प्रयागराज: दुनिया भर में आस्था की नगरी कहे जाने वाला प्रयागराज के संगम तट पर कुछ ही दिनों में माघ मेला लगने वाला है. जहां किसी न्योते के बगैर देश दुनिया से लोग संगम की रेती पर आस्था की डुबकी लगाने आते हैं. वही प्रशासन उनके लिए संगम क्षेत्र में तंबुओं की नगरी, पांटून पुल सहित अन्य व्यवस्थाएं करने में जुट गया है. साथ ही साथ गांव-देहात में कल्पवासी कल्पवास का ताना बाना बुनने लगे हैं. कल्पवासियों का कल्पवास पूरी सुचिता और शुद्धता के साथ पूर्ण हो, इसके लिए गंगा किनारे की बस्ती में उपले और मिट्टी के चूल्हे तैयार किए जा रहे हैं, जिनको यहां की स्थानीय महिलाएं तैयार कर रही हैं.
संगम की रेती पर दूर दराज से आकर श्रद्धालु एवं साधु संत एक मास का तीर्थ पुरोहित द्वारा व्यवस्थित शिविर में रहकर कल्पवास करते हैं. उस दौरान यहां पर मिट्टी से बने चूल्हे, बोरसी और गोबर से बने उपलों की मांग अधिक हो जाती है. चूल्हे पर खाना पकाने, बोरसी में उपला जलाकर हाथ पैर सेंकने की कड़ाके की सर्दी में आवश्यकता पड़ती है.
वर्तमान में वैसे तो माघ मेले में आने वाले तमाम श्रद्धालु गैस सिलेंडर आदि साथ लेकर आते हैं और उसी पर भोजन बनाते हैं, लेकिन यहां पर कल्पवास करने वाले भोजन प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हों का ही इस्तेमाल करते हैं जिनमें आग जलाने के लिए गोबर के उपले व लकड़ी का प्रयोग करते हैं. खाना बनाने के साथ साथ ठंड से बचने के लिए भी श्रद्धालु उपले का प्रयोग करते हैं जो कि चूल्हा 50 से 70 रुपये में है जबकि 100 रुपये से 120 रुपये में सौ उपले मिलते हैं. इसलिए माघ मेले के लिए तीन-चार माह पहले से चूल्हे और उपले बनाने की तैयारी शुरू कर दी जाती है.
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