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सीधे जिला जज बनने के लिए 7 साल की लगातार वकालत जरूरी, जानें और क्या हैं नियम

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि उच्च न्यायिक सेवा अधिकारी/ जिला जज बनने के लिए 7 साल की लगातार वकालत जरूरी है. कोर्ट ने सीबीआई में लोक अभियोजक के पद पर कार्यरत याची को उप्र उच्च न्यायिक सेवा की अंतिम परीक्षा में बैठने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट
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Published : Mar 26, 2022, 10:18 PM IST

प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायिक सेवा अधिकारी/ जिला जज बनने के लिए 7 साल की लगातार वकालत जरूरी है. आवेदन जमा करने की तिथि तक वकालत करना भी आवश्यक है.

कोर्ट ने सीबीआई में लोक अभियोजक के पद पर कार्यरत याची को उप्र उच्च न्यायिक सेवा की अंतिम परीक्षा में बैठने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है. यह फैसला न्यायमूर्ति डॉ. केजे ठाकर तथा न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ ने बिन्दु की याचिका पर दिया है.

इसे भी पढ़ेंः अपर मुख्य सचिव गृह बताएं न्यायिक जांच रिपोर्ट पर क्या की कार्रवाई, कोर्ट ने मांगा व्यक्तिगत हलफनामा

कोर्ट ने कहा कि 7 वर्ष की लगातार वकालत की आवश्यकता संविधान के अनुच्छेद 233 (2) में निहित है. कोर्ट अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के दीपक अग्रवाल केस में दिए गए निर्णय को आधार बनाया.

मामले के अनुसार याची बिन्दु ने उप्र उच्च न्यायिक सेवा में जिला जज बनने के लिए आवेदन किया था. उसने प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली. हाईकोर्ट की प्रशासनिक कमेटी ने यह पाया कि याची वर्तमान में लोक अभियोजक के पद पर कार्यरत हैं.

इससे पूर्व उसका अगस्त 2017 में ट्रेडमार्क एंड जीआई के परीक्षक के रूप में चयन हुआ था. कोर्ट ने पाया कि याची एडवोकेट्स एक्ट 1961 के तहत वकील नहीं रह गई थी. उसने अपना लाइसेंस भी समर्पित कर दिया धा. उसे जरूरी सात साल की वकालत का अनुभव नहीं है.

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प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायिक सेवा अधिकारी/ जिला जज बनने के लिए 7 साल की लगातार वकालत जरूरी है. आवेदन जमा करने की तिथि तक वकालत करना भी आवश्यक है.

कोर्ट ने सीबीआई में लोक अभियोजक के पद पर कार्यरत याची को उप्र उच्च न्यायिक सेवा की अंतिम परीक्षा में बैठने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है. यह फैसला न्यायमूर्ति डॉ. केजे ठाकर तथा न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ ने बिन्दु की याचिका पर दिया है.

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कोर्ट ने कहा कि 7 वर्ष की लगातार वकालत की आवश्यकता संविधान के अनुच्छेद 233 (2) में निहित है. कोर्ट अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के दीपक अग्रवाल केस में दिए गए निर्णय को आधार बनाया.

मामले के अनुसार याची बिन्दु ने उप्र उच्च न्यायिक सेवा में जिला जज बनने के लिए आवेदन किया था. उसने प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली. हाईकोर्ट की प्रशासनिक कमेटी ने यह पाया कि याची वर्तमान में लोक अभियोजक के पद पर कार्यरत हैं.

इससे पूर्व उसका अगस्त 2017 में ट्रेडमार्क एंड जीआई के परीक्षक के रूप में चयन हुआ था. कोर्ट ने पाया कि याची एडवोकेट्स एक्ट 1961 के तहत वकील नहीं रह गई थी. उसने अपना लाइसेंस भी समर्पित कर दिया धा. उसे जरूरी सात साल की वकालत का अनुभव नहीं है.

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