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रायबरेली: 2 ठेकेदार मिलकर भी नहीं पूरा कर पाए रिंग रोड प्रोजेक्ट, टूटी उम्मीद

यूपीए सरकार में स्थानीय सांसद सोनिया गांधी की ओर से रायबरेली को रिंग रोड प्रोजेक्ट की सौगात दी गई थी. मार्च 2014 में ही इस प्रोजेक्ट के फर्स्ट फेज में काम शुरू हो गया था. वहीं दो साल के अंदर इसे पूरा करने का दावा किया जा रहा था, लेकिन अभी तक इस प्रोजेक्ट का पहला फेज ही अधूरा पड़ा है.

रिंग रोड प्रोजेक्ट
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Published : Oct 30, 2019, 8:11 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:19 PM IST

रायबरेली: यूपीए शासनकाल के दौरान सांसद सोनिया गांधी के विशेष प्रयासों की बदौलत साल 2013 में स्वीकृत हुई रिंग रोड परियोजना अब तक पूरी नहीं हो सकी. इस परियोजना को पूरा करने के लिए केंद्रीय मंत्रालय की ओर से अब तक दो ठेकेदारों को आजमाया जा चुका है, लेकिन दोनों ने प्रोजेक्ट पूरा होने से पहले ही काम छोड़ दिया. अब एक बार फिर से किसी अन्य कंपनी के माध्यम से इस प्रोजेक्ट पूरा किए जाने की बात कही जा रही है.

अधूरा पड़ा रिंग रोड प्रोजेक्ट.

दरअसल, केंद्र सरकार के सड़क परिवाहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को इस प्रोजेक्ट को पूरा कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. शुरुआत में राजधानी लखनऊ की कंपनी 'जेकेएम' को इसका ठेका दिया गया था, लेकिन कभी मजदूरों से जुड़ी समस्या तो कभी रंगदारी से जुड़े मुद्दे को लेकर अक्सर विवाद की खबरें आती रहीं और काम पूरा न हो सका. इसके बाद दूसरी कंपनी 'एपीएस' को इसे पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन प्रोजेक्ट को अंजाम तक लाने में वह भी कामयाब नहीं हो सकी. अब दोनों को 'ब्लैकलिस्ट' करने की बात चल रही है. हालांकि एक बार फिर इसको पूरा करने के लिए अन्य किसी कंपनी की तलाश की जा रही है.

इसे भी पढ़ें- इसे आस्था कहें या अंधविश्वास, गर्म दूध से स्नान कर बाबा करता है भविष्यवाणी

अधूरे पड़े रिंग रोड प्रोजेक्ट के बारे में अपर जिलाधिकारी राम अभिलाष ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि मंत्रालय स्तर से इस मसले का ठोस हल निकाले जाने को लेकर बातचीत चल रही है. मीटिंग के दौरान भी संबंधित विभाग के प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर की ओर से इस विषय पर जल्द ही निर्णय लिए जाने की बात कही गई है. वहीं करोड़ों खर्च करने के बावजूद यातायात की दृष्टि से बेहद अहम इस प्रोजेक्ट को साकार रूप देने के लिए कई दावे भले ही किए जा रहे हों, लेकिन तय समय के सालों बीत जाने के बावजूद इस प्रोजेक्ट का पूरा न हो पाना सिस्टम के फेलियर को दर्शाता है.

रायबरेली: यूपीए शासनकाल के दौरान सांसद सोनिया गांधी के विशेष प्रयासों की बदौलत साल 2013 में स्वीकृत हुई रिंग रोड परियोजना अब तक पूरी नहीं हो सकी. इस परियोजना को पूरा करने के लिए केंद्रीय मंत्रालय की ओर से अब तक दो ठेकेदारों को आजमाया जा चुका है, लेकिन दोनों ने प्रोजेक्ट पूरा होने से पहले ही काम छोड़ दिया. अब एक बार फिर से किसी अन्य कंपनी के माध्यम से इस प्रोजेक्ट पूरा किए जाने की बात कही जा रही है.

अधूरा पड़ा रिंग रोड प्रोजेक्ट.

दरअसल, केंद्र सरकार के सड़क परिवाहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को इस प्रोजेक्ट को पूरा कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. शुरुआत में राजधानी लखनऊ की कंपनी 'जेकेएम' को इसका ठेका दिया गया था, लेकिन कभी मजदूरों से जुड़ी समस्या तो कभी रंगदारी से जुड़े मुद्दे को लेकर अक्सर विवाद की खबरें आती रहीं और काम पूरा न हो सका. इसके बाद दूसरी कंपनी 'एपीएस' को इसे पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन प्रोजेक्ट को अंजाम तक लाने में वह भी कामयाब नहीं हो सकी. अब दोनों को 'ब्लैकलिस्ट' करने की बात चल रही है. हालांकि एक बार फिर इसको पूरा करने के लिए अन्य किसी कंपनी की तलाश की जा रही है.

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अधूरे पड़े रिंग रोड प्रोजेक्ट के बारे में अपर जिलाधिकारी राम अभिलाष ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि मंत्रालय स्तर से इस मसले का ठोस हल निकाले जाने को लेकर बातचीत चल रही है. मीटिंग के दौरान भी संबंधित विभाग के प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर की ओर से इस विषय पर जल्द ही निर्णय लिए जाने की बात कही गई है. वहीं करोड़ों खर्च करने के बावजूद यातायात की दृष्टि से बेहद अहम इस प्रोजेक्ट को साकार रूप देने के लिए कई दावे भले ही किए जा रहे हों, लेकिन तय समय के सालों बीत जाने के बावजूद इस प्रोजेक्ट का पूरा न हो पाना सिस्टम के फेलियर को दर्शाता है.

Intro:रायबरेली:अधूरी पड़ी रिंग रोड योजना के पूरे होने की नहीं दिख रही उम्मीद

29 अक्टूबर 2019 - रायबरेली

यूपीए शासनकाल के दौरान स्थानीय सांसद सोनिया गांधी के विशेष प्रयासों की बदौलत स्वीकृत हुई रिंग रोड परियोजना सालों बीत जाने के बावजूद पूरा होने का नाम नहीं ले रही।परियोजना को पूरा करने के लिए केंद्रीय मंत्रालय द्वारा अब तक 2 ठेकेदारों को आज़माया जा चुका है पर दोनों ही प्रोजेक्ट पूरा होने से पहले ही काम छोड़ कर निकल चुकी है।अब एक बार पुनः किसी अन्य कंपनी के माध्यम से कार्य पूरा किए जाने की बात कही जा रही है।

दरअसल केंद्र सरकार के सड़क परिवाहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को इस प्रोजेक्ट को पूरा कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।शुरुआत में राजधानी लखनऊ के कंपनी 'जेकेएम' को इसका ठेका दिया गया था,पर कभी मजदूरों से जुड़ी समस्या,कभी रंगदारी से जुड़े मुद्दे को लेकर अक्सर विवाद की खबरें आती रही और काम पूरा न हो सका उसके बाद दूसरी कंपनी एपीएस को इसे पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई पर प्रोजेक्ट को अंजाम पर लाने में वो भी कामयाब नही हो सकी अब दोनों को 'ब्लैकलिस्ट' करने की बात चल रही है हालांकि एक बार फिर इसको पूरा करने के लिए अन्य किसी कंपनी की तलाश की जा रही है।



Body:यूपीए शासनकाल में स्थानीय सांसद सोनिया गांधी द्वारा वर्ष 2013 में रायबरेली को रिंग रोड प्रोजेक्ट की सौगात दी गई थी। अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों को महानगरों के बीच चलने वाले भारी वाहनों के ट्रैफिक से निजात दिलाने के मकसद से इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति दी गई।मार्च 2014 में ही इस प्रोजेक्ट के फर्स्ट फेज में काम शुरु हो गया था,दो साल के अंदर इसको पूरा करने का दावा किया जा रहा था पर 2016 से 2019 आ गया,रिंग रोड प्रोजेक्ट का पहला फेज भी अभी तक अधूरा ही पड़ा है।

अधूरे पड़े रिंग रोड प्रोजेक्ट के बारे में जब अपर जिलाधिकारी प्रशासन राम अभिलाष से ETV ने बातचीत की तो उनका कहना था कि मंत्रालय स्तर से इस मसले का ठोस हल निकालें जाने पर बातचीत चल रही है।मीटिंग के दौरान भी संबंधित विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर द्वारा इस विषय पर जल्द ही निर्णय लिए जाने की बात कही है।

करोड़ों खर्च करने के बावजूद यातायात की दृष्टि से बेहद अहम इस प्रोजेक्ट को साकार रुप देने के लिए कई दावे भले ही किए जा रहे हो पर तय समय के सालों बीत जाने के बावजूद इस प्रोजेक्ट को पूरा न हो पाना सिस्टम की फेलियर दर्शाता है।





Conclusion:विज़ुअल:संबंधित विज़ुअल,

बाइट:अपर जिला अधिकारी - प्रशासन अधिकारी- रायबरेली

प्रणव कुमार - 7000024034


Last Updated : Sep 17, 2020, 4:19 PM IST
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