प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को दलित नाबालिग लड़की से दुष्कर्म और हत्या के आरोपी की मौत की सजा को रद्द कर दिया है. आरोप से बरी करते हुए तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध साबित करने में नाकाम रहा है. परिस्थितिजन्य साक्ष्यों और अभियुक्त वह मृतका को अन्तिम समय देखने के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं हैं, जिसके आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया जा सके. यह फैसला न्यायमूर्ति मनोज मिश्र और न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने बीरेंद्र बघेल की जेल अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.
दरअसल, 17/18 सितंबर 21 को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/विशेष अदालत पॉक्सो फिरोजाबाद ने दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई थी. फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को रिफरेंस भेजा गया था. जेल अधीक्षक ने 23 सितंबर 21 को फैसले की प्रति भेजी, जिसपर अपील कायम की गई. कैदी की तरफ से कोई वकील न होने के कारण कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार को न्यायमित्र नियुक्त किया. लाइनपार थाने में 26 अप्रैल 19 को अपहरण की एफआईआर दर्ज कराई गई थी. 25 अप्रैल से 11 साल की बच्ची लापता थी. दूसरे दिन बसईपुर मोहम्मदपुर थाना क्षेत्र में सोफीपुर में लाश बरामद की गई, जिसकी पहचान की गई. आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार किया और उसने अपराध स्वीकार किया.
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कोर्ट ने कहा कि पुलिस के समक्ष अपराध स्वीकार करना साक्ष्य के रूप में मान्य नहीं है. कोर्ट ने कहा आरोपी के जींस पर मानव खून साबित नहीं किया गया कि वह मृतका का खून था. यह भी साफ नहीं लाश दुकान के पास कैसे पहुंची. आखिरी बार आरोपी और मृतका के देखें जाने के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं है. परिस्थितिजन्य सबूत संदेह से परे दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसी के चलते कोर्ट ने फांसी की सजा रद्द कर बरी कर दिया और तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है.
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