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प्रयागराज में विराजते हैं अति प्राचीन तक्षक, दर्शन से दूर होती है विषबाधा

धर्म और आस्था की नगरी तीर्थराज प्रयाग के दरियाबाद मोहल्ले में अति प्राचीन श्री तक्षक तीर्थ मंदिर विराजमान है. जिसका वर्णन पद्म पुराण में वर्णित है. सावन के महीने में यहां पर आने से विषबाधा और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यहां पर नागों में श्रेष्ठ नाग यहां विराजमान. जिन्हें आदिकालीन तक्षक तीर्थ के रूप में जाना जाता है. पदम पुराण में इसके धार्मिक महत्व का वर्णन है. मान्यता है कि यहां आने से विषबाधा से मुक्ति मिलती है. बड़ा शिवाला के नाम से भी प्रसिद्ध है यह मंदिर.

दर्शन से दूर होती है विषबाधा
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Published : Aug 5, 2021, 6:14 AM IST

प्रयागराज: श्रावण मास को भगवान शिव का मास कहते हैं, पुराणों में इस महीने का दैवीय महात्मय बताया गया है. कहते हैं भगवान भोले शिवभक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं. भक्त भी मनोकानाओं के पूर्ति के लिए शिव के शरण में आते हैं. वैसे शिव के संपूर्ण संसास में मंदिर हैं मगर, धर्म और आस्था की नगरी तीर्थराज प्रयाग के दरियाबाद मोहल्ले में अति प्राचीन श्री तक्षक तीर्थ मंदिर का अलग ही महिमा है. इस मंदिर का वर्णन पद्म पुराण में मिलता है. मान्याता है कि सावन के महीने में यहां पर आने से विषबाधा तो दूर होती ही है साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. इस मंदिर में नागों में श्रेष्ठ नाग विराजमान. जिन्हें आदिकालीन तक्षक तीर्थ के रूप में जाना जाता है. यह मंदिर बड़ा शिवाला के नाम से भी प्रसिद्ध है.



कहते हैं कि यमुना तट पर स्थित तक्षक तीर्थ मंदिर बड़े शिवाले के नाम से विश्व विख्यात हैं, यहां तक्षक नाग विश्राम कर रहे हैं. इसको लेकर एक कहानी भी है, जो श्री प्रयाग महात्म्य सतध्यायी के 82 अध्याय में वर्णित है. कहते हैं कि एक बार अश्विनी कुमार ने किष्किंधा पर्वत पर बड़े ही कष्ट सहते हुए पारस का रसराज बनाया और वहीं पर गुफा में रखकर चले गए, जब अश्वनी कुमार रसराज लेने पुनः वापस आए तो पारस पात्र को सूखा देख उन्हें आश्चर्य हुआ. उन्होंने स्वर्ग पहुंचकर ये बात देवराज इंद्र को बताई. देवराज ने जब उनकी बात सुनी तो उन्होंने कहा कि चोर का पता लगाएं वह उसे दंड देंगे. जब यह समाचार तक्षक नाग को पता चला तो वह पताल से प्रस्थान कर गए और यमुना तट पर रहने लगे. बाद में बृहस्पति देव ने राज खोलते हुए कहा कि तक्षक का तीर्थराज में आश्रय है और वह सदा माधव के ध्यान में मग्न रहते हैं. इसलिए वह अबध्य हैं. तब जाकर देवता शांत हुए. श्री तक्षक आज भी इस तीर्थराज में विराजमान हैं.

दर्शन से दूर होती है विषबाधा
यहां की ऐसी मान्यता है, कि प्रत्येक मास की शुक्ल पंचमी को विशेषकर अगहन और सावन मास की की शुक्ल पक्ष की पंचमी को तक्षक कुंड में स्नान करके तक्षक नाग के पूजन, दान, जप आदि करने से कुल की विषबाधा से मुक्ति तो होती ही है साथ ही कुल को धनवान और सांसारिक सुख की प्राप्ति भी होती है. मंदिर के महातम्य को लेकर हमने पीठाधीश्वर से बात की उनका कहना है कि जैसे देश का राष्ट्रपति होता है, उसको धुरी मानकर देश का संविधान चलता है ठीक उसी तरह काल को धुरी मानकर 9 ग्रह, 12 राशि, 28 नक्षत्र कर्म करते हैं. वह काल का स्थान तक्षक को ही प्राप्त है. यह श्रीमद्भाभागवत पुराण से स्पष्ट होता है. तक्षक ही सम्पूर्ण जाति के स्वामी बनाए गए हैं. कालसर्प योग नाग दोष की मुक्ति का यह मुख्य स्थान है. सावन मास में शिव की पूजा विशेष रूप से होती है. इसलिए रूद्र लोक के नागों में तक्षक ही प्रमुख कहे गए हैं. इसलिए इस मास में तक्षक तीर्थ की पूजा का विशेष महत्व है. साथ ही नाग पंचमी पर यहां इसकी विशेष पूजा होती है.

प्रयागराज: श्रावण मास को भगवान शिव का मास कहते हैं, पुराणों में इस महीने का दैवीय महात्मय बताया गया है. कहते हैं भगवान भोले शिवभक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं. भक्त भी मनोकानाओं के पूर्ति के लिए शिव के शरण में आते हैं. वैसे शिव के संपूर्ण संसास में मंदिर हैं मगर, धर्म और आस्था की नगरी तीर्थराज प्रयाग के दरियाबाद मोहल्ले में अति प्राचीन श्री तक्षक तीर्थ मंदिर का अलग ही महिमा है. इस मंदिर का वर्णन पद्म पुराण में मिलता है. मान्याता है कि सावन के महीने में यहां पर आने से विषबाधा तो दूर होती ही है साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. इस मंदिर में नागों में श्रेष्ठ नाग विराजमान. जिन्हें आदिकालीन तक्षक तीर्थ के रूप में जाना जाता है. यह मंदिर बड़ा शिवाला के नाम से भी प्रसिद्ध है.



कहते हैं कि यमुना तट पर स्थित तक्षक तीर्थ मंदिर बड़े शिवाले के नाम से विश्व विख्यात हैं, यहां तक्षक नाग विश्राम कर रहे हैं. इसको लेकर एक कहानी भी है, जो श्री प्रयाग महात्म्य सतध्यायी के 82 अध्याय में वर्णित है. कहते हैं कि एक बार अश्विनी कुमार ने किष्किंधा पर्वत पर बड़े ही कष्ट सहते हुए पारस का रसराज बनाया और वहीं पर गुफा में रखकर चले गए, जब अश्वनी कुमार रसराज लेने पुनः वापस आए तो पारस पात्र को सूखा देख उन्हें आश्चर्य हुआ. उन्होंने स्वर्ग पहुंचकर ये बात देवराज इंद्र को बताई. देवराज ने जब उनकी बात सुनी तो उन्होंने कहा कि चोर का पता लगाएं वह उसे दंड देंगे. जब यह समाचार तक्षक नाग को पता चला तो वह पताल से प्रस्थान कर गए और यमुना तट पर रहने लगे. बाद में बृहस्पति देव ने राज खोलते हुए कहा कि तक्षक का तीर्थराज में आश्रय है और वह सदा माधव के ध्यान में मग्न रहते हैं. इसलिए वह अबध्य हैं. तब जाकर देवता शांत हुए. श्री तक्षक आज भी इस तीर्थराज में विराजमान हैं.

दर्शन से दूर होती है विषबाधा
यहां की ऐसी मान्यता है, कि प्रत्येक मास की शुक्ल पंचमी को विशेषकर अगहन और सावन मास की की शुक्ल पक्ष की पंचमी को तक्षक कुंड में स्नान करके तक्षक नाग के पूजन, दान, जप आदि करने से कुल की विषबाधा से मुक्ति तो होती ही है साथ ही कुल को धनवान और सांसारिक सुख की प्राप्ति भी होती है. मंदिर के महातम्य को लेकर हमने पीठाधीश्वर से बात की उनका कहना है कि जैसे देश का राष्ट्रपति होता है, उसको धुरी मानकर देश का संविधान चलता है ठीक उसी तरह काल को धुरी मानकर 9 ग्रह, 12 राशि, 28 नक्षत्र कर्म करते हैं. वह काल का स्थान तक्षक को ही प्राप्त है. यह श्रीमद्भाभागवत पुराण से स्पष्ट होता है. तक्षक ही सम्पूर्ण जाति के स्वामी बनाए गए हैं. कालसर्प योग नाग दोष की मुक्ति का यह मुख्य स्थान है. सावन मास में शिव की पूजा विशेष रूप से होती है. इसलिए रूद्र लोक के नागों में तक्षक ही प्रमुख कहे गए हैं. इसलिए इस मास में तक्षक तीर्थ की पूजा का विशेष महत्व है. साथ ही नाग पंचमी पर यहां इसकी विशेष पूजा होती है.
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