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हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा, हड़ताल करने वाले बिजली कर्मचारियों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में बिजली कर्मियों की हड़ताल पर सख्त रुख अपनाते हुए सरकार से पूछा कि गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई. कोर्ट ने कहा कि लोगों की जान की कीमत पर कोई भी मांग नहीं हो सकती है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Mar 20, 2023, 9:30 PM IST

प्रयागराज: बिजली कर्मचारियों के प्रदेशव्यापी हड़ताल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि हड़ताल करने वाले बिजली कर्मचारियों की गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई. कर्मचारी नेताओं से भी पूछा कि उनकी इस हड़ताल से राज्य को कुल कितना आर्थिक नुकसान हुआ है. सोमवार को इस मामले में अदालत ने तीन चरणों में सुनवाई की लेकिन कर्मचारी नेताओं की ओर से इस आशय की अंडरटेकिंग नहीं दी गई कि भविष्य में वह हड़ताल नहीं करेंगे. हाईकोर्ट के आदेश पर बिजली कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारी सुबह 10 बजे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश प्रितंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति एसडी सिंह की पीठ के समक्ष उपस्थित हुए.

लोगों की जान की कीमत पर नहीं हो सकती कोई भी मांगः कोर्ट ने कोर्ट ने सबसे पहले उनसे पूछा कि उनकी इस हड़ताल से राज्य को कितना आर्थिक नुकसान हुआ है. इस पर कर्मचारियों के अधिवक्ता ने कहा कि वह या नहीं बता सकते हैं कि नुकसान कितना हुआ है. इस पर कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए कहा कि आप 11 बजे उपस्थित होकर के बताये की हड़ताल से कुल कितना आर्थिक नुकसान हुआ है. दोबारा जब 11 सुनवाई प्रारंभ हुई तब भी कर्मचारी नेताओं के अधिवक्ता यह नहीं बता सके कि हड़ताल से कुल कितना नुकसान हुआ है. इस पर कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल से पूछा कि हड़ताल करने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई है. कोर्ट ने कहा कि जब 600 प्राथमिकी दर्ज की गई और वारंट जारी किया गया तो इनकी गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई. अदालत का कहना था कि मुद्दा यह नहीं है कि हड़ताल वापस ले ली गई है, यह काफी गंभीर मामला है. किसी को भी लोगों के जीवन से खिलवाड़ की अनुमति नहीं दी जा सकती है. कोई भी मांग लोगों की जान की कीमत पर नहीं हो सकती. कोर्ट ने एक बार फिर सुनवाई टालते हुए 12:30 बजे पुनः कर्मचारी नेताओं को नुकसान के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया.

हड़ताल से करीब 20 करोड़ का नुकसानः अदालत ने 12:30 बजे जब फिर से सुनवाई शुरू की तब भी कर्मचारी नेता यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि कुल कितना नुकसान हुआ है. हालांकि प्रदेश सरकार की ओर से बताया गया कि हड़ताल से करीब 20 करोड़ का नुकसान हुआ है. अदालत ने जानना चाहा कि क्या कर्मचारी नेताओं की ओर से इस आशय की अंडरटेकिंग दी जाएगी कि वह भविष्य में इस प्रकार की हड़ताल नहीं करेंगे. इस पर कर्मचारी नेताओं के वकील ऐसी कोई अंडरटेकिंग देने को तैयार नहीं हुए. उनका कहना था कि सरकार बार-बार वादा करने के बाद भी उनकी मांगों को नहीं मानती है जिसकी वजह से उन्हें मजबूरी में हड़ताल करनी पड़ी.

कर्मचारियों की 70 प्रतिशत मांगें मानी गईंः दूसरी और अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि कर्मचारियों की 70 प्रतिशत मांगे मान ली गई है. कर्मचारियों की कई मांगे गैर वाजिब हैं, जैसे कि उनकी एक मांग यह है कि बिजली कर्मचारियों के घर में बिना मीटर के बिजली की सप्लाई दी जाए. ऐसी मांगों को मानना संभव नहीं है. हड़ताल तय समय से करीब 6 घंटे पहले खत्म कर दी गई. कोर्ट का कहना था कि सरकार और कर्मचारियों के बीच का क्या मामला है, इससे उन्हें मतलब नहीं है. उनकी चिंता सिर्फ आम आदमी को लेकर हैं. हड़ताल से आम आदमी का जनजीवन अस्त व्यस्त हुआ है, जो कि बेहद ही चिंता का विषय है. छात्रों की परीक्षाएं चल रही है, अस्पतालों में मरीजों को दिक्कतें हुई, ऐसी तमाम परेशानियां इस हड़ताल की वजह से हुई है. याचिका पर पक्ष रख रहे अधिवक्ता विभु राय ने कोर्ट के समक्ष हड़ताल से हुए नुकसान और परेशानियों को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स की प्रतियां प्रस्तुत की. जिन्हें कोर्ट ने रिकॉर्ड पर ले लिया. हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राकेश पांडे ने भी अदालत के समक्ष हड़ताल से हुई दिक्कतों का ब्यौरा प्रस्तुत किया. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में वह उचित आदेश पारित करेंगे.

इसे भी पढ़ें-यूपी में 65 घंटे बाद बिजली कर्मियों की हड़ताल खत्म, मुकदमे वापस होने के साथ संविदाकर्मी होंगे बहाल

प्रयागराज: बिजली कर्मचारियों के प्रदेशव्यापी हड़ताल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि हड़ताल करने वाले बिजली कर्मचारियों की गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई. कर्मचारी नेताओं से भी पूछा कि उनकी इस हड़ताल से राज्य को कुल कितना आर्थिक नुकसान हुआ है. सोमवार को इस मामले में अदालत ने तीन चरणों में सुनवाई की लेकिन कर्मचारी नेताओं की ओर से इस आशय की अंडरटेकिंग नहीं दी गई कि भविष्य में वह हड़ताल नहीं करेंगे. हाईकोर्ट के आदेश पर बिजली कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारी सुबह 10 बजे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश प्रितंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति एसडी सिंह की पीठ के समक्ष उपस्थित हुए.

लोगों की जान की कीमत पर नहीं हो सकती कोई भी मांगः कोर्ट ने कोर्ट ने सबसे पहले उनसे पूछा कि उनकी इस हड़ताल से राज्य को कितना आर्थिक नुकसान हुआ है. इस पर कर्मचारियों के अधिवक्ता ने कहा कि वह या नहीं बता सकते हैं कि नुकसान कितना हुआ है. इस पर कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए कहा कि आप 11 बजे उपस्थित होकर के बताये की हड़ताल से कुल कितना आर्थिक नुकसान हुआ है. दोबारा जब 11 सुनवाई प्रारंभ हुई तब भी कर्मचारी नेताओं के अधिवक्ता यह नहीं बता सके कि हड़ताल से कुल कितना नुकसान हुआ है. इस पर कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल से पूछा कि हड़ताल करने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई है. कोर्ट ने कहा कि जब 600 प्राथमिकी दर्ज की गई और वारंट जारी किया गया तो इनकी गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई. अदालत का कहना था कि मुद्दा यह नहीं है कि हड़ताल वापस ले ली गई है, यह काफी गंभीर मामला है. किसी को भी लोगों के जीवन से खिलवाड़ की अनुमति नहीं दी जा सकती है. कोई भी मांग लोगों की जान की कीमत पर नहीं हो सकती. कोर्ट ने एक बार फिर सुनवाई टालते हुए 12:30 बजे पुनः कर्मचारी नेताओं को नुकसान के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया.

हड़ताल से करीब 20 करोड़ का नुकसानः अदालत ने 12:30 बजे जब फिर से सुनवाई शुरू की तब भी कर्मचारी नेता यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि कुल कितना नुकसान हुआ है. हालांकि प्रदेश सरकार की ओर से बताया गया कि हड़ताल से करीब 20 करोड़ का नुकसान हुआ है. अदालत ने जानना चाहा कि क्या कर्मचारी नेताओं की ओर से इस आशय की अंडरटेकिंग दी जाएगी कि वह भविष्य में इस प्रकार की हड़ताल नहीं करेंगे. इस पर कर्मचारी नेताओं के वकील ऐसी कोई अंडरटेकिंग देने को तैयार नहीं हुए. उनका कहना था कि सरकार बार-बार वादा करने के बाद भी उनकी मांगों को नहीं मानती है जिसकी वजह से उन्हें मजबूरी में हड़ताल करनी पड़ी.

कर्मचारियों की 70 प्रतिशत मांगें मानी गईंः दूसरी और अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि कर्मचारियों की 70 प्रतिशत मांगे मान ली गई है. कर्मचारियों की कई मांगे गैर वाजिब हैं, जैसे कि उनकी एक मांग यह है कि बिजली कर्मचारियों के घर में बिना मीटर के बिजली की सप्लाई दी जाए. ऐसी मांगों को मानना संभव नहीं है. हड़ताल तय समय से करीब 6 घंटे पहले खत्म कर दी गई. कोर्ट का कहना था कि सरकार और कर्मचारियों के बीच का क्या मामला है, इससे उन्हें मतलब नहीं है. उनकी चिंता सिर्फ आम आदमी को लेकर हैं. हड़ताल से आम आदमी का जनजीवन अस्त व्यस्त हुआ है, जो कि बेहद ही चिंता का विषय है. छात्रों की परीक्षाएं चल रही है, अस्पतालों में मरीजों को दिक्कतें हुई, ऐसी तमाम परेशानियां इस हड़ताल की वजह से हुई है. याचिका पर पक्ष रख रहे अधिवक्ता विभु राय ने कोर्ट के समक्ष हड़ताल से हुए नुकसान और परेशानियों को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स की प्रतियां प्रस्तुत की. जिन्हें कोर्ट ने रिकॉर्ड पर ले लिया. हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राकेश पांडे ने भी अदालत के समक्ष हड़ताल से हुई दिक्कतों का ब्यौरा प्रस्तुत किया. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में वह उचित आदेश पारित करेंगे.

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