रायबरेली: हाई कोर्ट के निर्णय के बाद उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में देरी की कोई गुंजाइश नहीं दिखती है. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत चुनाव को लेकर माहौल बनना काफी पहले से ही शुरु हो गया था पर अब जब समय बेहद नजदीक आ चुका है तो इसको लेकर सभी की धड़कने तेज हो गई हैं. सियासी दल भी अपने-अपने समीकरण बैठाने में जुट गए हैं और कुछ यही कारण है कि चुनावी संग्राम में हर कोई जोर आजमाइश करता दिख रहा है.
पंचायत चुनाव 2021: विकास से कोसो दूर हैं रायबरेली के ये गांव - रायबरेली पंचायत चुनाव 2021
यूपी में पंचायत चुनाव का शंखनाद हो चुका है. गांव में पिछले पांच वर्षों में पंचायत ने कितना विकास किया है. इसकी पड़ताल करने के लिए ईटीवी भारत की टीम गांव-गांव पहुंच रही है. रायबरेली जिले के कोला हैबतपुर गांव के ग्रामीण विकास को लेकर क्या कहते हैं, सुनिए उन्हीं की जुबानी.
यूपी में पंचायत चुनाव का शंखनाद हो चुका है.
रायबरेली: हाई कोर्ट के निर्णय के बाद उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में देरी की कोई गुंजाइश नहीं दिखती है. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत चुनाव को लेकर माहौल बनना काफी पहले से ही शुरु हो गया था पर अब जब समय बेहद नजदीक आ चुका है तो इसको लेकर सभी की धड़कने तेज हो गई हैं. सियासी दल भी अपने-अपने समीकरण बैठाने में जुट गए हैं और कुछ यही कारण है कि चुनावी संग्राम में हर कोई जोर आजमाइश करता दिख रहा है.
पंचायती राज की परिकल्पना ही ग्रामोत्थान पर केंद्रित रही है. लेकिन दशकों तक सत्ता के शीर्ष केंद्र में रहना वाला 'रायबरेली' विकास की बाट जोहता नज़र आता है. यही कारण है कि गांव का रुख करते ही तमाम ऐसे लोग हैं जो जमीनी हालात से रुबरु कराते नज़र आते हैं. जिले के कई ऐसे गांव हैं जहां आधारभूत संरचना की कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है और सड़क, पानी व आवास जैसी सुविधाओं से लोग मरहूम नज़र आते हैं. यही कारण है कि ईटीवी भारत जब रायबरेली के भदोखर थाना क्षेत्र के कोला हैबतपुर गांव पहुंचा तब लोगों ने सबसे पहले इन्ही समस्याओं को बताना मुनासिब समझा. गांव के बुजुर्ग पीतांबर कहते है कि बदलाव हुआ है लेकिन अभी बहुत कुछ होना बाकी है. हालांकि वह खुद कुछ भी कहने से परहेज करते नज़र आते हैं.गांव में नहीं है पक्की सड़क
गांव के निवासी जगदीश शंकर कहते हैं कि गांव में सबसे बड़ी समस्या पक्की सड़क का ना होना है. यहां कभी भी डामरीकृत सड़क नहीं रही, सिर्फ खड़ंजा से ही काम चलता रहा है. सड़क पास हुई फिर भी बनी नहीं, अच्छे संपर्क मार्ग की कमी बेहद अखरती है.छुट्टा जानवरों की है बड़ी समस्या
जंग बहादुर कहते है कि कोला हैबतपुर गांव जंगल के नजदीक बसा है. छुट्टा जानवर व नीलगायों के कारण किसान बहुत परेशान रहते हैं. खेती में बहुत नुकसान होता है और इस समस्या से निजात मिलती भी नहीं दिखती.चिकित्सा सेवाओं की भी है कमी
राज कुमार कहते हैं कि थोड़ी बहुत समस्याओं के लिए भी गांव के आसपास के कोई चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है. कम से कम 8 से 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. नजदीक में ना ही कोई स्वास्थ्य केंद्र हैं और ना ही कोई अन्य सुविधा उपलब्ध है. इस विषय पर कोई ध्यान नहीं देता है. इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
नालियों का निर्माण न होने के कारण होते हैं विवाद
राम प्यारे कहते हैं कि नालियों का निर्माण ना होने के कारण आए दिन विवाद हुआ करता हैं. घरों का पानी बाहर खड़ंजे पर आता है. पानी के निकास की समुचित व्यवस्था न होने से कई अन्य परेशानी भी उत्पन्न हो जाती है. यह भी दुरुस्त होनी चाहिए.
नहीं मिलता पीने का पानी
गांव के नवयुवक परमजीत मौर्य कहते हैं कि उनके घर में पीने के पानी की सबसे ज्यादा समस्या है. परिवार में 12 लोग हैं और सभी इसको लेकर परेशान रहते हैं. साथ ही कई दुधारु पशु भी हैं. पीने के पानी के लिए कई बार ग्राम प्रधान से कहा लेकिन उन्होंने एक सिरे से मना कर दिया. यह बेहद गंभीर समस्या है और इससे जरुर निजात दिलाया जाना चाहिए.
अधूरे बने हैं शौचालय,पीने के पानी की है समस्या
गांव की महिला सदस्य शांति देवी कहती हैं कि गांव में पीने के पानी की समस्या है. करीब 1 किलोमीटर दूर से हैंड पंप से भरकर पीने का पानी घर लाना पड़ता है. इसके अलावा नालियां ना बनी होने के कारण भी आए दिन लोगों में विवाद होता है. शौचालय के बारे में पूछे जाने पर वह कहती हैं कि आधे अधूरे ही शौचालयों का निर्माण हुआ है. उनमें अभी तक दरवाजे नहीं लगे हैं.
सिंचाई के लिए नही मिलता किसानों को पानी
स्थानीय किसान रामशंकर कहते हैं कि सिंचाई का पानी ना होने के कारण विषम परिस्थितियों में गांव में खेती करनी पड़ रही है. सिंचाई के सीजन में नहरों में पानी का अभाव रहता है और इस पर ना ही अधिकारियों का ध्यान जाता है और ना ही जनप्रतिनिधि कुछ प्रयास करते दिखते हैं. नहरों की सफाई ना होने के कारण यह समस्या किसानों के लिए बेहद गंभीर संकट खड़ा करती है.
पंचायती राज की परिकल्पना ही ग्रामोत्थान पर केंद्रित रही है. लेकिन दशकों तक सत्ता के शीर्ष केंद्र में रहना वाला 'रायबरेली' विकास की बाट जोहता नज़र आता है. यही कारण है कि गांव का रुख करते ही तमाम ऐसे लोग हैं जो जमीनी हालात से रुबरु कराते नज़र आते हैं. जिले के कई ऐसे गांव हैं जहां आधारभूत संरचना की कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है और सड़क, पानी व आवास जैसी सुविधाओं से लोग मरहूम नज़र आते हैं. यही कारण है कि ईटीवी भारत जब रायबरेली के भदोखर थाना क्षेत्र के कोला हैबतपुर गांव पहुंचा तब लोगों ने सबसे पहले इन्ही समस्याओं को बताना मुनासिब समझा. गांव के बुजुर्ग पीतांबर कहते है कि बदलाव हुआ है लेकिन अभी बहुत कुछ होना बाकी है. हालांकि वह खुद कुछ भी कहने से परहेज करते नज़र आते हैं.गांव में नहीं है पक्की सड़क
गांव के निवासी जगदीश शंकर कहते हैं कि गांव में सबसे बड़ी समस्या पक्की सड़क का ना होना है. यहां कभी भी डामरीकृत सड़क नहीं रही, सिर्फ खड़ंजा से ही काम चलता रहा है. सड़क पास हुई फिर भी बनी नहीं, अच्छे संपर्क मार्ग की कमी बेहद अखरती है.छुट्टा जानवरों की है बड़ी समस्या
जंग बहादुर कहते है कि कोला हैबतपुर गांव जंगल के नजदीक बसा है. छुट्टा जानवर व नीलगायों के कारण किसान बहुत परेशान रहते हैं. खेती में बहुत नुकसान होता है और इस समस्या से निजात मिलती भी नहीं दिखती.चिकित्सा सेवाओं की भी है कमी
राज कुमार कहते हैं कि थोड़ी बहुत समस्याओं के लिए भी गांव के आसपास के कोई चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है. कम से कम 8 से 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. नजदीक में ना ही कोई स्वास्थ्य केंद्र हैं और ना ही कोई अन्य सुविधा उपलब्ध है. इस विषय पर कोई ध्यान नहीं देता है. इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
नालियों का निर्माण न होने के कारण होते हैं विवाद
राम प्यारे कहते हैं कि नालियों का निर्माण ना होने के कारण आए दिन विवाद हुआ करता हैं. घरों का पानी बाहर खड़ंजे पर आता है. पानी के निकास की समुचित व्यवस्था न होने से कई अन्य परेशानी भी उत्पन्न हो जाती है. यह भी दुरुस्त होनी चाहिए.
नहीं मिलता पीने का पानी
गांव के नवयुवक परमजीत मौर्य कहते हैं कि उनके घर में पीने के पानी की सबसे ज्यादा समस्या है. परिवार में 12 लोग हैं और सभी इसको लेकर परेशान रहते हैं. साथ ही कई दुधारु पशु भी हैं. पीने के पानी के लिए कई बार ग्राम प्रधान से कहा लेकिन उन्होंने एक सिरे से मना कर दिया. यह बेहद गंभीर समस्या है और इससे जरुर निजात दिलाया जाना चाहिए.
अधूरे बने हैं शौचालय,पीने के पानी की है समस्या
गांव की महिला सदस्य शांति देवी कहती हैं कि गांव में पीने के पानी की समस्या है. करीब 1 किलोमीटर दूर से हैंड पंप से भरकर पीने का पानी घर लाना पड़ता है. इसके अलावा नालियां ना बनी होने के कारण भी आए दिन लोगों में विवाद होता है. शौचालय के बारे में पूछे जाने पर वह कहती हैं कि आधे अधूरे ही शौचालयों का निर्माण हुआ है. उनमें अभी तक दरवाजे नहीं लगे हैं.
सिंचाई के लिए नही मिलता किसानों को पानी
स्थानीय किसान रामशंकर कहते हैं कि सिंचाई का पानी ना होने के कारण विषम परिस्थितियों में गांव में खेती करनी पड़ रही है. सिंचाई के सीजन में नहरों में पानी का अभाव रहता है और इस पर ना ही अधिकारियों का ध्यान जाता है और ना ही जनप्रतिनिधि कुछ प्रयास करते दिखते हैं. नहरों की सफाई ना होने के कारण यह समस्या किसानों के लिए बेहद गंभीर संकट खड़ा करती है.