रायबरेली: यूपी के सियासी दलों में जिला पंचायत अध्यक्ष के पद की लालसा हमेशा से रही है पर कोरोना के इस संक्रमण काल मे जान जोखिम में डाल कर भी राजनीतिक पार्टियों इस पर काबिज होती दिख रही हैं. मतगणना के बाद निर्वाचित सदस्यों के सामने आने के बाद यह मुकाबला और रोचक नजर आता है. यही कारण है कि इस पद के लिए सभी की ओर से जोर आजमाइश चरम पर है. हालांकि ज्यादातर मौकों पर रायबरेली में कांग्रेस पार्टी का ही पंचायत चुनावों में और इस पद पर दबदबा रहा है पर बदले समीकरणों ने इस बार पार्टी को अपनी साख बचाने के लिए रणनीतिक कौशल की जरूरत पड़ती दिख रही है.
कांग्रेस का रहा है जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर दबदबा
जी हां, बात देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की हो रही है. पंचायत सदस्यों की मजबूत संख्या प्राप्त करने में पार्टी संगठन अब तक फेल ही साबित हुआ है. यही कारण है कि अब अध्यक्ष की कुर्सी पर कब्जा बरकरार रख पाने के लिए कूटनीतिक बढ़त की जरूरत होगी. पर सब कुछ आसान भी नजर नहीं आता. वह भी तब जब खुद सोनिया गांधी रायबरेली की सांसद है.
बीजेपी का भी नहीं रहा उम्मीदों के अनुरुप प्रदर्शन
बीजेपी की हालत तो और भी खराब है. वह इकाई में सिमट गई. सपा के लिए भी जीत का जादुई आंकड़ा जुटा पाना टेढ़ीखीर है. गत बार हुए चुनाव में कांग्रेस समर्थित अवधेश सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष बने थे. इससे पहले इन्हीं के परिवार की सुमन सिंह इस पद पर निर्वाचित हुई थीं. कुल 52 सदस्यों वाले इस सदन पर काबिज होने के लिए पहली बार प्रमुख राजनीतिक दलों ने समर्थित प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया. कांग्रेस पहले ही सभी सीटों पर प्रत्याशी नहीं दे सकी. उसने महज 33 क्षेत्रों में चुनाव लड़ाया. जिसमें 10 सीटों पर जीत हासिल हुई. सपा ने 35 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे. जिसमें से 14 पर कामयाबी मिली.
बीजेपी ने जिस जोरशोर से इस चुनाव में ताकत लगाई. उसका असर नजर नहीं आया. सभी सीटों पर कंडीडेट उतारने के बावजूद वह 9 सीट जीतकर इकाई में सिमट गई. इसके पीछे कई तरह के कारण भीतरखाने चर्चा में हैं. बताते हैं कि एकजुटता का अभाव व निष्ठावान कार्यकर्ताओं को तरजीह न दिए जाने के कारण पार्टी की यह दुर्गति हुई. आलम यह है कि पार्टी ने जिला पंचायत की पूर्व अध्यक्ष सुमन सिंह को हरचंदपुर तृतीय सीट लड़ाया था. लेकिन वे भी हार गईं. महराजगंज प्रथम सीट से पूर्व विधायक राजाराम त्यागी भी चुनाव हार गए. इसी तरह कई सीटों पर पार्टी के अन्य नेता भी पराजित हुए. अब देखने वाली बात यह होगी कि अध्यक्ष की कुर्सी हासिल करने के लिए किस तरह जोड़तोड़ होगी. कारण किसी भी दल को बहुमत के करीब पहुंचने का जनादेश नहीं मिला है. जाहिर है कि निर्दलीयों पर ही डोरे डाले जाएंगे.
इसे भी पढे़ं- सोनिया गांधी पर अदिति के कमेंट से भड़के कांग्रेसी