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फांसी की सजा पा चुकी शबनम को राहत मिलने की उम्मीद, राज्यपाल की तरफ से आया पत्र

अमरोहा के बावनखेड़ी गांव में शबनम ने अपने ही परिवार के सात लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी. पूरे परिवार को मौत के घाट उतारने वाली शबनम को फांसी की सजा सुनाई गई है. फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने के लिए महिला अधिवक्ता ने राज्यपाल को पत्र भेजा था, जिसके जवाब में राज्यपाल की तरफ से महिला अधिवक्ता की अपील पर विचार कर निर्णय लेने का आदेश यूपी के अपर मुख्य सचिव कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग को भेजा है.

शबनम
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Published : Jul 23, 2021, 1:43 AM IST

प्रयागराज : प्रेमी के साथ मिलकर पूरे परिवार को मौत के घाट उतारने वाली बेरहम कातिल शबनम को फांसी से राहत दिलाने के लिए एक और अपील की गई है. राज्यपाल से की गई इस अपील पर महामहिम की तरफ से अपर मुख्य सचिव कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग को विधि अनुसार कार्रवाई करने को कहा गया है. राज्यपाल के यहां से भेजे गए इस पत्र से बरेली जेल में बंद शबनम को कोई राहत मिलती है या नहीं. ये आने वाले दिनों में अपर मुख्य सचिव कारागार की तरफ से की जाने वाली कार्रवाई के बाद ही पता चल पाएगा.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की अधिवक्ता सहेर नकवी ने दी जानकारी
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में 2008 में एक दिल दहला देने वाली वारदात हुई थी, जिसमें बावनखेड़ी गांव में एक पूरे परिवार को उसी घर की बेटी ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर बेरहमी काटकर मौत के घाट उतार दिया था. मामले की लंबी सुनवाई के बाद प्रेमी जोड़े को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है. फांसी की सजा के खिलाफ दोषियों की अपील हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से खारिज हो चुकी है. इसके साथ ही उनकी दया याचिका को राष्ट्रपति ने भी खारिज कर दिया है.
शबनम
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हर तरफ से निराश हो चुकी शबनम की जिंदगी के लिए उम्मीद बनी हैं इलाहाबाद हाईकोर्ट की महिला अधिवक्ता सहेर नकवी. उन्होंने शबनम की फांसी की सजा को आजीवन कारावास की सजा में तब्दील किए जाने की मांग को लेकर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को एक लेटर भेजा था. कई महीने बाद इस लेटर का जवाब आया है, जिसमें शबनम के लिए एक आस जगी है. अधिवक्ता का कहना है कि राज्यपाल के यहां से अपर मुख्य सचिव कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग को कानून के अनुसार कार्रवाई करने का आदेश दिया गया है, जिसके बाद से ये उम्मीद बंधी है कि शबनम की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है. बहरहाल इस पत्र के जरिए सिर्फ इतनी आस जगी है कि महिला अधिवक्ता की अपील के आधार पर फांसी की सजा से शबनम को मुक्ति मिल सकती है.

शबनम
शबनम

इसे भी पढ़ें- बावनखेड़ी में किसी बेटी का नाम नहीं रखा जाता 'शबनम', जानिए वजह

शबनम पर रहम के लिए क्या है आधार

इलाहाबाद हाईकोर्ट की महिला अधिवक्ता ने राज्यपाल को भेजे गए अपने पत्र में शबनम के मासूम बेटे की जिंदगी को तबाही से बचाने के लिए उसकी मां को दी गई फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदलने की गुहार लगाई है. अधिवक्ता सहेर का यह भी तर्क है कि शबनम के 13 साल के बेटे को अभी से समाज में तमाम तरह के तानों के द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है. ऐसे में अगर उसकी मां को फांसी दे दी जाती है तो उसके बेटे का जीना मुश्किल हो जाएगा. अभी तक देश मे किसी भी महिला को फांसी की सजा नहीं दी गई है और शबनम फांसी पाने वाली पहली महिला बन गई तो लोग उसके बेटे को ताने मारकर उसके भविष्य को खराब कर देंगे. ये भी सम्भव है कि शबनम को फांसी मिलने के बाद उसके बेटे का भविष्य खराब हो जाए और वो बुरी राह पर चल पड़े, जो देश और समाज के लिए ठीक नहीं होगा. इसी वजह से शबनम के बेटे की जिंदगी को बर्बादी से बचाने के लिए महिला वकील ने राज्यपाल से रहम की गुहार लगाई.

शबनम
शबनम

इसे भी पढ़ें- बावनखेड़ी हत्याकांड : शबनम को फांसी की सजा से परिवार खुश


क्या था पूरा मामला

यूपी के अमरोहा जिले में 12 साल पहले अप्रैल 2008 में बावनखेड़ी गांव में शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर परिवार के सात लोगों की बेहरमी से हत्या कर दी गई थी. प्रेमी सलीम के साथ मिलकर शबनम ने अपनी मां हाशमी, पिता शौकत, भाई अनीश, राशिद, भाभी अंजुम, फुफेरी बहन राबिया और मासूम भतीजे अर्श का बेरहमी से कत्ल कर दिया था.

3 अगस्त 2010 में अमरोहा की अदालत ने सलीम और शबनम को मुजरिम करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी. तब जज एसएए हुसैनी ने अपने ऑर्डर में ये लिखा था कि उन्होंने अपने तीस साल के न्यायिक जीवन में इससे अच्छी और कोई जांच नहीं पाई. इसके लिए उन्होंने इस्पेक्टर गुप्ता की बाकायदा तारीफ भी की थी. बाद में ये मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में गया. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी. इसके बाद 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी सजा बरकरार रखा. राष्ट्रपति भी दया याचिका खारिज कर चुके हैं. शबनम पुनर्विचार याचिका और दूसरे कानूनी हथियारों का भी इस्तेमाल कर चुकी है. अब उसकी फांसी रोकने के किए इलाहाबाद हाई कोर्ट की वकील सहेर नकवी भरसक प्रयास कर रही है.

इसे भी पढ़ें- बावनखेड़ी कांडः शबनम ने राज्यपाल से लगाई दया याचिका की गुहार

प्रयागराज : प्रेमी के साथ मिलकर पूरे परिवार को मौत के घाट उतारने वाली बेरहम कातिल शबनम को फांसी से राहत दिलाने के लिए एक और अपील की गई है. राज्यपाल से की गई इस अपील पर महामहिम की तरफ से अपर मुख्य सचिव कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग को विधि अनुसार कार्रवाई करने को कहा गया है. राज्यपाल के यहां से भेजे गए इस पत्र से बरेली जेल में बंद शबनम को कोई राहत मिलती है या नहीं. ये आने वाले दिनों में अपर मुख्य सचिव कारागार की तरफ से की जाने वाली कार्रवाई के बाद ही पता चल पाएगा.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की अधिवक्ता सहेर नकवी ने दी जानकारी
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में 2008 में एक दिल दहला देने वाली वारदात हुई थी, जिसमें बावनखेड़ी गांव में एक पूरे परिवार को उसी घर की बेटी ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर बेरहमी काटकर मौत के घाट उतार दिया था. मामले की लंबी सुनवाई के बाद प्रेमी जोड़े को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है. फांसी की सजा के खिलाफ दोषियों की अपील हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से खारिज हो चुकी है. इसके साथ ही उनकी दया याचिका को राष्ट्रपति ने भी खारिज कर दिया है.
शबनम
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हर तरफ से निराश हो चुकी शबनम की जिंदगी के लिए उम्मीद बनी हैं इलाहाबाद हाईकोर्ट की महिला अधिवक्ता सहेर नकवी. उन्होंने शबनम की फांसी की सजा को आजीवन कारावास की सजा में तब्दील किए जाने की मांग को लेकर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को एक लेटर भेजा था. कई महीने बाद इस लेटर का जवाब आया है, जिसमें शबनम के लिए एक आस जगी है. अधिवक्ता का कहना है कि राज्यपाल के यहां से अपर मुख्य सचिव कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग को कानून के अनुसार कार्रवाई करने का आदेश दिया गया है, जिसके बाद से ये उम्मीद बंधी है कि शबनम की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है. बहरहाल इस पत्र के जरिए सिर्फ इतनी आस जगी है कि महिला अधिवक्ता की अपील के आधार पर फांसी की सजा से शबनम को मुक्ति मिल सकती है.

शबनम
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शबनम पर रहम के लिए क्या है आधार

इलाहाबाद हाईकोर्ट की महिला अधिवक्ता ने राज्यपाल को भेजे गए अपने पत्र में शबनम के मासूम बेटे की जिंदगी को तबाही से बचाने के लिए उसकी मां को दी गई फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदलने की गुहार लगाई है. अधिवक्ता सहेर का यह भी तर्क है कि शबनम के 13 साल के बेटे को अभी से समाज में तमाम तरह के तानों के द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है. ऐसे में अगर उसकी मां को फांसी दे दी जाती है तो उसके बेटे का जीना मुश्किल हो जाएगा. अभी तक देश मे किसी भी महिला को फांसी की सजा नहीं दी गई है और शबनम फांसी पाने वाली पहली महिला बन गई तो लोग उसके बेटे को ताने मारकर उसके भविष्य को खराब कर देंगे. ये भी सम्भव है कि शबनम को फांसी मिलने के बाद उसके बेटे का भविष्य खराब हो जाए और वो बुरी राह पर चल पड़े, जो देश और समाज के लिए ठीक नहीं होगा. इसी वजह से शबनम के बेटे की जिंदगी को बर्बादी से बचाने के लिए महिला वकील ने राज्यपाल से रहम की गुहार लगाई.

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क्या था पूरा मामला

यूपी के अमरोहा जिले में 12 साल पहले अप्रैल 2008 में बावनखेड़ी गांव में शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर परिवार के सात लोगों की बेहरमी से हत्या कर दी गई थी. प्रेमी सलीम के साथ मिलकर शबनम ने अपनी मां हाशमी, पिता शौकत, भाई अनीश, राशिद, भाभी अंजुम, फुफेरी बहन राबिया और मासूम भतीजे अर्श का बेरहमी से कत्ल कर दिया था.

3 अगस्त 2010 में अमरोहा की अदालत ने सलीम और शबनम को मुजरिम करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी. तब जज एसएए हुसैनी ने अपने ऑर्डर में ये लिखा था कि उन्होंने अपने तीस साल के न्यायिक जीवन में इससे अच्छी और कोई जांच नहीं पाई. इसके लिए उन्होंने इस्पेक्टर गुप्ता की बाकायदा तारीफ भी की थी. बाद में ये मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में गया. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी. इसके बाद 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी सजा बरकरार रखा. राष्ट्रपति भी दया याचिका खारिज कर चुके हैं. शबनम पुनर्विचार याचिका और दूसरे कानूनी हथियारों का भी इस्तेमाल कर चुकी है. अब उसकी फांसी रोकने के किए इलाहाबाद हाई कोर्ट की वकील सहेर नकवी भरसक प्रयास कर रही है.

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