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सहारनपुर: जातीय हिंसा मामले में पूर्व डीएम और तत्कालीन प्रमुख सचिव के खिलाफ दर्ज होगा मुकदमा - शब्बीरपुर गांव

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में साल 2017 में हुई जातीय हिंसा के मामले में पूर्व डीएम और तत्कालीन प्रमुख सचिव, समाज कल्याण की मुश्किलें बढ़ गई हैं. दोनों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह और एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है. इस बारे में एससी/एसटी कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

ethnic violence in saharanpur
सहारनपुर के पूर्व डीएम आलोक कुमार पांडेय.
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Published : Oct 17, 2020, 9:10 PM IST

सहारनपुर: जनपद के शब्बीरपुर गांव में तीन साल पहले हुई जातीय हिंसा के मामले के दौरान जिलाधिकारी रहे आलोक कुमार पांडे और तत्कालीन प्रमुख सचिव, समाज कल्याण मनोज सिंह की मुश्किलें बढ़ने लगी हैं. जातीय हिंसा में पीड़ित दलित परिवारों को निर्धारित मुआवजा न देने के मामले में एससी/एसटी की विशेष अदालत ने दोनों अधिकारियों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने का फैसला सुरक्षित रखा है.

जानकारी देते हिंसा पीड़ित के वकील.

अदालत ने परिवाद दर्ज कर सुनवाई के लिए 19 नवंबर की तारीख निर्धारित की है. जानकारी के मुताबिक, हिंसा पीड़ित परिवारों को 8.25 लाख रुपये का मुआवजा, 5 हजार रुपये महीना मूल पेंशन के साथ बच्चों को स्नातक तक की पढ़ाई का पूरा खर्च और पालन पोषण करने का प्रावधान है, लेकिन तत्कालीन जिलाधिकारी आलोक कुमार पांडे पर जानबूझकर पीड़ित परिवारों को केवल तीन-तीन लाख रुपये देकर उनके अधिकारों का हनन करने का आरोप लगा है. 156/3 के तहत हुई लंबी सुनवाई के बाद एससी/एसटी अदालत ने यह फैसला सुनाया है. मामला दो IAS अधिकारियों से जुड़ा होने के कारण कोई भी अधिकारी कैमरे के सामने बोलने को तैयार नहीं हैं.

क्या है पूरा मामला
बता दें कि, मई 2017 में थाना बड़गांव इलाके के शब्बीरपुर गांव में दलित और ठाकुर समाज के बीच जातीय हिंसा हो गई थी. जातीय हिंसा में ठाकुरों ने दलित परिवारों पर पथराव कर न सिर्फ मारपीट की थी, बल्कि उनके घरों को भी जला दिया था. इस दौरान सैकड़ों लोग घायल हो गए थे, जबकि दो दर्जन से ज्यादा घर लूटपाट कर जला दिए गए थे. मामले को शांत करने के लिए प्रशासन ने आनन-फानन में मुआवजे का मरहम लगाया था, लेकिन यह मुआवजा महामहिम राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित मुआवजे से बहुत कम था. वाजिब मुआवजा नहीं मिलने पर पीड़ित परिवारों ने एससी/एसटी की विशेष अदालत में याचिका दायर की थी.

हिंसा-डकैती पीड़ितों को सरकार से मिलती है ये सुविधाएं
पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता राजकुमार ने बताया कि, शब्बीरपुर निवासी दल सिंह ने विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट वीके लाल की अदालत में प्रार्थना पत्र दिया था. प्रार्थना पत्र में बताया गया था कि वह शब्बीरपुर दंगे का पीड़ित है, जिसको लेकर थाना बड़गांव में मुकदमा भी दर्ज है. उस दौरान जिला समाज कल्याण विभाग की ओर से उसे तीन लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था, लेकिन जिन धाराओं में मुकदमा दर्ज है, उसके तहत पीड़ित परिवारों को 8.25 लाख रुपये का अनुदान और 5 हजार रुपये महीने की मूल पेंशन के साथ महंगाई भत्ता दिए जाने का प्रावधान था. इसके अलावा हिंसा पीड़ित परिवार के बच्चों को स्नातक तक शिक्षा और पालन पोषण का खर्च भी सरकार वहन करती है. हालांकि वर्तमान जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने पेंशन व अन्य सुविधाएं दिए जाने के संबंध में 17 जून 2020 को प्रमुख सचिव समाज कल्याण को पत्र भेज कर इस मामले में मार्गदर्शन मांगा था, लेकिन उनके पत्र का आज तक जवाब नहीं आया है.

ये भी पढ़ें: shardiya Navratri 2020: सहारनपुर के शाकंभरी देवी सिद्धपीठ मंदिर पर नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं का सैलाब

विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट न्यायधीश ने सुनाया फैसला
एससी/एसटी एक्ट न्यायाधीश वीके लाल ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि, तत्कालीन डीएम आलोक कुमार पांडेय और प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह ने संसद द्वारा पारित और राष्ट्रपति द्वारा जारी राजाज्ञा का उल्लंघन किया है. अपने फैसले में उन्होंने कहा कि यह अनुसूचित जाति के लोगों को नुकसान पहुंचाने की नीयत से जानबूझकर किया गया अपराध है. इसलिए इस संबंध में पुलिस जांच कराना न्यायोचित नहीं है. न्यायालय ने दोनों के विरुद्ध मामला परिवाद के रूप में दर्ज कर 19 नवंबर को सुनवाई की तिथि निर्धारित की है.

सहारनपुर: जनपद के शब्बीरपुर गांव में तीन साल पहले हुई जातीय हिंसा के मामले के दौरान जिलाधिकारी रहे आलोक कुमार पांडे और तत्कालीन प्रमुख सचिव, समाज कल्याण मनोज सिंह की मुश्किलें बढ़ने लगी हैं. जातीय हिंसा में पीड़ित दलित परिवारों को निर्धारित मुआवजा न देने के मामले में एससी/एसटी की विशेष अदालत ने दोनों अधिकारियों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने का फैसला सुरक्षित रखा है.

जानकारी देते हिंसा पीड़ित के वकील.

अदालत ने परिवाद दर्ज कर सुनवाई के लिए 19 नवंबर की तारीख निर्धारित की है. जानकारी के मुताबिक, हिंसा पीड़ित परिवारों को 8.25 लाख रुपये का मुआवजा, 5 हजार रुपये महीना मूल पेंशन के साथ बच्चों को स्नातक तक की पढ़ाई का पूरा खर्च और पालन पोषण करने का प्रावधान है, लेकिन तत्कालीन जिलाधिकारी आलोक कुमार पांडे पर जानबूझकर पीड़ित परिवारों को केवल तीन-तीन लाख रुपये देकर उनके अधिकारों का हनन करने का आरोप लगा है. 156/3 के तहत हुई लंबी सुनवाई के बाद एससी/एसटी अदालत ने यह फैसला सुनाया है. मामला दो IAS अधिकारियों से जुड़ा होने के कारण कोई भी अधिकारी कैमरे के सामने बोलने को तैयार नहीं हैं.

क्या है पूरा मामला
बता दें कि, मई 2017 में थाना बड़गांव इलाके के शब्बीरपुर गांव में दलित और ठाकुर समाज के बीच जातीय हिंसा हो गई थी. जातीय हिंसा में ठाकुरों ने दलित परिवारों पर पथराव कर न सिर्फ मारपीट की थी, बल्कि उनके घरों को भी जला दिया था. इस दौरान सैकड़ों लोग घायल हो गए थे, जबकि दो दर्जन से ज्यादा घर लूटपाट कर जला दिए गए थे. मामले को शांत करने के लिए प्रशासन ने आनन-फानन में मुआवजे का मरहम लगाया था, लेकिन यह मुआवजा महामहिम राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित मुआवजे से बहुत कम था. वाजिब मुआवजा नहीं मिलने पर पीड़ित परिवारों ने एससी/एसटी की विशेष अदालत में याचिका दायर की थी.

हिंसा-डकैती पीड़ितों को सरकार से मिलती है ये सुविधाएं
पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता राजकुमार ने बताया कि, शब्बीरपुर निवासी दल सिंह ने विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट वीके लाल की अदालत में प्रार्थना पत्र दिया था. प्रार्थना पत्र में बताया गया था कि वह शब्बीरपुर दंगे का पीड़ित है, जिसको लेकर थाना बड़गांव में मुकदमा भी दर्ज है. उस दौरान जिला समाज कल्याण विभाग की ओर से उसे तीन लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था, लेकिन जिन धाराओं में मुकदमा दर्ज है, उसके तहत पीड़ित परिवारों को 8.25 लाख रुपये का अनुदान और 5 हजार रुपये महीने की मूल पेंशन के साथ महंगाई भत्ता दिए जाने का प्रावधान था. इसके अलावा हिंसा पीड़ित परिवार के बच्चों को स्नातक तक शिक्षा और पालन पोषण का खर्च भी सरकार वहन करती है. हालांकि वर्तमान जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने पेंशन व अन्य सुविधाएं दिए जाने के संबंध में 17 जून 2020 को प्रमुख सचिव समाज कल्याण को पत्र भेज कर इस मामले में मार्गदर्शन मांगा था, लेकिन उनके पत्र का आज तक जवाब नहीं आया है.

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विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट न्यायधीश ने सुनाया फैसला
एससी/एसटी एक्ट न्यायाधीश वीके लाल ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि, तत्कालीन डीएम आलोक कुमार पांडेय और प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह ने संसद द्वारा पारित और राष्ट्रपति द्वारा जारी राजाज्ञा का उल्लंघन किया है. अपने फैसले में उन्होंने कहा कि यह अनुसूचित जाति के लोगों को नुकसान पहुंचाने की नीयत से जानबूझकर किया गया अपराध है. इसलिए इस संबंध में पुलिस जांच कराना न्यायोचित नहीं है. न्यायालय ने दोनों के विरुद्ध मामला परिवाद के रूप में दर्ज कर 19 नवंबर को सुनवाई की तिथि निर्धारित की है.

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