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ज्येष्ठ माह का पहला सोम प्रदोष व्रत आज, जानिए पूजा विधि

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Published : Jun 7, 2021, 4:15 AM IST

आज ज्येष्ठ माह का पहला सोम प्रदोष व्रत है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवी-देवता उनकी स्तुति करते हैं.

ज्येष्ठ माह का पहला सोम प्रदोष व्रत आज
ज्येष्ठ माह का पहला सोम प्रदोष व्रत आज

प्रयागराज: हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है. प्रदोष व्रत हर माह की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है यानी हर महीने दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं. इनमें सोम प्रदोष का बहुत महत्व है. कल्याणी देवी मंदिर के पुजारी पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला ने बताया कि सोमवार को ज्येष्ठ माह का पहला सोम प्रदोष व्रत है. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवी-देवता उनकी स्तुति करते हैं. पंडित के अनुसार भगवान शिव को समर्पित इस व्रत को करने से मोक्ष और भोग की प्राप्ति होती है. इस बार यह शुभ तिथि 7 जून को है.

सोम प्रदोष व्रत आज

पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला के अनुसार 7 जून को भक्त विशेषकर स्त्रियां सोम प्रदोष व्रत रखेंगी. प्रदोष का तात्पर्य है रात का शुभारम्भ. इसी बेला में पूजन होने के कारण प्रदोष नाम से विख्यात है. प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी को होने वाला यह व्रत संतान कामना प्रधान है. इस व्रत के मुख्य देवता आशुतोष भगवान शंकर माने जाते हैं.

भक्त शाम को भगवान शिव की करें पूजा

प्रदोष व्रत रखने वालों को शाम को भगवान शिव की पूजा करके अल्प आहार लेना चाहिए. कृष्ण पक्ष का शनि प्रदोष विशेष पुण्यदानी होता है. शंकर भगवान का दिन सोमवार होने के कारण इस दिन पड़ने वाला प्रदोष सोम प्रदोष कहा जाता है. सावन मास का प्रत्येक सोम प्रदोष विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है.

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष काल उस समय को कहते हैं जो सायंकाल अर्थात दिन अस्त होने बाद और रात होने से पहले का समय प्रदोष समय कहलाता है. इसे गोधूली वेला कहा जाता है. पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला के अनुसार सोम प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4.30 बजे से लेकर शाम 7 बजे के बीच कर सकते हैं. सोम प्रदोष व्रत की पूजा करने वाले भक्त इस समय में ही भगवान् शिव की पूजा अर्चना कर सकता है.
यह पूर्ण रूप से निराहार किया जाता है. व्रत के दौरान फलाहार भी निषेध है. सुबह स्नान कर भगवान शंकर को बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप आदि चढ़ाएं और पूजा करें. मन में व्रत रखने का संकल्प लें. शाम को एक बार फिर स्नान कर भोलेनाथ की पूजा करें और दीप जलाएं. शाम को प्रदोष व्रत कथा सुनें.

प्रयागराज: हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है. प्रदोष व्रत हर माह की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है यानी हर महीने दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं. इनमें सोम प्रदोष का बहुत महत्व है. कल्याणी देवी मंदिर के पुजारी पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला ने बताया कि सोमवार को ज्येष्ठ माह का पहला सोम प्रदोष व्रत है. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवी-देवता उनकी स्तुति करते हैं. पंडित के अनुसार भगवान शिव को समर्पित इस व्रत को करने से मोक्ष और भोग की प्राप्ति होती है. इस बार यह शुभ तिथि 7 जून को है.

सोम प्रदोष व्रत आज

पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला के अनुसार 7 जून को भक्त विशेषकर स्त्रियां सोम प्रदोष व्रत रखेंगी. प्रदोष का तात्पर्य है रात का शुभारम्भ. इसी बेला में पूजन होने के कारण प्रदोष नाम से विख्यात है. प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी को होने वाला यह व्रत संतान कामना प्रधान है. इस व्रत के मुख्य देवता आशुतोष भगवान शंकर माने जाते हैं.

भक्त शाम को भगवान शिव की करें पूजा

प्रदोष व्रत रखने वालों को शाम को भगवान शिव की पूजा करके अल्प आहार लेना चाहिए. कृष्ण पक्ष का शनि प्रदोष विशेष पुण्यदानी होता है. शंकर भगवान का दिन सोमवार होने के कारण इस दिन पड़ने वाला प्रदोष सोम प्रदोष कहा जाता है. सावन मास का प्रत्येक सोम प्रदोष विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है.

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष काल उस समय को कहते हैं जो सायंकाल अर्थात दिन अस्त होने बाद और रात होने से पहले का समय प्रदोष समय कहलाता है. इसे गोधूली वेला कहा जाता है. पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला के अनुसार सोम प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4.30 बजे से लेकर शाम 7 बजे के बीच कर सकते हैं. सोम प्रदोष व्रत की पूजा करने वाले भक्त इस समय में ही भगवान् शिव की पूजा अर्चना कर सकता है.
यह पूर्ण रूप से निराहार किया जाता है. व्रत के दौरान फलाहार भी निषेध है. सुबह स्नान कर भगवान शंकर को बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप आदि चढ़ाएं और पूजा करें. मन में व्रत रखने का संकल्प लें. शाम को एक बार फिर स्नान कर भोलेनाथ की पूजा करें और दीप जलाएं. शाम को प्रदोष व्रत कथा सुनें.

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