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8 लाख रिश्वत लेने के आरोपी इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 12, 2023, 8:21 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्धनगर में सेक्टर-20 थाने के प्रभारी निरीक्षक रहे मनोज पंत पर दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है. मनोज पंत पर 8 लाख रुपये रिश्वत लेने का आरोप था.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्धनगर में सेक्टर-20 थाने के प्रभारी निरीक्षक रहे मनोज पंत के विरुद्ध चल रहे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के क्रिमिनल केस में दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है. साथ ही मनोज पंत की याचिका पर राज्य सरकार व पुलिस विभाग के आलाधिकारियों से जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने मनोज पंत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं एडवोकेट अतिप्रिया गौतम को सुनकर दिया है.

इंस्पेक्टर मनोज और तीन मीडिया कर्मियों लगा था आरोप
मामले के तथ्यों के अनुसार वर्ष 2019 में थाना सेक्टर 20 में तैनाती के दौरान एएसपी नोएडा ने मनोज पंत और तीन मीडिया कर्मियों उदित गोयल, रमन ठाकुर व सुशील पंडित के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7/8/13 एवं आईपीसी की धारा 384 के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी. चारों पर आरोप था कि पुष्पेन्द्र चौहान से एक क्रिमिनल केस में अभियुक्तों के नाम निकालने के लिए इन लोगों ने आठ लाख रुपये मांगे थे. चारों आरोपियों को उसी दिन गिरफ्तार किया कर 8 लाख रुपये की बरामदगी भी दिखाई गई थी. गिरफ्तारी व बरामदगी की पूरी कार्रवाई तत्कालीन एसएसपी वैभव कृष्ण के निर्देश पर हुई थी. गिरफ्तारी के बाद इंस्पेक्टर मनोज पंत व मीडियाकर्मियों को जेल भेज दिया गया था. साथ ही एसएसपी वैभव कृष्ण ने मनोज पंत को निलंबित कर दिया था. हाईकोर्ट से जमानत मंजूर होने के बाद मनोज पंत ने निलंबन आदेश को याचिका के माध्यम से चुनौती दी. हाईकोर्ट ने निलंबन आदेश को कानून के विरुद्ध मानते हुये स्थगित कर दिया. इसके बाद निलंबन आदेश रद्द कर दिया गया.

वकीलों की दलील, तत्कालीन एसएसपी ने विद्वेष भावना से कार्रवाई की

इस मामले में विवेचना के बाद मनोज पंत व तीन मीडियाकर्मियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7/13 (1) बी के तहत चार्जशीट दाखिल हुई. विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मेरठ ने चार्जशीट पर मनोज पंत तलब किया. मनोज पंत ने डिस्चार्ज अर्जी दी, जो विशेष न्यायाधीश ने निरस्त कर दी. इसके बाद मनोज पंत ने हाईकोर्ट में निगरानी याचिका दाखिल की. कोर्ट के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम ने दलील दी कि भ्रष्टाचार मामले में जीडी से यह स्वतः ही स्पष्ट है कि 29/30 जनवरी 2019 की रात याची थाना सेक्टर 20 नोएडा में उपस्थित नहीं थे. साथ ही अभियोजन स्वीकृति व्हाट्सअप पर आईजी मेरठ परिक्षेत्र द्वारा बगैर साक्ष्यों का अवलोकन किए की गई है. अभियोजन स्वीकृति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत नहीं ली गई है. एफआईआर याची के पदनाम एवं हस्ताक्षर से की गई है, जो यह दर्शाता है कि वह जबरदस्ती गन प्वाइंट पर तत्कालीन एसएसपी वैभव कृष्ण के दबाव में विद्वेष की भावना से कराई गई है.

अगली सुनवाई तक दंडात्मक कार्रवाई पर रोक
सीनियर एडवोकेट गौतम ने कहा कि याची के विरुद्ध यह कार्रवाई विद्वेष की भावना से कराई गई. इस प्रकरण में एक षड्यंत्र के तहत झूठा फंसाया गया और ट्रैपिंग की समस्त कार्रवाई झूठी दर्शाई गई है. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मनोज पंत के विरुद्ध चल रहे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के क्रिमिनल केस में अगली सुनवाई तक दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी.

इसे भी पढ़ें-2005 से पहले जारी विज्ञापन पर चयनित सहायक अध्यापकों को पुरानी पेंशन देने का निर्देश

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्धनगर में सेक्टर-20 थाने के प्रभारी निरीक्षक रहे मनोज पंत के विरुद्ध चल रहे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के क्रिमिनल केस में दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है. साथ ही मनोज पंत की याचिका पर राज्य सरकार व पुलिस विभाग के आलाधिकारियों से जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने मनोज पंत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं एडवोकेट अतिप्रिया गौतम को सुनकर दिया है.

इंस्पेक्टर मनोज और तीन मीडिया कर्मियों लगा था आरोप
मामले के तथ्यों के अनुसार वर्ष 2019 में थाना सेक्टर 20 में तैनाती के दौरान एएसपी नोएडा ने मनोज पंत और तीन मीडिया कर्मियों उदित गोयल, रमन ठाकुर व सुशील पंडित के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7/8/13 एवं आईपीसी की धारा 384 के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी. चारों पर आरोप था कि पुष्पेन्द्र चौहान से एक क्रिमिनल केस में अभियुक्तों के नाम निकालने के लिए इन लोगों ने आठ लाख रुपये मांगे थे. चारों आरोपियों को उसी दिन गिरफ्तार किया कर 8 लाख रुपये की बरामदगी भी दिखाई गई थी. गिरफ्तारी व बरामदगी की पूरी कार्रवाई तत्कालीन एसएसपी वैभव कृष्ण के निर्देश पर हुई थी. गिरफ्तारी के बाद इंस्पेक्टर मनोज पंत व मीडियाकर्मियों को जेल भेज दिया गया था. साथ ही एसएसपी वैभव कृष्ण ने मनोज पंत को निलंबित कर दिया था. हाईकोर्ट से जमानत मंजूर होने के बाद मनोज पंत ने निलंबन आदेश को याचिका के माध्यम से चुनौती दी. हाईकोर्ट ने निलंबन आदेश को कानून के विरुद्ध मानते हुये स्थगित कर दिया. इसके बाद निलंबन आदेश रद्द कर दिया गया.

वकीलों की दलील, तत्कालीन एसएसपी ने विद्वेष भावना से कार्रवाई की

इस मामले में विवेचना के बाद मनोज पंत व तीन मीडियाकर्मियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7/13 (1) बी के तहत चार्जशीट दाखिल हुई. विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मेरठ ने चार्जशीट पर मनोज पंत तलब किया. मनोज पंत ने डिस्चार्ज अर्जी दी, जो विशेष न्यायाधीश ने निरस्त कर दी. इसके बाद मनोज पंत ने हाईकोर्ट में निगरानी याचिका दाखिल की. कोर्ट के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम ने दलील दी कि भ्रष्टाचार मामले में जीडी से यह स्वतः ही स्पष्ट है कि 29/30 जनवरी 2019 की रात याची थाना सेक्टर 20 नोएडा में उपस्थित नहीं थे. साथ ही अभियोजन स्वीकृति व्हाट्सअप पर आईजी मेरठ परिक्षेत्र द्वारा बगैर साक्ष्यों का अवलोकन किए की गई है. अभियोजन स्वीकृति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत नहीं ली गई है. एफआईआर याची के पदनाम एवं हस्ताक्षर से की गई है, जो यह दर्शाता है कि वह जबरदस्ती गन प्वाइंट पर तत्कालीन एसएसपी वैभव कृष्ण के दबाव में विद्वेष की भावना से कराई गई है.

अगली सुनवाई तक दंडात्मक कार्रवाई पर रोक
सीनियर एडवोकेट गौतम ने कहा कि याची के विरुद्ध यह कार्रवाई विद्वेष की भावना से कराई गई. इस प्रकरण में एक षड्यंत्र के तहत झूठा फंसाया गया और ट्रैपिंग की समस्त कार्रवाई झूठी दर्शाई गई है. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मनोज पंत के विरुद्ध चल रहे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के क्रिमिनल केस में अगली सुनवाई तक दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी.

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