रायबरेली: कोरोना वायरस के प्रकोप को रोकने के लिए लंबे समय तक लॉकडाउन लागू रहा. इस दौरान सभी प्रतिष्ठान बंद रहे, लेकिन दूध की खपत जारी थी, लेकिन सिर्फ घरों तक. दूध की खपत में जबरदस्त गिरावट आने से किसानों और दूध व्यवसायियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. वहीं अनलॉक लागू हुए करीब डेढ़ महीने का वक्त बीत चुका है. इसके बावजूद दूध की मांग पहले जैसी नहीं है. लिहाजा आर्थिक संकट झेल रहे दूधियों की परेशानी अनलॉक में भी खत्म होती नजर नहीं आ रही है.
कोविड-19 संक्रमण के चलते वैवाहिक कार्यक्रमों सहित अन्य आयोजनों पर रोक है, जिससे बाजार में दूध की खपत पर असर पड़ा है. पनीर और मावे की मांग बाजार में नहीं रही. कुल मिलाकर बाजार दूध पचाने में विफल साबित हो रहा है.
भदोखर थाना क्षेत्र के निवासी रंजीत यादव लंबे समय से दूध के कारोबार से जुड़े रहे हैं. उन्होंने कहा कि कोरोना काल में हालात बहुत खराब हैं. वहीं अनलॉक में भी मुनाफा होता नहीं दिख रहा. हम दूध कारोबारियों के सामने आर्थिक संकट का दौर है.
दुग्ध से बने उत्पादों की मांग में गिरावट
शहर के खोया मंडी में नामचीन स्वीट हाउस के मालिक विजय कुमार ने बताया कि लॉकडाउन में मिठाई कारोबार को बड़ा झटका लगा है. मिठाई और पनीर के खरीददार भी कम हैं. पहले की अपेक्षा दूध से बने उत्पादों में भारी गिरावट आई है, जिससे व्यापारी और दूग्ध कारोबारियों के सामने आर्थिक संकट गहराता जा रहा है.
दुग्ध संघ लखनऊ के रायबरेली परिक्षेत्र के स्थानीय प्रभारी एसएन शुक्ल कहते हैं कि लॉकडाउन के पहले आम दिनों में दूध की खपत एक से डेढ़ लाख लीटर प्रतिदिन हुआ करती थी. लॉकडाउन के कारण इसमें भारी गिरावट देखी गई.
अब महज 40 से 50 हजार लीटर प्रतिदिन की खपत हो रही रही है. शहरी क्षेत्र में पहले करीब 60 हजार लीटर की खपत थी. अब महज 20-25 हजार लीटर ही रह गई है. लॉकडाउन के शुरुआती दिनों से वर्तमान की खपत में सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी खपत पहले जैसे नहीं है.