सहारनपुर: जनपद के उत्तरी छोर पर स्थित है बाबा लालदास का बाड़ा जो देश दुनिया मे अपनी अनोखी पहचान रखता है. बाबा लालदास जी हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए ही नहीं बल्कि वह गंगा मैया के बड़े भक्त माने जाते थे. वह संत थे जिन्होंने 300 वर्ष तक तपस्या की थी. कहा जाता है कि उन्होंने अपने तपोबल से गंगा मैया को भी अपनी कुटिया पर आने न्योता दिया था. इतना ही नही उनके न्योते पर मां गंगा भी खुश होकर सहारनपुर चली आईं थी.
मुगल सम्राट भी थे बाबा के मुरीद
खासबात ये है कि बाबा की तपस्या और साधना से दारा शिकोह और मुगल सम्राट शाहजहां भी उनके मुरीद हो गए थे और उन्होंने बाबा को कई गांवों की जागीर भेंट कर दी थी. बाबा ने इसे लेने से मना कर दिया लेकिन शाहजहां नहीं मानें आज भी बाबा लालदास के आश्रम के पास काफी जमीन है, जिस पर खेती की जाती है. दाराशिकोह ने बाबा लालदास का वर्णन अपनी एक पुस्तक में भी किया है.
तीन सौ वर्ष की तपस्या
बाबा का मंदिर और मजार सहारनपुर महानगर के उत्तरी छोर पर है. बाबा लालदास ऐसे संत थे, जिन्होंने करीब 300 साल तक तपस्या की थी, जिसके चलते सहारनपुर जिले को संत बाबा लालदास जी की तपस्थली भी कहा जाता है. जानकारों की मानें तो बाबा लालदास गंगा मैया के ऐसे भक्त थे जो अपने तपोबल से कुछ क्षणों में सहारनपुर से हरिद्वार हर की पौड़ी पर गंगा स्नान कर के लौट आते थे.
मां गंगा को सहारनपुर आने का किया आग्रह
बाबा लालदास हर सुबह सहारनपुर से हरिद्वार गंगा स्नान के लिए जाते थे. एक दिन उनके साथ रहने वाले हाजी शाह कमाल ने उनसे कहा कि बाबा आप रोज हरिद्वार जाते हैं क्या मां गंगा सहारनपुर आ सकती हैं. बाबा का जवाब था हां क्यो नहीं.
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अगले दिन मां गंगा से बाबा लालदास ने कहा- 'मां अगर मैं सच्चे मन से आपका सेवक हूं और आप इस सेवक पर कृपा रखती हैं तो कल आप मेरी कुटिया पर आकर दर्शन देंगी. मैं आपकी प्रतीक्षा करूंगा. इसके बाद बाबा ने अपना लोटा और सोटा वहीं गंगा की धारा में छोड़ आए. कहते हैं कि बाबा लालदास की भक्ति से खुश होकर मां भगीरथी शकलापुरी के पास भूगर्भ से प्रकट हुईं और यहीं से अपनी पवित्रधारा के साथ उस जलाशय तक आ पहुंची, जिसके पास बाबा लालदास की कुटिया थी. बाद में देखा गया कि जलाशय में बाबा का वह लोटा और सोटा तैर रहा था, जिसे वह हरिद्वार गंगा में छोड़ आए थे. तभी से यह जल स्त्रोत अपने सदानीरा रूप में शकलापुरी के उदगम से शुरू होकर लगातार बह रहा है.