सहारनपुर: फतवों की नगरी एवं विश्वविख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों के लिए अजीबो-गरीब फरमान जारी किया है. दारुल उलूम प्रबंधन ने मदरसे के छात्रों को उर्दू एवं धार्मिक तालीम के साथ अंग्रेजी पढ़ने और आधुनिक शिक्षा के कोर्स न करने की हिदायत दी है. दारुल उलूम ने साफ चेतवानी देते हुए कहा है कि अगर दारुल उलूम में कक्षा छोड़कर अंग्रेजी पढ़ते छात्र पाए गए तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. इस फरमान को लेकर जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का बयान भी मीडिया की सुर्खियां बना है. इसके बाद अब मौलाना अरशद मदनी ने सफाई दी है.
उन्होंने कहा है कि दारुल उलूम के छात्रों पर अंग्रेजी और आधुनिक शिक्षा पर कोई बैन नहीं लगाया है. देश की मीडिया उनके बयान और दारुल उलूम के निर्देश को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है, जो सरासर गलत है.
बता दें कि दारुल उलूम देवबंद में मुस्लिम छात्रों को केवल इस्लाम धर्म की पढ़ाई कराई जाती है. यहां दुनिया भर के मुस्लिम देशों के छात्र धार्मिक तालीम लेने आते हैं. दारुल उलूम प्रबंधन ने मदरसे के छात्रों के लिए नोटिस जारी करते हुए कहा कि जब तक छात्र दारुल उलूम की पढ़ाई करेंगे तब तक अंग्रेजी और दूसरे विषयों की पढ़ाई नहीं करेंगे. दारुल उलूम के इस फरमान से जहां छात्रों में हलचल मची हुई है वहीं जमीयत अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने पूरे मामले पर सफाई दी है.
इन दिनों देशभर में मौलाना अरशद मदनी का बयान और दारुल उलूम का फरमान मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है. फरमान में कहा गया कि दारूल उलूम के छात्र अंग्रेज़ी कतई नहीं पढ़ेंगे और अगर ऐसा करते पाए गए तो उनका दारुल उलूम से निष्कासित कर दिया जाएगा और सख्त कार्यवाही की जाएगी.
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमारे यहां तालीम का निज़ाम बहुत सख्त है, जो छात्र मदरसे की पढ़ाई के साथ अंग्रेजी की ओर ध्यान देते हैं यानी ऐसे छात्र जो दो नाव की सवारी करते हैं वे न सिर्फ हमारे तालीमी निज़ाम को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि खुद के भविष्य को भी बिगाड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम अंग्रेज़ी तालीम के बिल्कुल भी ख़िलाफ़ नहीं हैं जबकि दारुल उलूम में अंग्रेज़ी और कंप्यूटर की आधुनिक पढ़ाई भी कराई जाती है, जिसको पढ़ना है, शौक से पढ़ सकता है.
मौलाना के मुताबिक दीन की तालीम पूरी करने के बाद यहां के छात्र इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य विषयों की पढाई कर सकते हैं. दारुल उलूम से इसकी उन्हें हमेशा पूरी इजाजत है. मौलाना अरशद के मुताबिक ये फैसला सिर्फ और सिर्फ़ इसलिए है कि छात्र जो भी पढ़ना चाहते हैं वो दिमाग और ज़ेहन एकतरफ़ा कर पूरी तवज्जों के साथ पढ़ सकें. उन्होंने मीडिया पर आरोप लगाया कि उनका बयान गलत तरकी से पेश किया गया.
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि भारत भर में बहुत से गुरुकुल भी चलाये जा रहे हैं जहां पर उनको धार्मिक शिक्षा दी जाती है और वहां पर वही छात्र एडमिशन लेते हैं जिनको धर्म की जानकारी और धार्मिक शिक्षा चाहिए. बावजूद इसके मदरसे और उनके छात्रों को ही टारगेट क्यों बनाया जाता है. गुरुकुल की तरह मदरसे में जो छात्र एडमिशन लेते हैं वो वहां धार्मिक शिक्षा, अरबी शिक्षा और मौलवी आलिम मुफ़्ती बनने के लिए ही आते हैं.