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मौनी अमावस्या: स्नान-दान से मिलता है सौ गुना ज्यादा फल, जानें महत्व

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Published : Feb 11, 2021, 9:48 AM IST

गुरुवार को मौनी अमावस्या का पर्व है. ऐसी मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर संगम में स्नान करने से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि सांसारिक सुखों की प्राप्ति के अलावा मोक्ष पाने की कामना लेकर श्रद्धालू संगम में स्नान करने पहुंचते हैं.

मौनी अमावस्या.
मौनी अमावस्या.

प्रयागराज: माघ महीने में प्रयागराज में एक महीने तक चलने वाले माघ मेले का सबसे बड़ा स्नान पर्व मौनी अमावस्या है. मौनी अमावस्या के दिन तीर्थराज प्रयाग में सभी देवी देवताओं का वास होता है. इसलिए मौनी अमावस्या के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती की पावन त्रिवेणी में स्नान करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

जानें मौनी अमावस्या का महत्व.

प्रयागराज में सारे तीर्थों का वास
रामायण सहित दूसरे ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है. माघ महीने में सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब प्रयागराज में सारे तीर्थों का वास होता है. सारे देवी देवता मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज में वास करते हैं. यही वजह है कि माघ मेले में सबसे ज्यादा भीड़ मौनी अमावस्या के दिन उमड़ती है. मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान करना बेहद फलदायी माना जाता है. इस संदर्भ में तुलसीदास जी ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है- "माघ मकरगत रवि जब होई, तीरथपतिहिं आव सब कोई"

संगम में स्नान मौनी अमावस्या के दिन सूर्य के साथ ग्रहों का दिव्य संयोग बनता है. इस दिन संगम में स्नान करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. परिवार में सुख शांति की कामना के साथ ही जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पाने के श्रद्धालु संगम तट आते हैं. माघ मेले में लाखों श्रद्धालु मौनी अमावस्या के दिन संगम में आस्था की डुबकी लगाने के लिए सदियों से आते रहे हैं. मेले में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है अपने घर परिवार में सुख शांति की कामना लेकर वह हर साल माघ मेले में मौनी का स्नान करने आ रहे हैं.

नंगे पैर पैदल चलते हैं श्रद्धालु
साधु संतों का कहना है कि मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर संगम में स्नान करने से भक्तों की सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पाने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान करने के लिए आते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन तीर्थराज प्रयाग में संगम में स्नान करने के लिए जाते समय श्रद्धालु जितने कदम पैदल चलता है उसे उतना ही अधिक फल की प्राप्ति होती है. बताया जाता है कि गंगा की रेती पर पर चले गए हर एक कदम के बदले यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है. इस वजह से बहुत से श्रद्धालु नंगे पांव ही मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी संगम में स्नान करने के लिए जाते हैं.

कष्टों से मिलती है मुक्ति
जूना अखाड़े से जुड़े हुए संत माधवानंद का कहना है कि तीर्थराज प्रयाग में गंगा यमुना सरस्वती के रूप में साक्षात महालक्ष्मी महासरस्वती और महाकाली का वास है. इसीलिए इन तीन देव नदियों के संगम में मौनी अमावस्या के दिन मात्र स्नान करने से ही मनुष्य को सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनके घर परिवार में सुख शांति आती है.

प्रयागराज: माघ महीने में प्रयागराज में एक महीने तक चलने वाले माघ मेले का सबसे बड़ा स्नान पर्व मौनी अमावस्या है. मौनी अमावस्या के दिन तीर्थराज प्रयाग में सभी देवी देवताओं का वास होता है. इसलिए मौनी अमावस्या के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती की पावन त्रिवेणी में स्नान करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

जानें मौनी अमावस्या का महत्व.

प्रयागराज में सारे तीर्थों का वास
रामायण सहित दूसरे ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है. माघ महीने में सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब प्रयागराज में सारे तीर्थों का वास होता है. सारे देवी देवता मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज में वास करते हैं. यही वजह है कि माघ मेले में सबसे ज्यादा भीड़ मौनी अमावस्या के दिन उमड़ती है. मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान करना बेहद फलदायी माना जाता है. इस संदर्भ में तुलसीदास जी ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है- "माघ मकरगत रवि जब होई, तीरथपतिहिं आव सब कोई"

संगम में स्नान मौनी अमावस्या के दिन सूर्य के साथ ग्रहों का दिव्य संयोग बनता है. इस दिन संगम में स्नान करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. परिवार में सुख शांति की कामना के साथ ही जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पाने के श्रद्धालु संगम तट आते हैं. माघ मेले में लाखों श्रद्धालु मौनी अमावस्या के दिन संगम में आस्था की डुबकी लगाने के लिए सदियों से आते रहे हैं. मेले में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है अपने घर परिवार में सुख शांति की कामना लेकर वह हर साल माघ मेले में मौनी का स्नान करने आ रहे हैं.

नंगे पैर पैदल चलते हैं श्रद्धालु
साधु संतों का कहना है कि मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर संगम में स्नान करने से भक्तों की सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पाने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान करने के लिए आते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन तीर्थराज प्रयाग में संगम में स्नान करने के लिए जाते समय श्रद्धालु जितने कदम पैदल चलता है उसे उतना ही अधिक फल की प्राप्ति होती है. बताया जाता है कि गंगा की रेती पर पर चले गए हर एक कदम के बदले यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है. इस वजह से बहुत से श्रद्धालु नंगे पांव ही मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी संगम में स्नान करने के लिए जाते हैं.

कष्टों से मिलती है मुक्ति
जूना अखाड़े से जुड़े हुए संत माधवानंद का कहना है कि तीर्थराज प्रयाग में गंगा यमुना सरस्वती के रूप में साक्षात महालक्ष्मी महासरस्वती और महाकाली का वास है. इसीलिए इन तीन देव नदियों के संगम में मौनी अमावस्या के दिन मात्र स्नान करने से ही मनुष्य को सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनके घर परिवार में सुख शांति आती है.

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