प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि गवाहों के दर्ज बयान में भिन्नता होने के तथ्यात्मक मुद्दे पर अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर विचार नहीं किया जा सकता. गवाहों के बयानों में भिन्नता को लेकर यह नहीं कह सकते कि अपराध नहीं बनता और आपराधिक कार्यवाही रद्द की जाए.
कोर्ट ने कहा कि पुलिस चार्जशीट से प्रथम दृष्टया अपराध का कारित होना प्रतीत होता है. ऐसे में तथ्य के प्रश्न पर धारा 482 के तहत हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने मुकदमे की कार्यवाही को रद करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है.
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यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने घोरावल, सोनभद्र के सर्वेश कुमार मिश्र की याचिका पर दिया है. याची का कहना था कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश चार्जशीट व जारी सम्मन आदेश निरस्त किया जाए क्योंकि कई गवाहों से विचारण न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि उन्होंने पुलिस को कोई बयान नहीं दिया है.
याची को झूठा फंसाया गया है. ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं. विवेचना अधिकारी ने ठीक से जांच नहीं की. ऐसे में आपराधिक केस चलाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है. इसे रद्द किया जाए.
सरकारी वकील का कहना था कि विवेचना अधिकारी ने 33 गवाहो के बयान दर्ज किए हैं और चार्जशीट दाखिल की है, जिससे अपराध का खुलासा होता है, जिस पर विचारण न्यायालय में साक्ष्यों के आधार पर विचार किया जाएगा.
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