रायबरेली: देश के स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका अदा करने वाली कांग्रेस के वर्तमान दौर में रसातल में जाने के पीछे का कारण कहीं न कहीं करिश्माई नेतृत्व के कमी होना भी रहा है. देश को जंगे आजादी दिलाने के मकसद से अस्तित्व में आएं कांग्रेस को आजादी मिलने के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भंग करने की हिदायत दी थी. देशहित का हवाला देते हुए अन्य वरिष्ठ नेताओं ने इसका संचालन बरकरार रखने का निर्णय लिया था.
क्या कहते हैं राजनीति के जानकार
राजनीतिक विश्लेषक के रुप में अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाने वाले डॉक्टर जितेंद्र ने बताया कि आजादी के पूर्व और आजादी के बाद के कांग्रेसी नेताओं में बड़ा फर्क रहा. निश्चित तौर पर कांग्रेस का गठन देश के स्वाधीनता आंदोलन को गति देने के मकसद से हुआ था.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह पूर्ण मत था की स्वतंत्रता पश्चात इस संगठन को आगे न बढ़ाया जाए, हालांकि राजनीतिक रूप से स्थापित हो चुके इस दल को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया और उस दौर के बड़े और दिग्गज नेता इसी पार्टी से जुड़े रहे.
दशकों तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा
इसमें कोई दो राय नहीं कि उस दौरान भारतीय राजनीति में कांग्रेस का ही दशकों तक वर्चस्व रहा और उसको चुनौती देने वाले विपक्ष की भूमिका भी न के समान रही. इसी बीच गांधी और नेहरू खानदान के लोगों का इस पार्टी में रुतबा भी कुछ इस कदर बढ़ा कि इस परिवार से जुड़े लोगों को पार्टी हाई कमान का दर्जा दिया जाने लगा. 1980 के बाद से देश में कांग्रेस की लोकप्रियता कम होती गई.
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जवाहरलाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी के दौर तक कांग्रेस बहुमत के आंकड़े को बेहद आसानी से पा लेती थी, लेकिन राजीव गांधी के असामयिक मृत्यु से देश की सबसे पुरानी पार्टी में रिक्तता आ गई. कुछ वर्षों बाद सोनिया का राजनीति में पदार्पण हुआ और 10 साल तक मनमोहन सिंह सिंह को पीएम बनने का अवसर भी मिला.