प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट की कॉजलिस्ट के नए प्रारूप को लेकर अधिवक्ताओं में असमंजस की स्थिति बनी रही. पुराने सिस्टम की सुविधाएं नये सिस्टम में न मिल पाने के कारण परेशान अधिवक्ता खामियां दूर कर सुधार करने की मांग कर रहे हैं.
नये प्रारूप में अधिवक्ता के नाम से केस सर्च की सुविधा पूरी लिस्ट डाउनलोड के बाद उपलब्ध है. ऐसा करने से मोबाइल फोन की मेमोरी भर जाने से काम करना कठिन होगा. पहले लिस्ट डाउनलोड किए बगैर अधिवक्ता के नाम से सूचीबद्ध केस सर्च किया जा सकता था.
एडवोकेट रोल से सर्च की व्यवस्था को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि रोल 2012 में लागू किया गया. उससे पहले के मुकद्दमे कैसे देखे जा सकेंगे.
पूर्व महासचिव जे बी सिंह का कहना है कि एशिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट की तुलना सुप्रीम कोर्ट या अन्य हाईकोर्ट से करना बेमानी है. जो नये केस सुने नहीं जा सकेंगे, वे दुबारा कब लिस्ट होंगे ,साफ नहीं है.
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अशोक सिंह का कहना है कि हर कोर्ट की लिस्ट या पूरी लिस्ट डाउनलोड करने में भारी दिक्कत हो रही है. अधिवक्ता के नाम से सर्च करने की व्यवस्था न होने से परेशानी झेलनी पड़ रही है. नरेन्द्र कुमार चटर्जी ने कहा कि सूचीबद्ध मुकद्दमे की सूचना एसएमएस से देने में लापरवाही से केस अदम पैरवी में खारिज हो रहे हैं.
कंबाइंड लिस्ट के बावजूद वीकली लिस्ट जारी की जा रही है. यदि केस की सुनवाई जारी है तो पूरक सूची बनानी ही होगी. ऐसे में कंबाइंड लिस्ट के औचित्य पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. हाईकोर्ट प्रशासन ने जारी नए प्रारूप में केस नंबर और संबंधित अधिवक्ताओं के नाम अलावा अब नोटिस नंबर और संबंधित जिले का नाम भी दर्ज है.
इसके साथ ही प्रशासन ने अब फ्रेश, सप्लीमेंट्री फ्रेश और एडिशनल कॉज लिस्ट अलग-अलग छापने के बजाय एक साथ छापने का निर्णय लिया है. व्यवस्था में बदलाव को लेकर ऊहापोह की स्थिति से अधिवक्ताओं में बेचैनी है. विरोध या सुधार के स्वर उठने लगे हैं.
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