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रायबरेली: मां की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे कारीगर

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Published : Sep 26, 2019, 3:09 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:19 PM IST

पूरे देश में नवरात्रि का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. बंगाल से रायबरेली आए कालाकार मां दुर्गा के प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं. कारीगरों का कहना है कि मूर्ति के भावों के हिसाब से आंखों को डिजाइन किया जाता है.

प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे कारीगर.

रायबरेली: नवरात्र के आगमन से पहले से ही पूरे देश में हर्षोल्लास का माहौल है. 29 सितंबर से नवरात्रि शुरू हो रही है. इस दौरान हर किसी के मन में मां के विराट स्वरूप की अनोखी छटा बसती है. वैसे तो मां के भक्तों की कोई कमी नहीं है पर कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो उनके आगमन की तैयारी पूरे साल भर करते हैं. इन्हीं भक्तों की मेहनत का नतीजा रहता है कि मानो सच में मां प्रत्यक्ष रूप से उन स्थानों पर विराजमान हो पाती हैं.

प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे कारीगर.


दुर्गा पूजा में विशेष तौर पर पंडालों में मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजन और अर्चना की जाती है. मां की मूर्तियों को बनाने के विषय में कई विशेष तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. कोई कहता है कि मूर्तियों को बनाने के लिए वैश्यालय से माटी लाई जाती है, वहीं कोई कहता है कि दुर्गा की मूर्तियों की आंखें कारीगर हमेशा रात में ही बनाते हैं. वहीं कारीगर मूर्तियों को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं.


ईटीवी भारत ने मां की प्रतिमा को साकार रूप देने वाले कलाकारों से की बातचीत-
कारीगरों का कहा है कि कठिन नियमों को पालन करते हुए मां के प्रतिमा को साकार रूप देते हैं. ऐसी कोई देवी प्रतिमा नहीं है जिसकी आंखों में तेज न दिखाई देता हो. मूर्ति के भावों के हिसाब से आंखों को डिजाइन किया जाता है. कहते हैं जो भाव मां के चेहरे पर दिखाना है, वही भाव मूर्तिकार को अपने मन में भी साधना होता है.

पढ़ें:- दुर्गा पूजा पर अयोध्या में कोलकाता मॉडल मूर्तियों की मांग

12 वर्ष की उम्र से मां की मूर्तियों को बनाने वाले बंगाल के शिल्पकार विशु कहते हैं कि मां की आकृति को बनाने के दौरान विशेष तौर पर आंखों के तेज का ध्यान रखा जाता है. हर वर्ष करीब चार महीने का समय दुर्गा पूजा से जुड़ी तैयारियों में लगाना पड़ता है. इस दौरान बंगाल से करीब 12 से 15 लोगों की टीम के साथ वह दुर्गा पूजा से 3 महीने पहले ही रायबरेली आकर इस कार्य का श्रीगणेश करते हैं.


वेश्यालय की माटी का करते हैं प्रयोग-
प्राचीन मान्यता के अनुसार देवी दुर्गा की प्रतिमा के निर्माण में वेश्यालय की माटी का प्रयोग किया जाता है. हालांकि रायबरेली में इसकी उपलब्धता न होने के कारण वे बंगाल से इसे लाकर यहां की मिट्टी में मिलाने की बात कहते है. हर वर्ष करीब 150 मूर्तियों को साकार रूप देते हैं. इनमें मां की आकृति के अलावा अन्य देवी-देवताओं समेत शेर और दानवों के रूप भी शामिल होते हैं. इन मूर्तियों की कीमत 1500 से लेकर 7000 तक होती है.

रायबरेली: नवरात्र के आगमन से पहले से ही पूरे देश में हर्षोल्लास का माहौल है. 29 सितंबर से नवरात्रि शुरू हो रही है. इस दौरान हर किसी के मन में मां के विराट स्वरूप की अनोखी छटा बसती है. वैसे तो मां के भक्तों की कोई कमी नहीं है पर कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो उनके आगमन की तैयारी पूरे साल भर करते हैं. इन्हीं भक्तों की मेहनत का नतीजा रहता है कि मानो सच में मां प्रत्यक्ष रूप से उन स्थानों पर विराजमान हो पाती हैं.

प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे कारीगर.


दुर्गा पूजा में विशेष तौर पर पंडालों में मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजन और अर्चना की जाती है. मां की मूर्तियों को बनाने के विषय में कई विशेष तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. कोई कहता है कि मूर्तियों को बनाने के लिए वैश्यालय से माटी लाई जाती है, वहीं कोई कहता है कि दुर्गा की मूर्तियों की आंखें कारीगर हमेशा रात में ही बनाते हैं. वहीं कारीगर मूर्तियों को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं.


ईटीवी भारत ने मां की प्रतिमा को साकार रूप देने वाले कलाकारों से की बातचीत-
कारीगरों का कहा है कि कठिन नियमों को पालन करते हुए मां के प्रतिमा को साकार रूप देते हैं. ऐसी कोई देवी प्रतिमा नहीं है जिसकी आंखों में तेज न दिखाई देता हो. मूर्ति के भावों के हिसाब से आंखों को डिजाइन किया जाता है. कहते हैं जो भाव मां के चेहरे पर दिखाना है, वही भाव मूर्तिकार को अपने मन में भी साधना होता है.

पढ़ें:- दुर्गा पूजा पर अयोध्या में कोलकाता मॉडल मूर्तियों की मांग

12 वर्ष की उम्र से मां की मूर्तियों को बनाने वाले बंगाल के शिल्पकार विशु कहते हैं कि मां की आकृति को बनाने के दौरान विशेष तौर पर आंखों के तेज का ध्यान रखा जाता है. हर वर्ष करीब चार महीने का समय दुर्गा पूजा से जुड़ी तैयारियों में लगाना पड़ता है. इस दौरान बंगाल से करीब 12 से 15 लोगों की टीम के साथ वह दुर्गा पूजा से 3 महीने पहले ही रायबरेली आकर इस कार्य का श्रीगणेश करते हैं.


वेश्यालय की माटी का करते हैं प्रयोग-
प्राचीन मान्यता के अनुसार देवी दुर्गा की प्रतिमा के निर्माण में वेश्यालय की माटी का प्रयोग किया जाता है. हालांकि रायबरेली में इसकी उपलब्धता न होने के कारण वे बंगाल से इसे लाकर यहां की मिट्टी में मिलाने की बात कहते है. हर वर्ष करीब 150 मूर्तियों को साकार रूप देते हैं. इनमें मां की आकृति के अलावा अन्य देवी-देवताओं समेत शेर और दानवों के रूप भी शामिल होते हैं. इन मूर्तियों की कीमत 1500 से लेकर 7000 तक होती है.

Intro:रायबरेली स्पेशल: शरदीय नवरात्रि विशेष -

'मां की हर बात निराली है - माँ की आंखों का तेज उनकी महिमा की देन'

25 सिंतबर 2019 - रायबरेली

नवरात्र के आगमन से पहले ही जहां पूरे देश में हर्षोल्लास भरा माहौल रहता है, इस दौरान हर किसी के मन में माँ के विराट स्वरुप की अनोखी छटा बसती है।वैसे तो मां के भक्तों की दुनिया में कोई कमी नहीं है पर कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो उनके आगमन की तैयारी पूरे साल भर करते हैं और इन्हीं भक्तों की मेहनत का नतीजा रहता है कि मानो सच में मां प्रत्यक्ष रूप से उन स्थानों में विराजमान हो पाती जिन्हें विशेष तौर पर हर शरदीय नवरात्र के पूजन के लिए तैयार किया जाता है।

इस नवरात्र में होने वाली दुर्गा पूजा में विशेष तौर पर पंडालों में मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजन व अर्चना की जाती है।माँ की मूर्तियों को बनाने के विषय मे कई विशेष तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं।कोई कहता है कि मूर्तियों को बनाने के लिए वैश्यालय से माटी लाई जाती है वही कोई कहता है कि दुर्गा जी की मूर्तियों की आंखें कलाकार हमेशा रात में ही बनाते हैं।

ETV भारत की विशेष पेशकश में माँ की प्रतिमा को साकार रुप देने वाले कलाकारों से बातचीत कर उनके स्वरूपों से जुड़े अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालेंगें।





Body:मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने वाले कलाकार कठिन नियमों को पालन करते हुए उन्हें साकार रुप देते है।ऐसी कोई देवी प्रतिमा नहीं है जिसकी आंखों में तेज न दिखाई देता हो।मूर्ति के भावों के हिसाब से आंखों को डिजाइन किया जाता है।कहते हैं जो भाव मां के चेहरे पर दिखाना है वही भाव मूर्तिकार को अपने मन में भी साधना होता है।

माँ की महिमा की देन - आंखों में होता है अनोखा तेज़ -

12 वर्ष की उम्र से मां की मूर्तियों को बनाने वाले बंगाल के शिल्पकार विशु कहते हैं मां की आकृति को बनाने के दौरान विशेष तौर पर आंखों के तेज का ध्यान रखा जाता है हालांकि विशु मां की आंखों के तेज को अलौकिक करार देते हुए अपनी कलाकारी से इसमे रंग भरने का श्रेय लेने से बचते नज़र आते है और इसी माँ के अद्भुत स्वरुप की महिमा कहते है।

करीब 15 वर्षों से लगातार बंगाल से आकर रायबरेली व आसपास के क्षेत्र के लोगों के लिए मां की प्रतिमा बनाने के साथ ही उनके दरबार को भी स्थापित करने वाले कलाकार विशु कहते हैं कि हर वर्ष करीब 4 महीने का समय दुर्गा पूजा से जुड़ी तैयारियों में लगाना पड़ता है।इस दौरान बंगाल से करीब 12 से 15 लोगों की टीम के साथ वह दुर्गा पूजा से 3 महीने पहले ही रायबरेली आकर इस कार्य का श्रीगणेश करते हैं।

वेश्यालय की माटी का करते है प्रयोग-

प्राचीन मान्यता के अनुसार देवी दुर्गा की प्रतिमा के निर्माण में वेश्यालय की माटी का प्रयोग किए जाने को विशु ने सही करार देते हुए माना कि इस परंपरा का निर्वाहन भी किया जाता है हालांकि रायबरेली में इसकी उपलब्धता न होने के कारण वो बंगाल से इसे लाकर यहां की मिट्टी में मिलाने की बात कहते है।

हर वर्ष करीब 150 मूर्तियों को देते है साकार रुप, 1500 से लेकर 7000 तक होती है कीमत -

शरदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में हर साल लगभग 150 बड़ी मूर्तियों को बनाने में कामयाब होते है।इनमें माँ की आकृति के अलावा अन्य देवी देवताओं समेत शेर व दानवों के रुप भी शामिल होते है,इनके मूल्य 1500 से लेकर 6 -7 हज़ार तक होने की बात कहते है।













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बाइट : विशु - बंगाली मूर्ति कलाकार

प्रणव कुमार - 7000024034
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:19 PM IST
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