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कार्तिक पूर्णिमा में बैलगाड़ी से घाट पर पहुंचते हैं श्रद्धालु, जानें क्या है वजह

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Published : Nov 13, 2019, 9:58 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:18 PM IST

उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में स्थित डलमऊ घाट पर काफी संख्या में श्रद्धालु स्नान करने आते हैं. यहां की परंपरा के अनुसार ज्यादातर श्रद्धालु यहां बैलगाड़ी से स्नान करने आते हैं. देखिए खास रिपोर्ट...

देखे खास रिपोर्ट.

रायबरेली: कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है. ऐसे में रायबरेली के प्राचीन डलमऊ तट पर हर साल कार्तिक पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया जाता है. इसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु रायबरेली और आस-पास के जिलों से भी आते हैं. इस सालाना मेले की गंवई खुशबू यहां के माहौल को और भी अधिक खुशनुमा बना देती है. वहीं इस मेले में एक खास बात और है कि यहां लोग काफी दूर-दूर से बैलगाड़ी से ही आते हैं. परंपराओं के अनुसार यहां आने के लिए लोग आज भी बैलगाड़ी का प्रयोग करते हैं, बेशक इसके लिए कितना समय लग जाए.

देखे खास रिपोर्ट.

डलमऊ पहुंचे श्रद्धालु राम बहादुर यादव कहते हैं कि उनके पास सभी साधन उपलब्ध हैं, लेकिन बुजुर्गों द्वारा स्थापित की गई परंपरा का निर्वाहन करने के मकसद से उन्होंने बैलगाड़ी के जरिए ही डलमऊ घाट का रुख किया. इस मेले में शामिल होने के लिए बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक इन्हीं बैलगाड़ियों का सहारा लेते हैं. खास बात यह है कि इस दौरान बैलगाड़ी पर ही खान-पान का सारा प्रबंध होता है. डलमऊ से 12 कोस दूर रहने वाले राम बहादुर कहते हैं कि बैलों की तंदरुस्ती पर तय होता है कि डलमऊ तक पहुंचने में कितना समय लगता है.

इसे भी पढ़ें- देव दीपावली: दशाश्वमेध घाट पर दिखी दीपों की अलौकिक छटा, गंगा आरती में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

वहीं युवा बद्री प्रसाद का कहना है कि उन्हें बैलगाड़ी की सवारी करने में काफी आनंद आता है. वह बचपन से ही इस मेले में शामिल होने के लिए बैलगाड़ी से ही आते रहे हैं और अपने इसी शौक को पूरा करने वो अभी भी हर साल बैलगाड़ी से ही डलमऊ आते हैं. एक अन्य व्यक्ति गजाधर कहते हैं कि डलमऊ का यह गंगा तट उनके लिए बड़े धार्मिक स्थल के समान है. वह अपने पूर्वजों की परंपरा के अनुसार हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर परिवार के साथ यहां आते हैं और स्नान आदि करते हैं.

72 वर्षीय कृष्ण कुमारी कहती हैं कि जबसे उन्होंने होश संभाला है, तभी से वह हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन डलमऊ आती हैं. यहां आने के लिए वह हमेशा बैलगाड़ी का ही प्रयोग करती हैं. प्राचीन परंपराओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के मेले में बैलों के जरिए ही गंगा स्नान का प्रावधान था. पुराने लोग इस परंपरा को अंतिम सांस तक ले जाने पर आमादा हैं. उनका कहना है कि यह संस्कृति उनके पूर्वजों की पहचान है, जिसको निभाने में वह न तो गुरेज करते हैं और न ही परहेज.

रायबरेली: कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है. ऐसे में रायबरेली के प्राचीन डलमऊ तट पर हर साल कार्तिक पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया जाता है. इसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु रायबरेली और आस-पास के जिलों से भी आते हैं. इस सालाना मेले की गंवई खुशबू यहां के माहौल को और भी अधिक खुशनुमा बना देती है. वहीं इस मेले में एक खास बात और है कि यहां लोग काफी दूर-दूर से बैलगाड़ी से ही आते हैं. परंपराओं के अनुसार यहां आने के लिए लोग आज भी बैलगाड़ी का प्रयोग करते हैं, बेशक इसके लिए कितना समय लग जाए.

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डलमऊ पहुंचे श्रद्धालु राम बहादुर यादव कहते हैं कि उनके पास सभी साधन उपलब्ध हैं, लेकिन बुजुर्गों द्वारा स्थापित की गई परंपरा का निर्वाहन करने के मकसद से उन्होंने बैलगाड़ी के जरिए ही डलमऊ घाट का रुख किया. इस मेले में शामिल होने के लिए बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक इन्हीं बैलगाड़ियों का सहारा लेते हैं. खास बात यह है कि इस दौरान बैलगाड़ी पर ही खान-पान का सारा प्रबंध होता है. डलमऊ से 12 कोस दूर रहने वाले राम बहादुर कहते हैं कि बैलों की तंदरुस्ती पर तय होता है कि डलमऊ तक पहुंचने में कितना समय लगता है.

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वहीं युवा बद्री प्रसाद का कहना है कि उन्हें बैलगाड़ी की सवारी करने में काफी आनंद आता है. वह बचपन से ही इस मेले में शामिल होने के लिए बैलगाड़ी से ही आते रहे हैं और अपने इसी शौक को पूरा करने वो अभी भी हर साल बैलगाड़ी से ही डलमऊ आते हैं. एक अन्य व्यक्ति गजाधर कहते हैं कि डलमऊ का यह गंगा तट उनके लिए बड़े धार्मिक स्थल के समान है. वह अपने पूर्वजों की परंपरा के अनुसार हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर परिवार के साथ यहां आते हैं और स्नान आदि करते हैं.

72 वर्षीय कृष्ण कुमारी कहती हैं कि जबसे उन्होंने होश संभाला है, तभी से वह हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन डलमऊ आती हैं. यहां आने के लिए वह हमेशा बैलगाड़ी का ही प्रयोग करती हैं. प्राचीन परंपराओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के मेले में बैलों के जरिए ही गंगा स्नान का प्रावधान था. पुराने लोग इस परंपरा को अंतिम सांस तक ले जाने पर आमादा हैं. उनका कहना है कि यह संस्कृति उनके पूर्वजों की पहचान है, जिसको निभाने में वह न तो गुरेज करते हैं और न ही परहेज.

Intro:रायबरेली स्पेशल: बुलेट ट्रेन के दौर में बैलगाडी से सफर करते है यह लोग,जाने क्यों?

12 नवंबर 2019 - रायबरेली

हिंदू सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से मनाया जाता है।इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।रायबरेली जनपद के प्राचीन डलमऊ तट पर हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया जाता है।लाखों की संख्या में रायबरेली जनपद समेत आसपास के अन्य जनपदों से आए लोग इसमें शिरकत करते हैं।सात दिनों तक चलने वाले इस मेले का प्रमुख पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान होता है।जनपद में आयोजित होने वाले इस सबसे बड़े सालाना मेले की गवई खुशबू माहौल को खुशनुमा बना देती है।मेले में बैलगाड़ी से आने वाले श्रद्धालुओं की अच्छी खासी तादात बताई जाती है।आखिर क्या कारण है कि बुलेट ट्रेन के दौर में आज भी लोग बैलगाड़ी के जरिए डलमऊ पहुंचते है।ETV भारत संवाददाता ने बैल गाड़ी से आकर मेले में शिरकत कर रहे लोगों से बातचीत की ।









Body:रायबरेली जनपद के बितौरा के रहने वाले राम बहादुर यादव कहते है कि उनके पास सभी साधन उपलब्ध है पर बुज़ुर्गों द्वारा स्थापित की गई परंपरा का निर्वाहन करने के मकसद से उन्होंने बैलगाड़ी के जरिए कार्तिक पूर्णिमा में डलमऊ घाट का रुख किया है।इस मेले में शामिल होने के लिए घर के बड़े बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक इन्ही बैल गाड़ियों का सहारा लेते है।खास बात यह है कि इस दौरान बैल गाड़ी पर ही खान पान का सभी प्रबंध करके ही घर से निकलते है और अमूमन 2 राते डलमऊ में गुज़रते है।डलमऊ से 12 कोस यानी करीब 40 किमी दूर अपना घर बताते हुए राम बहादुर कहते है कि बैलों की तंदरुस्ती पर रास्ते मे समय लगने का आकंलन किया जा सकता है आमतौर करीब 12 घंटे का समय रास्ते मे व्यतीत होता है।

नवयुवक बद्रीप्रसाद कहते है कि बचपन से वो इस मेले में शिरकत करने बैल गाड़ी से ही आते रहे है और अपने इसी शौक को पूरा करने वो हर साल बैल गाड़ी से डलमऊ आते है।

वही गजाधर कहते है कि डलमऊ का यह गंगा तट उनके लिए बड़े धार्मिक स्थल के समान है और पूर्वजों की भांति हर वर्ष वो कार्तिक पूर्णिमा पर सब परिवार आकर स्नान करते है।

करीब 72 वर्षीय कृष्ण कुमारी कहती है कि जब से उन्होंने होश संभाला है तभी से हर वर्ष कार्तिक के पूर्णिमा में डलमऊ आना बैल गाड़ी से होता है।







Conclusion:प्राचीन परंपराओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के मेले में बैलों के जरिए ही गंगा स्नान का प्रावधान था।पुराने लोग इस परंपरा को अंतिम सांस तक ले जाने पर आमादा है और कहते हैं कि यह संस्कृत उनके पूर्वजों की पहचान है जिसको को निभाने में न तो गुरेज करते है और न ही परहेज।




विज़ुअल: संबंधित विज़ुअल,

बाइट 1:राम बहादुर यादव - बितौरा - रायबरेली

बाइट 2:बद्रीप्रसाद


बाइट 3:गजाधर

बाइट 4:कृष्ण कुमारी

प्रणव कुमार - 7000024034
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:18 PM IST
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