रायबरेली: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना का मकसद ही यही था कि स्थानीय जनपद के अलावा आस-पड़ोस के जिलों के लोगों को स्तरीय उपचार की सुविधा मुहैया कराई जा सके पर लंबा अरसा गुजर जाने के बावजूद अभी तक एम्स रायबरेली अपनी ख्याति के अनुरूप काम करता नहीं दिखाई दिया. वैश्विक महामारी कोरोना के दौर में एम्स जैसे संस्थानों की जरूरत कहीं अधिक होती है पर सियासी दलों की खींचतान का नतीजा यह रहा कि एक दशक से ज्यादा वक्त गुज़र जाने के बाद भी सही मायनों में इसकी शुरुआत तक नही की जा सकी. हालांकि अब एम्स प्रशासन का दावा है कि जल्द ही आईपीडी सर्विसेज की शुरुआत होगी और लॉकडाउन के दौर में भी यहां के चिकित्सकों ने ऑनलाइन ओपीडी सेवाओं को चालू रखा था पर जिले के राजनीतिक सूरमा इसी बहाने अपने विरोधियों पर निशाना साधने से नहीं चूकते. वहीं स्थानीय जनता धीरे-धीरे इस पूरे प्रोजेक्ट से आस खोती नजर आ रही है.
'एम्स से अब नहीं रही कोई आस'
स्थानीय निवासी चंद्रप्रकाश कहते हैं कि शुरू में जब एम्स खुलने की खबर आई तो आस जगी. लगा गरीबों को भी यहीं पर इलाज मिलने लगेगा. लखनऊ, कानपुर, बनारस और दिल्ली के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे पर धीरे-धीरे समय बीतता गया और सभी उम्मीदें भी खत्म सी हो गई. सुनने में आता है कि कई सालों से यहां पर काम चल रहा है पर पता नहीं पूरा होगा भी कि नहीं?
'एम्स प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए अखिलेश यादव ने दी थी जमीन'
सपा जिला अध्यक्ष वीरेंद्र यादव कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट के लिए रायबरेली में जमीन देने का काम उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष व तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा किया गया था. उन्हीं की बदौलत इसकी रायबरेली में शुरुआत हो सकी थी, पर भाजपा के सत्ता में आते ही इसको हाशिये पर डाल दिया गया. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौर में भी लापरवाही भरा रवैया अपना रही है. अस्पतालों और चिकित्सकीय व्यवस्था पर सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है. एम्स जैसे बड़े चिकित्सीय संस्थान की समय रहते शुरुआत न किया जाना, रायबरेली की जनता से बीजेपी द्वारा किया गया विश्वासघात है.
'भाजपा रायबरेली से करती आई है सौतेला व्यवहार'
कांग्रेस के जिला अध्यक्ष पंकज तिवारी कहते हैं कि भाजपा हमेशा से रायबरेली के साथ सौतेला व्यवहार करती आई है. जानबूझकर सरकार ने रायबरेली के प्रोजेक्ट को रोके रखा है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा इसकी स्थापना की गई थी पर 2014 में जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है, तभी से पूरा प्रोजेक्ट अधर में लटक गया. यही कारण है कि अभी तक सही ढंग से इसकी शुरुआत तक नहीं हो सकी है.
'सोनिया ने की थी खानापूर्ति, भाजपा शासनकाल में ही जल्द होगी शुरुआत'
भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष व सोनिया गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ चुके आरबी सिंह कहते हैं कि सोनिया गांधी ने सिर्फ घोषणा ही की थी. सही मायनों में काम तो तब शुरू हुआ, जब केंद्र में मोदी सरकार सत्ता में आई. भाजपा सरकार के कार्यकाल में ही एम्स में ओपीडी सर्विसेज की शुरुआत हुई है. कोरोना के कारण एम्स का काम भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है, पर जल्द ही मेडिकल कॉलेज के शुरू होते ही तमाम सुविधाएं मरीजों को मुहैया कराई जाएंगी.
'जल्द शुरु होगी आईपीडी सर्विसेज'
ईटीवी भारत ने जब एम्स के कामकाज के विषय में संस्थान के निदेशक डॉ. अरविंद राजवंशी से बात की तो उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण निर्माण कार्य समेत तमाम काम प्रभावित हुए थे पर अब तेजी से पुनः कार्य शुरू हो गए हैं. मेडिकल कॉलेज में फर्नीचर का काम भी अंतिम दौर में है. साथ ही फैकल्टी की रिक्रूटमेंट प्रक्रिया भी पूरी होने वाली है. लॉकडाउन के दौरान ही संस्थान द्वारा ऑनलाइन ओपीडी सेवाओं की शुरुआत की गई थी. जल्द ही एम्स रायबरेली में मेडिकल कॉलेज समेत आईपीडी सेवाओं की शुरुआत करेगा. मरीजों को हर संभव मदद मुहैया कराई जाएगी.
रायबरेली एम्स से जुड़ी महत्वपूर्ण तिथियां -
वर्ष 2007- यूपीए वन शासनकाल के दौरान एम्स की रायबरेली में स्थापना की स्वीकृति मिली.
वर्ष 2012 - एम्स निर्माण के लिए 150 एकड़ भूमि की आवश्यकता के सापेक्ष 97 एकड़ भूमि अधिग्रहित हुई.
वर्ष 2013 - यूपीए चेयरपर्सन व स्थानीय सांसद सोनिया गांधी द्वारा इसका शिलान्यास किया गया.
अगस्त 2018 - रायबरेली एम्स में ओपीडी सेवाओं की शुरुआत हुई.
अगस्त 2019 - रायबरेली एम्स के पहले बैच में 50 मेडिकल छात्रों की पढ़ाई की शुरुआत.
अन्य खास पहलू
- 97 एकड़ भूमि को अभी तक अधिग्रहित किया गया है
- 53 एकड़ भूमि का अधिग्रहण अभी बाकी है
- 164 करोड़ रुपये से हाउसिंग कॉलोनी और ओपीडी भवन डेवेलप हो चुकी है
प्रारंभ में यूपीए शासनकाल में रायबरेली एम्स के लिए 926 करोड़ रुपये सरकार ने मंजूर किए थे. यूपीए-2 में इसे बढ़ाकर 1,650 करोड रुपये करके प्रस्ताव अप्रूवल के लिए वित्त मंत्रालय को भेजा था. वित्त मंत्रालय की स्वीकृति से पहले ही कांग्रेस सरकार केंद्र से चली गई.कांग्रेसियों का आरोप है कि बाद में एनडीए सरकार में बजट को 850 करोड़ रुपये कर दिया गया. अब देखने वाली यह होगी कि सियासी आरोप-प्रत्यारोप के बीच एम्स की सुविधा आम आदमी को मिलनी कब से शुरू होगी.