प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह भर और राजभर जातियों को एससी एसटी का दर्जा दिए जाने के संबंध में केंद्र सरकार को 11 अक्टूबर 2021 के पत्र के संदर्भ में 4 माह में अपना प्रस्ताव बनाकर भेजें. जागो राजभर जागो समिति द्वारा दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने यह फैसला दिया.
याची समिति का पक्ष रख रहे अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी का कहना था कि केंद्र सरकार ने 11 अक्टूबर 2021 को पत्र लिखकर राज्य सरकार से भर और राजभर जातियों को एससी एसटी का दर्जा दिए जाने के संबंध में प्रस्ताव मांगा था. इस पत्र के जवाब में राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. कोर्ट ने प्रदेश सरकार को 2 माह में प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया मगर हाईकोर्ट के आदेश पर भी अमल नहीं किया गया. इसके खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल की गई. अवमानना याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से हलफनामा मांगा था. प्रमुख सचिव की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि राज्य सरकार को जातियों का अध्ययन करने के लिए और समय दिया जाए. इस पर कोर्ट ने 4 माह की मोहलत देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि अधिकतम 4 माह के भीतर केंद्र को प्रस्ताव भेज दिया जाए.
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याची संस्था का कहना है कि भर और राजभर जातियां 1952 के पहले तक क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के तहत आती थी. 1952 के बाद इनको विमुक्त जाति घोषित कर दिया गया जबकि क्रिमिनल ट्राइब्स में आने वाली अन्य जातियों को एससी एसटी में शामिल कर लिया गया. उत्तर प्रदेश में 1994 की आरक्षण नियमावली के तहत भर और राजभर जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है. जबकि मध्य प्रदेश महाराष्ट्र वाकई अन्य राज्यों में यह जातियां एससी एसटी में है. इसी प्रकार से अगरिया गुण खरवार चेरु पहाड़िया भैया आज जातियां भर और राजभर के साथ 1931 के एक्सटीरियर जाति के रूप में यूपी में सूचीबद्ध थी. इनमें से भर और राजभर को छोड़कर अन्य जातियों को एससी एसटी में शामिल कर लिया गया है.