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रायबरेली: करिश्माई नेतृत्व न होने पर रसातल में पहुंची कांग्रेस - भारतीय राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व

शनिवार को कांग्रेस ने 135वां स्थापना वर्ष मनाया. कई दशकों तक देश में शासन करने वाली कांग्रेस अपने वर्चस्व को खो चुकी है. कांग्रेस की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर भाजपा न केवल केंद्र की सत्ता हासिल करने में कामयाब रही बल्कि देश के कई प्रदेशों में भी अपनी सरकार बनाकर इतिहास रच डाला.

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करिश्माई नेतृत्व न होने पर रसातल में पहुंची कांग्रेस.
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Published : Dec 29, 2019, 10:15 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:18 PM IST

रायबरेली: देश के स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका अदा करने वाली कांग्रेस के वर्तमान दौर में रसातल में जाने के पीछे का कारण कहीं न कहीं करिश्माई नेतृत्व के कमी होना भी रहा है. देश को जंगे आजादी दिलाने के मकसद से अस्तित्व में आएं कांग्रेस को आजादी मिलने के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भंग करने की हिदायत दी थी. देशहित का हवाला देते हुए अन्य वरिष्ठ नेताओं ने इसका संचालन बरकरार रखने का निर्णय लिया था.

जानकारी देते राजनीतिक विशेषज्ञ.

क्या कहते हैं राजनीति के जानकार

राजनीतिक विश्लेषक के रुप में अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाने वाले डॉक्टर जितेंद्र ने बताया कि आजादी के पूर्व और आजादी के बाद के कांग्रेसी नेताओं में बड़ा फर्क रहा. निश्चित तौर पर कांग्रेस का गठन देश के स्वाधीनता आंदोलन को गति देने के मकसद से हुआ था.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह पूर्ण मत था की स्वतंत्रता पश्चात इस संगठन को आगे न बढ़ाया जाए, हालांकि राजनीतिक रूप से स्थापित हो चुके इस दल को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया और उस दौर के बड़े और दिग्गज नेता इसी पार्टी से जुड़े रहे.

दशकों तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा

इसमें कोई दो राय नहीं कि उस दौरान भारतीय राजनीति में कांग्रेस का ही दशकों तक वर्चस्व रहा और उसको चुनौती देने वाले विपक्ष की भूमिका भी न के समान रही. इसी बीच गांधी और नेहरू खानदान के लोगों का इस पार्टी में रुतबा भी कुछ इस कदर बढ़ा कि इस परिवार से जुड़े लोगों को पार्टी हाई कमान का दर्जा दिया जाने लगा. 1980 के बाद से देश में कांग्रेस की लोकप्रियता कम होती गई.

इसे भी पढ़ें:-मथुरा: कैबिनेट मंत्री से किन्नरों ने लगाई सुरक्षा की गुहार, बताई ये बातें

जवाहरलाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी के दौर तक कांग्रेस बहुमत के आंकड़े को बेहद आसानी से पा लेती थी, लेकिन राजीव गांधी के असामयिक मृत्यु से देश की सबसे पुरानी पार्टी में रिक्तता आ गई. कुछ वर्षों बाद सोनिया का राजनीति में पदार्पण हुआ और 10 साल तक मनमोहन सिंह सिंह को पीएम बनने का अवसर भी मिला.

रायबरेली: देश के स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका अदा करने वाली कांग्रेस के वर्तमान दौर में रसातल में जाने के पीछे का कारण कहीं न कहीं करिश्माई नेतृत्व के कमी होना भी रहा है. देश को जंगे आजादी दिलाने के मकसद से अस्तित्व में आएं कांग्रेस को आजादी मिलने के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भंग करने की हिदायत दी थी. देशहित का हवाला देते हुए अन्य वरिष्ठ नेताओं ने इसका संचालन बरकरार रखने का निर्णय लिया था.

जानकारी देते राजनीतिक विशेषज्ञ.

क्या कहते हैं राजनीति के जानकार

राजनीतिक विश्लेषक के रुप में अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाने वाले डॉक्टर जितेंद्र ने बताया कि आजादी के पूर्व और आजादी के बाद के कांग्रेसी नेताओं में बड़ा फर्क रहा. निश्चित तौर पर कांग्रेस का गठन देश के स्वाधीनता आंदोलन को गति देने के मकसद से हुआ था.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह पूर्ण मत था की स्वतंत्रता पश्चात इस संगठन को आगे न बढ़ाया जाए, हालांकि राजनीतिक रूप से स्थापित हो चुके इस दल को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया और उस दौर के बड़े और दिग्गज नेता इसी पार्टी से जुड़े रहे.

दशकों तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा

इसमें कोई दो राय नहीं कि उस दौरान भारतीय राजनीति में कांग्रेस का ही दशकों तक वर्चस्व रहा और उसको चुनौती देने वाले विपक्ष की भूमिका भी न के समान रही. इसी बीच गांधी और नेहरू खानदान के लोगों का इस पार्टी में रुतबा भी कुछ इस कदर बढ़ा कि इस परिवार से जुड़े लोगों को पार्टी हाई कमान का दर्जा दिया जाने लगा. 1980 के बाद से देश में कांग्रेस की लोकप्रियता कम होती गई.

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जवाहरलाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी के दौर तक कांग्रेस बहुमत के आंकड़े को बेहद आसानी से पा लेती थी, लेकिन राजीव गांधी के असामयिक मृत्यु से देश की सबसे पुरानी पार्टी में रिक्तता आ गई. कुछ वर्षों बाद सोनिया का राजनीति में पदार्पण हुआ और 10 साल तक मनमोहन सिंह सिंह को पीएम बनने का अवसर भी मिला.

Intro:कांग्रेस 135वां स्थापना वर्ष विशेष -

रायबरेली:करिश्माई नेतृत्व न होने पर रसातल में पहुंची कांग्रेस,पटेल - शास्त्री जैसे नेताओं का न होने भी अखरा

28 दिसंबर 2019 - रायबरेली

देश के स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका अदा करने वाले कांग्रेस के वर्तमान दौर में रसातल में जाने के पीछे का कारण कहीं न कहीं करिश्माई नेतृत्व के कमी होना भी रहा।ठीक उसी प्रकार जैसे लौह पुरुष सरदार पटेल और धरती के लाल कहे जाने वाले लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओ की कमी ने भी इस दल को खूब अखरी।देश को जंगे आज़ादी दिलाने के मकसद से अस्तित्व में आएं कांग्रेस को आजादी मिलने के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भंग करने की हिदायत दी थी।हालांकि देशहित का हवाला देते हुए अन्य वरिष्ठ नेताओं ने इसका संचालन बरकरार रखने का निर्णय लिया था।हालांकि आगे चलकर सरदार पटेल व लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं ने उस निर्णय को सही ठहराते हुए देश की राजनीति में अपने विशेष योगदान से देशभक्ति की अमिट छाप छोड़ी।कांग्रेस के स्थापना के 135वी वर्षगांठ पर उसके मजबूत किले के रुप मे पहचान बनाने वाले रायबरेली जिले के कुछ विशेष लोगों से इस विषय पर ETV भारत ने बातचीत की।





Body:शहर में राजनीतिक विश्लेषक के रुप में अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाने वाले डॉक्टर जितेंद्र कहते हैं कि आजादी के पूर्व व आजादी के बाद के कांग्रेसी नेताओं में बड़ा फर्क रहा।निश्चित तौर पर कांग्रेस का गठन देश के स्वाधीनता आंदोलन को गति देने के मकसद से हुआ था।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह पूर्ण मत था की स्वतंत्रता पश्चात इस संगठन को आगे न बढ़ाया जाए।हालांकि राजनीतिक रूप से स्थापित हो चुके इस दल को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया और उस दौर के बड़े व दिग्गज नेता इसी पार्टी से जुड़े रहे। कुछ यही कारण रहा कांग्रेस पार्टी उसे अपना सुनहरा काल के रूप में मानती हैं।इसमें कोई दो राय नहीं कि उस दौरान भारतीय राजनीति में कांग्रेस का ही दशकों तक वर्चस्व रहा और उस को चुनौती देने वाले विपक्ष की भूमिका भी न के समान रही, इसी बीच गांधी व नेहरू खानदान के लोगों का इस पार्टी में रुतबा भी कुछ इस कदर बढ़ा कि इस परिवार से जुड़े लोगों को पार्टी हाई कमान का दर्जा दिया जाने लगा। पर जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया तकरीबन 1980 के बाद से देश में कांग्रेस की लोकप्रियता कम होती गई ।जवाहरलाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी के दौर तक कांग्रेस बहुमत के आंकड़े को बेहद आसानी से पा लेती थी पर राजीव गांधी के असामयिक मृत्यु से देश की सबसे पुरानी पार्टी में रिक्तता आ गई।हांलाकि कुछ वर्षों बाद सोनिया का राजनीति में पदार्पण हुआ और 10 साल तक मनमोहन सिंह सिंह को पीएम बनने का अवसर भी मिला पर करिश्माई नेतृत्व वाले बाजपेई और मोदी दोनों ने ही अपनी चमक बिखेरते हुए सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की।नरेंद्र मोदी के उदय के साथ ही बीजेपी को अभूतपूर्व बहुमत मिला और लगातार दो बार सत्ता में काबिज होने के साथ ही कांग्रेस अपनी धार खोती नज़र आई।फिलवक्त प्रियंका भी इंदिरा व राजीव के दौर की कामयाबी हासिल नही कर सकें पर अब कांग्रेसी प्रियंका के रुप मे पुनः स्वर्णिम काल मे प्रवेश करने का दावा कर रहे है।

रायबरेली शहर के नामचीन फिरोज गांधी डिग्री कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ आदर्श कहते हैं कि भारतीयों के बीच में लोकप्रियता का पर्याय माने जाने वाली पार्टी कांग्रेस वर्तमान में राजनीति में दशकों तक कायम रहे अपने वर्चस्व को खो चुकी हैं।कांग्रेस की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर भाजपा न केवल केंद्र की सत्ता हासिल करने में कामयाब रही,देश के कई प्रदेशों में भी अपनी सरकार बनाकर इतिहास रच डाला।बीजेपी नरेंद्र मोदी के रूप में एक ऐसा करिश्माई नेता स्थापित करने में कामयाब रही जिसका फिलहाल कांग्रेस के अंदर कोई तोड नजर नहीं आता।यहां तक कई अवसरों पर मोदी द्वारा कांग्रेस पर किए गए राजनीतिक कटाक्ष का जवाब देने के लिए भी कांग्रेस में नेताओं की कमी खुलकर नजर आने लगी। कांग्रेस में के ऊपर परिवारवाद को बढ़ावा देने वाले पार्टी होने का आरोप पहले भी लगते रहे पर समय के साथ इन विषयों पर विपक्षी और हमलावर होते गए वही कांग्रेस अक्सर बैकफुट पर नज़र आई।इसके अलावा बड़े नेताओं की आपसी रंजिश समेत तमाम ऐसे मुद्दे रहे जो पार्टी को धरातल पर लाने के कारक कहे जा सकते हैं। पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर प्रश्न चिन्ह लगा कर कुछ नेताओं ने कांग्रेस को छोड़ना भी मुनासिब समझा कुल मिलाकर कह सकते हैं लोकतंत्र में लोकतांत्रिक मूल्यों को तरजीह देने वाली पार्टी ही चिर स्थाई कहलाई जा सकती है और कांग्रेस इसी में चूकती नज़र आई उसी का नतीजा पार्टी के वर्तमान हश्र कहा जा सकता है।








Conclusion:बाइट 1 : डॉ जितेंद्र - राजनीतिक विशेषज्ञ

बाइट 2 : डॉ आदर्श - पूर्व प्राचार्य - फिरोज़ गांधी डिग्री कॉलेज,रायबरेली

प्रणव कुमार - 7000024034
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:18 PM IST
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