता है. किसी ने सच ही कहा है...

हमें नेकी बनानी थी, मगर हम बद बना बैठे,
कहीं मंदिर बना बैठे, कहीं मस्जिद बना बैठे,
हदें इंसानियत की भूलकर, लड़ते रहे यूं ही,
हमें इंसा बनाने थे, मगर सरहदें बना बैठे.

Intro:Body:

saharanpur news for launching pkg


Conclusion:
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:20 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.