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रायबरेली में हुआ था जलियांवाला बाग से बड़ा नरसंहार, 'मुंशीगंज गोलीकांड' - जलियांवाला बाग कांड

उत्तर प्रदेश के रायबरेली में 7 जनवरी 1921 को अंग्रेजों के द्वारा किसानों के नरसंहार को ‘जलियांवाला बाग कांड’ से भी बड़ा माना जाता है. रायबरेली में इस नरसंहार को 'मुंशीगंज गोलीकांड' के नाम से भी जाना जाता है.

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जंगे आजादी की अमर निशानी मुंशीगंज का शहीद स्मारक
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Published : Jan 8, 2020, 1:52 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:18 PM IST

रायबरेली : 'मैं लिखते लिखते रोया था,मैं भारी मन से गाता हूं,जो हिम शिखरों का फूल बने मैं उनको फूल चढ़ाता हूं' यह पंक्तियां रायबरेली में 7 जनवरी को 1921 में जलियांवाला बाग से भी बड़े नरसंहार पर बिल्कुल सटीक बैठती है.रायबरेली में इस नरसंहार को 'मुंशीगंज गोलीकांड' के नाम से भी जाना जाता है. जंगे आजादी की अमर निशानी मुंशीगंज के शहीद स्मारक में शहीदों को याद किया जाता.

मामले की जानकारी देते हुए संवाददाता
ब्रितानी हुकूमत ने गोलियों से भून दिया था निहत्थे किसानों को
उत्तर प्रदेश में एक किसान आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग हत्याकांड को सई के तट पर दोहराया था. ठीक उसी प्रकार ब्रितानी हुकूमत ने निहत्थे किसानों को गोलियों से भून दिया गया था. रायबरेली जिले का यह किसान आंदोलन अंग्रेजों के जुल्म और सितम के काले अध्याय के विरुद्ध भारतीय किसानों के बलिदान की गाथा है- जिसे मुंशीगंज गोलीकांड का नाम दिया गया. अंग्रेजी शासन के हुक्म से सभा में मौजूद सैकड़ों निहत्थे किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार कर दी गई. इसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से रक्त-रंजित हो उठी. कहा जाता है कि करीब 750 किसान मारे गए थे, और ये हत्याकांड जलियांवाला बाग से बड़ा हत्याकांड था.
किसानों ने लिखी थी अजर अमर की गाथा
रायबरेली के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के प्रभारी व अध्यक्ष अनिल मिश्र कहते है कि मुंशीगंज गोलीकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक परिस्थितियों की वह अंगड़ाई थी जिसे सई के जल और सैकड़ों किसानों का तर्पण प्राप्त हुआ, इसलिए यह कांड उस काल से ही जंगे आजादी की अजर अमर गाथा बन गया.
दोनों नेताओं की जेल प्रशासन कर दी थी हत्या

रायबरेली शहर के एक छोर पर स्थित मुंशीगंज कस्बा सई नदी के तट पर है. 5 जनवरी 1921 को किसान तत्कालीन अंग्रेज शासकों के अत्याचारों से तंग आकर और अमोल शर्मा, बाबा जानकी दास के नेतृत्व में एक जनसभा कर रहे थे. दूर-दूर के गांव के किसान भी सभा में भाग लेने के लिए आए थे. इस जनसभा को सफल बनाने के लिए तालुकेदार तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एजी शेरिफ से मिलकर दोनों नेताओं को गिरफ्तार करवा कर लखनऊ जेल भिजवा दिया. गिरफ्तारी के अगले दिन रायबरेली में लोगों के बीच तेजी से यह खबर फैल गई कि लखनऊ के जेल प्रशासन द्वारा दोनों नेताओं की जेल में हत्या करवा दी गई है. इसके चलते 7 जनवरी 1921 को रायबरेली मुंशीगंज नदी के एक छोर पर अपने नेताओं के समर्थन में एक विशाल जनसमूह एकत्रित होने लगा. किसानों के भारी विरोध को देखते हुए नदी किनारे भारी पुलिस बल तैनात कर दिया.

अंग्रेजों ने जवाहरलाल नेहरू को कर दिया नजरबंद
स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए जवाहरलाल नेहरू ने भी रायबरेली का रुख किया पर पहुंचने से पहले ही उन्हें रोक दिया गया. जानकार बताते हैं कि अंग्रेज पहले से ही इस गोलीकांड की योजना बना चुके थे पर नेहरू को सिर्फ इसलिए नजरबंद किया गया था कि कहीं नेहरू को गोली लग गए तो मामला बड़ा रुप ले लेगा. अंग्रेजी शासन ने सभा में मौजूद किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार करा दी गई जिसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से लाल हो गई. 750 से ज्यादा किसान इस नरसंहार में मारे गए थे.




रायबरेली : 'मैं लिखते लिखते रोया था,मैं भारी मन से गाता हूं,जो हिम शिखरों का फूल बने मैं उनको फूल चढ़ाता हूं' यह पंक्तियां रायबरेली में 7 जनवरी को 1921 में जलियांवाला बाग से भी बड़े नरसंहार पर बिल्कुल सटीक बैठती है.रायबरेली में इस नरसंहार को 'मुंशीगंज गोलीकांड' के नाम से भी जाना जाता है. जंगे आजादी की अमर निशानी मुंशीगंज के शहीद स्मारक में शहीदों को याद किया जाता.

मामले की जानकारी देते हुए संवाददाता
ब्रितानी हुकूमत ने गोलियों से भून दिया था निहत्थे किसानों को
उत्तर प्रदेश में एक किसान आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग हत्याकांड को सई के तट पर दोहराया था. ठीक उसी प्रकार ब्रितानी हुकूमत ने निहत्थे किसानों को गोलियों से भून दिया गया था. रायबरेली जिले का यह किसान आंदोलन अंग्रेजों के जुल्म और सितम के काले अध्याय के विरुद्ध भारतीय किसानों के बलिदान की गाथा है- जिसे मुंशीगंज गोलीकांड का नाम दिया गया. अंग्रेजी शासन के हुक्म से सभा में मौजूद सैकड़ों निहत्थे किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार कर दी गई. इसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से रक्त-रंजित हो उठी. कहा जाता है कि करीब 750 किसान मारे गए थे, और ये हत्याकांड जलियांवाला बाग से बड़ा हत्याकांड था.
किसानों ने लिखी थी अजर अमर की गाथा
रायबरेली के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के प्रभारी व अध्यक्ष अनिल मिश्र कहते है कि मुंशीगंज गोलीकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक परिस्थितियों की वह अंगड़ाई थी जिसे सई के जल और सैकड़ों किसानों का तर्पण प्राप्त हुआ, इसलिए यह कांड उस काल से ही जंगे आजादी की अजर अमर गाथा बन गया.
दोनों नेताओं की जेल प्रशासन कर दी थी हत्या

रायबरेली शहर के एक छोर पर स्थित मुंशीगंज कस्बा सई नदी के तट पर है. 5 जनवरी 1921 को किसान तत्कालीन अंग्रेज शासकों के अत्याचारों से तंग आकर और अमोल शर्मा, बाबा जानकी दास के नेतृत्व में एक जनसभा कर रहे थे. दूर-दूर के गांव के किसान भी सभा में भाग लेने के लिए आए थे. इस जनसभा को सफल बनाने के लिए तालुकेदार तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एजी शेरिफ से मिलकर दोनों नेताओं को गिरफ्तार करवा कर लखनऊ जेल भिजवा दिया. गिरफ्तारी के अगले दिन रायबरेली में लोगों के बीच तेजी से यह खबर फैल गई कि लखनऊ के जेल प्रशासन द्वारा दोनों नेताओं की जेल में हत्या करवा दी गई है. इसके चलते 7 जनवरी 1921 को रायबरेली मुंशीगंज नदी के एक छोर पर अपने नेताओं के समर्थन में एक विशाल जनसमूह एकत्रित होने लगा. किसानों के भारी विरोध को देखते हुए नदी किनारे भारी पुलिस बल तैनात कर दिया.

अंग्रेजों ने जवाहरलाल नेहरू को कर दिया नजरबंद
स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए जवाहरलाल नेहरू ने भी रायबरेली का रुख किया पर पहुंचने से पहले ही उन्हें रोक दिया गया. जानकार बताते हैं कि अंग्रेज पहले से ही इस गोलीकांड की योजना बना चुके थे पर नेहरू को सिर्फ इसलिए नजरबंद किया गया था कि कहीं नेहरू को गोली लग गए तो मामला बड़ा रुप ले लेगा. अंग्रेजी शासन ने सभा में मौजूद किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार करा दी गई जिसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से लाल हो गई. 750 से ज्यादा किसान इस नरसंहार में मारे गए थे.




Intro:07 जनवरी स्पेशल:

रायबरेली में हुआ था जलियांवाला बाग से बड़ा नरसंहार, 'मुंशीगंज गोलीकांड'

जंगे आजादी की अमर निशानी मुंशीगंज का शहीद स्मारक

नम आंखो से याद आएं मुंशीगंज कांड के शहीद

07 जनवरी 2020 - रायबरेली

'मैं लिखते लिखते रोया था,मैं भारी मन से गाता हूं,जो हिम शिखरों का फूल बने मैं उनको फूल चढ़ाता हूं'

उत्तर प्रदेश में एक किसान आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग हत्याकांड को सई के तट पर दोहराया था।ठीक उसी प्रकार ब्रितानी हुकूमत ने निहत्थे किसानों को गोलियों से भून दिया गया था। रायबरेली जिले में का यह किसान आंदोलन अंग्रेजों के जुल्म व सितम के काले अध्याय के विरुद्ध भारतीय किसानों के बलिदान की गाथा है - जिसे मुंशीगंज गोलीकांड का नाम दिया गया।अंग्रेजी शासन के हुक्म से सभा में मौजूद सैकड़ों निहत्थे किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार कर दी गई। जिसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से रक्त-रंजित हो उठी।कहा जाता है कि करीब 750 किसान मारे गए थे, और ये हत्याकांड जलियांवाला बाग से बड़ा हत्याकांड है।






Body:रायबरेली के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के प्रभारी व अध्यक्ष अनिल मिश्र कहते है कि मुंशीगंज गोलीकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक परिस्थितियों की वह अंगड़ाई थी जिसे सई के जल और सैकड़ों किसानों का तर्पण प्राप्त हुआ, इसलिए यह कांड उस काल से ही जंगे आज़ादी की अजर अमर गाथा बन गया।

रायबरेली शहर के एक छोर पर स्थित मुंशीगंज कस्बा सई नदी के तट पर है, बात 5 जनवरी 1921 की है जब किसान तत्कालीन अंग्रेज शासकों के अत्याचारों से तंग आकर और अमोल शर्मा व बाबा जानकी दास के नेतृत्व में एक जनसभा कर रहे थे।दूर-दूर के गांव के किसान भी सभा में भाग लेने के लिए आए थे इस जनसभा को सफल बनाने के लिए तालुकेदार तत्कालीन जिलाधीश ए. जी. शॉरीफ से मिलकर दोनों नेताओं को गिरफ्तार करवा कर लखनऊ जेल भिजवा दिया।गिरफ्तारी के अगले दिन रायबरेली में लोगों के बीच तेजी से यह खबर फैल गई कि लखनऊ के जेल प्रशासन द्वारा दोनों नेताओं की जेल में हत्या करवा दी गई है। जिसके चलते 7 जनवरी 1921 को रायबरेली मुंशीगंज नदी के एक छोर पर अपने नेताओं के समर्थन में एक विशाल जनसमूह एकत्रित होने लगा।किसानों के भारी विरोध को देखते हुए नदी किनारे भारी पुलिस बल तैनात कर दिया।

स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए जवाहरलाल नेहरू ने भी रायबरेली का रुख किया पर पहुंचने से पहले ही उन्हें रोक दिया गया।जानकार बताते हैं कि अंग्रेज पहले से ही इस गोलीकांड की योजना बना चुके थे पर नेहरू को सिर्फ इसलिए नजरबंद किया गया था कि कहीं नेहरू को गोली लग गए तो मामला बड़ा रुप ले लेगा।अंग्रेजी शासन ने सभा में मौजूद किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार करा दी गई जिसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से लाल हो गई।कहा जाता है कि 750 से ज्यादा किसान इस नरसंहार में मारे गए थे।



Conclusion:‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगें हर बरस मेले,वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशां होगा’

विसुअल- संबंधित विज़ुअल व पीटीसी

बाइट- अनिल मिश्र - अध्यक्ष - स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित संगठन, रायबरेली

प्रणव कुमार - 7000024034
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:18 PM IST
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