प्रयागराज: संगम नगरी (Sangam Nagri) अध्यात्म की दृष्टि से पुरी दुनिया में खास पहचान रखती है. यहां, स्थापित मंदिरों की महिमा भी अनंत है. वैसे तो यहां भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva) के कई प्राचीन मंदिर हैं, लेकिन संगम के नजदीक अरैल स्थित शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर (shooltankeshwar mahadev temple) सूर्यदेव से संबंधित है. शिवपुराण (Shiv Puran Ans Skand Puran) और स्कन्द पुराण में इस मंदिर का वर्णन शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से किया गया है. खास बात यह है इस मंदिर में दर्शन और पूजा करने से भगवान शिव के साथ ही सूर्यदेव भी प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं.
शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर के पीछे एक सूर्यदेव का मंदिर (Sun Temple) भी बना हुआ है, जिसके बारे में बताया जाता है कि सदियों पहले कई ऋषि मुनि इस मंदिर में तपस्या करते थे. उसी वक्त से यहां पर सूर्यदेव का मंदिर भी स्थापित किया गया. कहते हैं सूर्यदेव ने ही परमपिता ब्रह्मा के आदेश पर जनकल्याण के लिए संगम के नजदीक अक्षयवट के ठीक सामने एक शिवलिंग को स्थापित किया था. मान्यता है कि शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पूजा करने से न सिर्फ भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं बल्कि, सूर्यदेव भी प्रसन्न होते हैं. पुराणों के अनुसार, सूर्यदेव भक्तों को सभी तरह के शारीरिक कष्टों से बचाते हैं तो वहीं महादेव उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं.
इस शिवलिंग में दिखती हैं रेखाएं
जानकारों का दावा है कि भगवान सूर्य के हाथों से स्थापित किये गये इस शिवलिंग की तरह दूसरा शिवलिंग पूरे प्रयागराज में कहीं और नहीं है. बताया जाता है कि जब भगवान सूर्य इस शिवलिंग की स्थापना कर रहे थे तो उनके तेज शिवलिंग में रेखाएं बन गईं थी जो आज भी इस शिवलिंग में स्पष्ट तौर पर दिखती हैं. शिवलिंग को छूने पर भी उसमें लकीरों के होने का आभास होता है. शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर संगम के पास अरैल इलाके में स्थापित है. यहां, रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर भोले नाथ का जलाभिषेक कर उनकी उपासना करते हैं. ऐसी मान्यता है भी है कि इस मंदिर में शिव जी का विधि विधान के साथ जलाभिषेक कर उनकी पूजा-अर्चना की जाए तो नि:संतान दंपति को संतान सुख की प्राप्ति होती है.
सूर्यजनित दोष से मिलती है मुक्ति
जिन लोगों के कुंडली में सूर्य जनित दोष हों और वो शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर में जल चढ़ाकर सच्चे मन से पूजा करे तो उसे मुक्ति मिलती है. मंदिर के पुजारी शेषधर पांडेय बताते है कि ये अक्षयवट के ठीक सामने स्थित होने की वजह से इस मंदिर में किये गए पूजा-पाठ का फल कभी मिटता नहीं है. ये इकलौता ऐसा मंदिर है जहां पर शिवजी की पूजा करने से सूर्यदेव भी प्रसन्न होते हैं. सूर्य देव की प्रसन्नता से उनके भक्तों के जीवन में सुख शांति के साथ ही उनका मान सम्मान और प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी होती है.
इस मंदिर के बारे में एक ऐसी भी मान्यता है कि यहां पर शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है वो जल किसी गुप्त रास्ते से होते हुए सीधे संगम में जाकर मिलता है. मुगल बादशाह की अकबर की हिन्दू पत्नी जोधा बाई के बारे में कहा जाता है कि वो शूलटंकेश्वर मंदिर में भोलेनाथ के इस शिवलिंग की पूजा उपासना करने आती थीं. आज भी किले में स्थित अक्षयवट से इस मंदिर को देखा जा सकता है और मंदिर से किला व अक्षयवट भी स्पष्ट रूप से दिखता है. अकबर ने जब संगम के पास किला बनवाया था, तभी अक्षयवट उस किले की दीवारों के अंदर हो गया था. लेकिन, अक्षयवट वृक्ष आज भी लोगों को किले की दीवार के ऊपर दिखता है. जहां से लोग अक्षयवट का दर्शन भी करते हैं.