प्रयागराज: संगमनगरी के दारागंज घाट के किनारे मौजूद बड़ा गणेश के मंदिर का विशेष महत्व है. गणेश चतुर्थी के मौके पर दूर-दूर से श्रद्धालु यहां गणपति बप्पा का दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. ऐसा माना जाता है कि, यह दुनिया का सबसे पुराना गणेश मंदिर है और ओमकार यानी तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने यहां गणेश जी की आराधना की थी. 435 साल पहले 1585 ई. में राजा टोडरमल ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. आज भी राजा टोडरमल के वंशज मंदिर की देखरेख करते हैं. गणेश चतुर्थी के पर्व के शुरू होने वाले गणेश उत्सव के अंत तक यहां भगवान गणेश का विशेष श्रृंगार किया जाता है.
सृष्टि के प्रथम गणपति स्थापित हैं यहां
प्रयागराज मंदिर के पुजारी और राजा टोडरमल के वंशज सुधांशु अग्रवाल का कहना है कि दारागंज घाट पर स्थापित गणपति पूरे सृष्टि के प्रथम गणपति के नाम से जाने जाते हैं. 1585 ई. राजा टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निमाण कराने के बाद यहां भगवान श्री गणेश की प्रतिमा को स्थापित किया था. इस मंदिर की महिमा पूरे विश्व में जानी जाती है. इस मंदिर का जिक्र पुराणों में भी मिलता है. कहा जाता है कि, इस मंदिर में स्वयं भगवान ओमकार ने चारों वेदों के सहित मूर्तिमान होकर गणेश जी की आराधना की थी. यह मंदिर अभिष्टय सृष्टि के प्राप्ति के लिए है.
प्राचीन स्वरूप में बना है मंदिर
मंदिर के पुजारी के मुताबिक, ऋषि-मुनियों के यज्ञ और पूजा-पाठ करने के बाद राजा टोडरमल ने यहां मंदिर का निर्माण कराया था. एक विशाल पत्थर को तराशकर उसे भगवान गणपति की प्रतिमा का रूप दिया गया और उसे यहां स्थापित किया गया. मंदिर के पौराणिक महत्व के कारण गणेश चतुर्थी से शुरू होने वाले गणेश उत्सव के दौरान यहां लोगों का तांता लगा रहता है.