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प्रयागराज: घोड़ों के कदम में सुर-ताल देखने के लिए होती है गहरे बाजी प्रतियोगिता - सावन

प्रयागराज में सावन के सोमवार को हर साल गहरे बाजी की प्रतियोगिता की जाती है. इसमें घोड़े की ताल से निकली ध्वनि का विशेष महत्तव होता है. वहीं गहरे बाजों का कहना है कि इसके लिए स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की ओर से कोड ऑफ कंडक्ट बनाकर इसकी पहचान विदेशों तक कराई जानी चाहिए.

गहरे बाजी प्रतियोगिता
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Published : Aug 13, 2019, 11:19 AM IST

प्रयागराज: घोड़ों की दौड़ प्रतियोगिता में अक्सर हार-जीत का फैसला होता है, लेकिन प्रयागराज में घोड़े की एक ऐसी प्रतियोगिता भी होती है जिसमें न हार होती है न जीत. यहां फैसला इस बात पर होता है कि कौन सा घोड़ा कितने अच्छे सुर ताल से जुड़ा है. जी हां, हम बात कर रहे हैं श्रावण मास में होने वाली गहरे बाजी का. जहां घोड़ा पालने के शौकीन अपनी-अपनी दावेदारी पेश करते हैं कि किसने अपने घोड़े को कितना अच्छे से प्रशिक्षित किया है.

गहरे बाजी प्रतियोगिता के लिए प्रसिद्ध है प्रयागराज.

प्रयागराज में होने वाली गहरे बाजी का वर्षों पुराना नाता है. सम्राट हर्षवर्धन से लेकर मुगलकाल और अंग्रेज भी इस गहरे बाजी के शौकीन रह चुके हैं. जानकारों की माने तो गहरे बाजी का खास आकर्षण सिंध प्रांत के घोड़ों के कदम से पड़ा सुर ताल होता है. सिंध प्रांत के घोड़ों की एक अलग ही पहचान होती है. प्रतियोगिता में भाग लेने वाले घोड़ों का साल भर बच्चों की तरह पालन किया जाता है. उनके लिए खास तरह के ट्रेनर रखे जाते हैं, जो इन घोड़ों के पैरों की चाल निर्धारित करते हैं.

गहरे बाजी की इस प्रतियोगिता में घोड़ों की चार तरह की चाल शामिल होती है. पहली चाल को सिंधी माधुरी चाल कही जाती है, जो घोड़ों की सर्वश्रेष्ठ चाल है. दूसरी चाल घोड़े की चौटाला चाल है, जिसे घोड़े अपने पैर को जमीन पर चोट मारते हुए चलते हैं. तीसरी चाल धूल की चाल है, जिसमें घोड़ों के पैर ढोल बजाने जैसा सुर निकालते हैं और अंतिम घसीटा चाल है, जिसे आमतौर पर फाउल माना जाता है.

प्रयागराज की इस ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर को सहेजे गहरे बाज इस समय प्रशासन की उदासीनता के शिकार हैं. इसकी प्रतियोगिता के लिए प्रयागराज में कोई निश्चित स्थान नहीं है, जहां ये लोग इसका प्रदर्शन कर सकें. प्रयागराज के आसपास के जिलों से आने वाले लोगों को इसके चलते मन मार के लौटना पड़ता है. ट्रैफिक डायवर्जन न होना और यातायात का चालू रहना इसमें बड़ी बाधा है.

इसे भी पढ़ें- सपेरा जाति लड़ रही अस्तित्व की लड़ाई, वाइल्ड एक्ट 1952 को भी खत्म करने की मांग

गहरे बाजों की मांग है कि इसके लिए एक अलग स्थान तय किया जाए, जहां पर इनके गुणों का प्रदर्शन किया जा सके. साथ ही साथ प्रयागराज की इस प्राचीन धरोहर को स्पोर्ट्स अथॉरिटी आफ इंडिया का कोड ऑफ कंडक्ट बनाएं और इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन के लिए प्रतियोगिताएं कराई जाएं. इसे एशियाड गेम में भी शामिल करें, जिससे इसकी पहचान विदेशों तक हो सके. इन सब मुश्किलों के बावजूद गहरे बाज हर साल सावन के सोमवार को अपना प्रदर्शन करते हैं, जिसे देखने के लिए लोग वर्षों तक इंतजार करते रहते हैं.

प्रयागराज: घोड़ों की दौड़ प्रतियोगिता में अक्सर हार-जीत का फैसला होता है, लेकिन प्रयागराज में घोड़े की एक ऐसी प्रतियोगिता भी होती है जिसमें न हार होती है न जीत. यहां फैसला इस बात पर होता है कि कौन सा घोड़ा कितने अच्छे सुर ताल से जुड़ा है. जी हां, हम बात कर रहे हैं श्रावण मास में होने वाली गहरे बाजी का. जहां घोड़ा पालने के शौकीन अपनी-अपनी दावेदारी पेश करते हैं कि किसने अपने घोड़े को कितना अच्छे से प्रशिक्षित किया है.

गहरे बाजी प्रतियोगिता के लिए प्रसिद्ध है प्रयागराज.

प्रयागराज में होने वाली गहरे बाजी का वर्षों पुराना नाता है. सम्राट हर्षवर्धन से लेकर मुगलकाल और अंग्रेज भी इस गहरे बाजी के शौकीन रह चुके हैं. जानकारों की माने तो गहरे बाजी का खास आकर्षण सिंध प्रांत के घोड़ों के कदम से पड़ा सुर ताल होता है. सिंध प्रांत के घोड़ों की एक अलग ही पहचान होती है. प्रतियोगिता में भाग लेने वाले घोड़ों का साल भर बच्चों की तरह पालन किया जाता है. उनके लिए खास तरह के ट्रेनर रखे जाते हैं, जो इन घोड़ों के पैरों की चाल निर्धारित करते हैं.

गहरे बाजी की इस प्रतियोगिता में घोड़ों की चार तरह की चाल शामिल होती है. पहली चाल को सिंधी माधुरी चाल कही जाती है, जो घोड़ों की सर्वश्रेष्ठ चाल है. दूसरी चाल घोड़े की चौटाला चाल है, जिसे घोड़े अपने पैर को जमीन पर चोट मारते हुए चलते हैं. तीसरी चाल धूल की चाल है, जिसमें घोड़ों के पैर ढोल बजाने जैसा सुर निकालते हैं और अंतिम घसीटा चाल है, जिसे आमतौर पर फाउल माना जाता है.

प्रयागराज की इस ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर को सहेजे गहरे बाज इस समय प्रशासन की उदासीनता के शिकार हैं. इसकी प्रतियोगिता के लिए प्रयागराज में कोई निश्चित स्थान नहीं है, जहां ये लोग इसका प्रदर्शन कर सकें. प्रयागराज के आसपास के जिलों से आने वाले लोगों को इसके चलते मन मार के लौटना पड़ता है. ट्रैफिक डायवर्जन न होना और यातायात का चालू रहना इसमें बड़ी बाधा है.

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गहरे बाजों की मांग है कि इसके लिए एक अलग स्थान तय किया जाए, जहां पर इनके गुणों का प्रदर्शन किया जा सके. साथ ही साथ प्रयागराज की इस प्राचीन धरोहर को स्पोर्ट्स अथॉरिटी आफ इंडिया का कोड ऑफ कंडक्ट बनाएं और इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन के लिए प्रतियोगिताएं कराई जाएं. इसे एशियाड गेम में भी शामिल करें, जिससे इसकी पहचान विदेशों तक हो सके. इन सब मुश्किलों के बावजूद गहरे बाज हर साल सावन के सोमवार को अपना प्रदर्शन करते हैं, जिसे देखने के लिए लोग वर्षों तक इंतजार करते रहते हैं.

Intro:घोड़ो की होने वाली दौड़ प्रतियोगिता में फैसला हार जीत का होता है लेकिन प्रयागराज में एक ऐसी घोड़े की दौड़ होती है जहां पर प्रतियोगिता में न तो हार होती है ना जीत होती है फैसला इस बात पर होता है कि कौन सा घोड़ा कितने अच्छे सुर ताल से जुड़ा है जी हम बात कर रहे हैं प्रयागराज में श्रावण मास में होने वाली गहरे बाजी का। जहां पर घोड़ा पालने के शौकीन अपनी अपनी दावेदारी पेश करते हैं कि कौन कितना अच्छा अपने होली को प्रशिक्षित किया है।


Body:वर्षों पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी जीवित है श्रावण मास के सोमवार किसान प्रयागराज वासियों को इस गहरे बाजी को देखने का इंतजार रहता है। प्रयागराज में होने वाली यह गहरे भाजी का नाता वर्षों पुराना है सम्राट हर्षवर्धन से लेकर मुगल काल और अंग्रेज इस गहरे बाजी के शौकीन रह चुके हैं जानकारों की माने तो गहरा बाजी के लिए प्रयागराज में एक समय आसपास के जिलों से लोग जुटते थे। यहां पर होने वाली गहरे बाजी का खास आकर्षण सिंध प्रांत के घोड़ों के संत कुमार विचार होता है जिनके कदम सुर ताल से पड़ते है। जानकारों की माने तो प्रयागराज की यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर घोड़ों के चाल किस शास्त्रीय परंपरा के रूप में जानी जाती है जिसे देखने को गहरे बाजी कहते हैं सिंध प्रांत के घोड़ों की एक अलग ही पहचान होती है देखने में सुडौल और लंबे किसी को भी मोह लेते हैं इसमें भाग लेने वाले घोड़ों को साल भर बच्चों की तरह पालन किया जाता है उसके लिए खास तरह के ट्रेनर रखे जाते हैं जो इन घोड़ों के पैरों पर अंकल बांधते हैं और उसके माध्यम से घोड़ों को वर्ष भर चला कर उसके चाल का निर्धारण करते हैं तब यहां पर सावन के सोमवार पर इस गहरे बाजी का प्रदर्शन किया जाता है खास बात यह है कि गहरे बाजी में होने वाले इस प्रदर्शन में घोड़ों की चार तरह की चाल शामिल है। पहली चाल को सिंधी माधुरी चाल कहा जाता है जो घोड़ों की सर्वश्रेष्ठ चाल है इस साल में शास्त्रीय संगीत की तरह सुरताल से घोड़ा अपने कदम को रखता है दूसरी चाल घोड़े की चौटाला चाल है जिसे घोड़े अपने पैर को जमीन पर चोट मारते हुए चलते हैं और तीसरी चाल धूल की चाल है जिसमें घोड़ों के पैर ढोल बजाने जैसा सुर निकालते हैं और अंतिम घसीटा चाल है जिसे आमतौर पर फाउल माना जाता है और घसीटा 4 चलने वाला घोड़ा इस रेस से बाहर हो जाता है इन सभी चालू में जो खास बात ध्यान देने योग्य होती है वह यह कि घोड़ा को चलते समय अपने सर को ऊपर रखना होता है अगर घोड़े का सर नीचे झुका है तोह घोड़ा फेल हो जाता है।


Conclusion:प्रयागराज की इस ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर को सहेजें गहरे राज इस समय प्रशासन की उदासीनता के शिकार हैं कारण इस इस तरह के प्रदर्शन के लिए प्रयागराज में कोई निश्चित स्थान नहीं है जहां पर लोग जाकर इसका प्रदर्शन कर सकें प्रयागराज के आसपास के जिलों से आने वाले लोगों को इसके चलते मन मार के लौटना पड़ता है ट्रैफिक डायवर्जन ना होना और यातायात का चालू रहना इसमें बड़ी बाधा है इनकी मांग है कि इसे एक अलग स्थान तय किया जाए जहां पर इन गुणों का प्रदर्शन किया जा सके साथ ही साथ गहरे बाजो का यह भी कहना है कि प्रयागराज की इस प्राचीन धरोहर को स्पोर्ट्स अथॉरिटी आफ इंडिया इस गहरे बाजी का कोड आफ कंडक्ट बनाएं और इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन के लिए प्रतियोगिताएं कराई इसके बाद इसे एशियाड गेम में शामिल करें जिससे इसकी पहचान विदेशों तक हो सके इन सब मुश्किलों के बावजूद गहरे बाद हर वर्ष सावन के सोमवार को अपना प्रदर्शन करते हैं जिसको देखने के लिए लोग वर्षों तक इंतजार करते रहते हैं।

बाईट: बब्बन घोड़ा पालक
बाईट: अभय अवस्थी गहरेबाजी के जानकार

प्रवीण मिश्र
प्रयागराज।
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