प्रयागराज: पूरी दुनिया में प्रयागराज की पहचान गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम की वजह से होती है. गंगा यमुना की वजह से स्थानीय लोगों को जहां कई फायदे मिलते हैं तो वहीं हर साल दोनों नदियों की वजह से यहां के लोगों को बाढ़ का प्रकोप भी झेलना पड़ता है. जिला प्रशासन ने हर साल की तरह ही इस बार भी बाढ़ से निपटने की तैयारियां शुरू कर दी हैं. लेकिन प्रशासन की ये तैयारियां कितनी कारगर साबित होती है वो तो आने वाले दिनों में दोनों नदियों के बढ़ने वाले जल स्तर के बाद ही पता चल पाएगा.
प्रयागराज में गंगा यमुना दोनों नदियों का जल स्तर जुलाई अगस्त के महीने में तेज गति से बढ़ता है. हर साल आने वाले इस बाढ़ में शहर की आबादी के साथ ही ग्रामीण इलाके की आबादी भी प्रभावित होती है. अनुमान के मुताबिक जिले में गंगा यमुना नदी में आने वाली बाढ़ की वजह से 2 सौ गांव प्रभावित होते हैं. जिससे ग्रामीणों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
निचले इलाकों में रहने वाले शहरी भी होते हैं परेशान
संगम नगरी में आने वाली हर साल की बाढ़ से सिर्फ ग्रामीण ही नहीं बल्कि शहरी इलाके में रहने वाली लाखों की आबादी भी प्रभावित होती है. गंगा यमुना के किनारे पर बड़ी संख्या में लोगों ने नदी के कछारी इलाके में घर बनवा लिया है. जिससे इन इलाकों में रहने वाले लोगों के घरों के अंदर तक पानी आसानी से पहुंच जाता है. यही नहीं डेंजर लेवल तक पानी के पहुंचने पर इन इलाकों में बने घरों की दूसरी मंजिल तक भी पानी पहुंच जाता है.
1978 और 2013 के बाढ़ से ज्यादा परेशान हुए थे लोग
वैसे तो हर साल नदियों में आने वाले बाढ़ की वजह से प्रयाग वासियों को परेशान होना पड़ता है. लेकिन 42 साल पहले 1978 में प्रयागराज में आई बाढ़ की वजह से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. बताया जाता है कि 1978 में आई बाढ़ पिछली सदी का सबसे बड़ी बाढ़ की त्रासदी प्रयागराज वालों के लिए थी. गंगा का जलस्तर 88.39 तक और यमुना का जलस्तर 87.99 मीटर तक पहुंच गया था. जबकि प्रयागराज में दोनों नदियों के जल स्तर का डेंजर लेवल 84.73 मीटर है. उसी दौरान बक्शी बांध और यमुना बैंक बांध से जल रिसाव कर इलाकों में पहुंचने लगा था. जिसे कड़ी मशक्कत के बाद रोका जा सका था. कुछ उसी तरह के हालात 2013 की बाढ़ में भी हुए थे. इस बाढ़ में बक्शी बांध में दरार की वजह से पानी रिसकर आबादी में घुसने लगा था. जिसे तत्कालीन अफसरों और सेना की मदद से रोका गया था. उस वक्त के जिले के निचले इलाकों में एक महीने तक बाढ़ का पानी भरा रहा था. जिस वजह से लोगों को महीने भर तक राहत कैम्प में रहना पड़ा था.
पिछले साल के मुकाबले एक बाढ़ चौकी कम बनेगी
प्रयागराज में बाढ़ से निपटने की तैयारियां मानसून के आने से पहले से ही शुरू कर दी जाती हैं. हालांकि यहां पर जुलाई अगस्त के महीने में ही नदियों का जल स्तर बढ़ने का सिलसिला शुरु होता है. लेकिन उसके बावजूद इस आपदा से निपटने की तैयारियां महीनों पहले से शुरू कर दी जाती है. जिले में पिछले साल जहां 99 बाढ़ राहत चौकी बनाई गयी थी. वहीं इस बार 98 बाढ़ राहत चौकियां बनाई जा रही हैं. इसके अलावा लोगों के रहने के लिए आवश्यकता के अनुसार बाढ़ राहत कैम्प बनाए जाएंगे. जहां पर जरूरत पड़ने पर लोग रह सकेंगे.
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वितरण के लिए फ़ूड पैकेट बनवाए जाएंगे
आपदा राहत के कार्यों की जिम्मेदारी संभालने वाले एडीएम वित्त एवं राजस्व मार्तण्ड प्रताप सिंह का कहना है कि हर साल की तरह ही इस बार बाढ़ से निपटने की तैयारी की गयी है. बाढ़ से प्रभावित होने वाले परिवारों के लिए फूड पैकेट भी पैक करवाकर वितरित किए जाएंगे. जिससे कि बाढ़ से परेशान होने वालों परिवारों के सामने खाने पीने का संकट न उत्पन्न हो सके.
शहर के 75 फीसदी नालों की हो चुकी है सफाई
प्रयागराज में बाढ़ की दस्तक से पहले ही शहर के नालों की सफाई का अभियान चलाया जा रहा है. महापौर अभिलाषा गुप्ता नंदी के मूताबिक शहर के बड़े नालों की 75 फीसदी तक सफाई की जा चुकी है. इसके साथ ही मोहल्ले के नालों से सिल्ट निकालने का काम भी तेजी से चल रहा है. जिससे कि बरसात के दिनों में किसी भी तरह से जल भराव की समस्या न सामने आए. उनके अनुसार जो इलाके बाढ़ से प्रभावित होते हैं, वहां के नालों की सफाई प्राथमिकता के आधार पर करवाई जाती है.
कौन से इलाके बाढ़ से होते हैं ज्यादा प्रभावित
गंगा यमुना के जल स्तर बढ़ने से जिले में मेजा, करछना, सोरांव, बारा, कोरांव और फूलपुर तहसील से जुड़े ग्रामीण क्षेत्र प्रभावित होते हैं. इसके अलावा शहरी क्षेत्र में दारागंज, नैनी, झूंसी, छोटा बघाड़ा, सलोरी, ओम गायत्री नगर, राजपुर का बेली कछार, तेलियरगंज, मीरापुर, सदियाबाद, करेली और धूमनगंज का कुछ इलाका बाढ़ से ज्यादा प्रभावित होता है.
बाढ़ नियत्रण कक्ष सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग करता है निगरानी
अधिशाषी अभियंता बृजेश कुमार ने बताया कि उनके विभाग के द्वारा लगातार नदी के जल स्तर की निगरानी की जाती है. बाढ़ के दौरान दिन रात कमर्चारी इस बात की मॉनिटरिंग करते है कि नदी का जलस्तर प्रति घंटे किस रफ्तार से घट या बढ़ रहा है. खतरे के निशान तक नदी के जल स्तर को पहुंचने में कितना समय लगेगा उसी के अनुसार चेतवानी जारी की जाती है. जिससे कि निचले इलाकों में रहने वाले लोग समय से घरों को खाली करके सुरक्षित स्थानों तक या राहत कैम्प तक पहुंच जाएं. इसके अलावा बांधों की निगरानी करना और स्लूज गेट के रास्तों को पानी का लेवल बढ़ने से पहले बंद करने का काम भी इसी विभाग के द्वारा किया जाता है.