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नवरात्रि का आठवां दिन आज, महागौरी के पूजन से होगी अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति

नवरात्रि(Navratri) के आठवें दिन माता के आठवें स्वरूप यानि महागौरी(Maa Mahagauri) की पूजा की जाती है. इस दिन मां की पूजा के बाद कन्या पूजन का विधान है.

महागौरी की पूजा
महागौरी की पूजा
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Published : Oct 13, 2021, 7:43 AM IST

प्रयागराज: शारदीय नवरात्रि(Navratri) का आज आठवां दिन है. आज के दिन माता के महागौरी(Maa Mahagauri) स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है. महागौरी की पूजा को अत्यंत कल्याणकारी और मंगलकारी माना जाता है. मान्यता है कि अगर कोई भक्त सच्चे मन से मां महागौरी(Maa Mahagauri) की पूजा-अर्चना करता है, तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्तों को अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं. अष्टमी के दिन माता गौरी की पूजा के पश्चात कन्या पूजन किया जाता है. इसमें नौ कन्याओं को बुलाकर इन्हें माता रानी का नव स्वरूप मानते हुए इनकी पूजा की जाती है.

जानकारी देतीं ज्योतिषाचार्य, पंडित शिप्रा सचदेव


मां महगौरी, मां दुर्गा का आठवां स्वरूप है. इन्हें आठवीं शक्ति कहा जाता है. महागौरी हीं शक्ति मानी गई हैं. पुराणों के अनुसार, इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाशमान है. दुर्गा सप्तशती के अनुसार, शुंभ निशुंभ से पराजित होने के बाद देवताओं ने गंगा नदी के तट पर देवी महागौरी से ही अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की थी. मां के इस रूप के पूजन से शारीरिक क्षमता का विकास होने के साथ मानसिक शांति भी बढ़ती है.

माता का स्वरूप
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां महागौरी का अत्यंत गौर यानि सफेद वर्ण हैं, इसीलिए उन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा जाता हैं. माता महागौरी की चार भुजाएं हैं, जिनमें ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल होता है. मां अपने ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू धारण करती हैं और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में होता है. मां महागौरी का वाहन वृषभ है, इसी कारण माता को वृषारूढ़ा भी कहा जाता है. मां की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है.

महागौरी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अपने पूर्व जन्म में कठोर तपस्या की थी तथा शिव जी को पति स्वरूप प्राप्त किया था. शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां ने जब कठोर तपस्या की थी तब मां गौरी का शरीर धूल मिट्टी से ढंककर मलिन यानि काला हो गया था. इसके बाद शंकर जी ने गंगाजल से मां का शरीर धोया था. तब गौरी जी का शरीर गौर व दैदीप्यमान हो गया. तब ये देवी महागौरी के नाम से विख्यात हुईं.


मां महागौरी की पूजा विधि
प्रात: काल उठकर स्नानादि कर साफ वस्त्र धारण कर लें. इसके बाद एक लकड़ी की चौकी लें और उस पर प्रतिमा या चित्र स्‍थापित करें. उन्हें फूल चढ़ाएं और मां का ध्यान करें. फिर मां के समक्ष दीप जलाएं. फिर मां को फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें. मां को नारियल अधिक प्रिय है अत: नारियल चढ़ाएं इसके बाद मां की आरती करें और मंत्रों का जाप करें. इस दिन कन्या पूजन किया जाता है.

कन्या पूजन विधि

कन्‍या पूजन के लिए आने वाली कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं. इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से या साफ जल से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से कन्यायों के पैर धोएं. इसके बाद पैर छूकर आशीष लें. इसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाएं. फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं. भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्‍य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पैर छूकर आशीष लें. कन्या पूजन के लिए हलवा पूड़ी और चने प्रसाद के रूप में बनाया जाता है.

कन्या पूजन का महत्व

मान्यता के अनुसार नवरात्रि में कन्या पूजन से प्रसन्न होकर माता रानी दुख और दरिद्रता दूर करती हैं. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति के रूप में मानी जाती है. त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्‍य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है. चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है. इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है. जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है. रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है. छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

इसे भी पढ़ें-shardiya navratri 2021: महाअष्टमी पर करें ये सरल उपाय, हर काम में मिलेगी सफलता

प्रयागराज: शारदीय नवरात्रि(Navratri) का आज आठवां दिन है. आज के दिन माता के महागौरी(Maa Mahagauri) स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है. महागौरी की पूजा को अत्यंत कल्याणकारी और मंगलकारी माना जाता है. मान्यता है कि अगर कोई भक्त सच्चे मन से मां महागौरी(Maa Mahagauri) की पूजा-अर्चना करता है, तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्तों को अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं. अष्टमी के दिन माता गौरी की पूजा के पश्चात कन्या पूजन किया जाता है. इसमें नौ कन्याओं को बुलाकर इन्हें माता रानी का नव स्वरूप मानते हुए इनकी पूजा की जाती है.

जानकारी देतीं ज्योतिषाचार्य, पंडित शिप्रा सचदेव


मां महगौरी, मां दुर्गा का आठवां स्वरूप है. इन्हें आठवीं शक्ति कहा जाता है. महागौरी हीं शक्ति मानी गई हैं. पुराणों के अनुसार, इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाशमान है. दुर्गा सप्तशती के अनुसार, शुंभ निशुंभ से पराजित होने के बाद देवताओं ने गंगा नदी के तट पर देवी महागौरी से ही अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की थी. मां के इस रूप के पूजन से शारीरिक क्षमता का विकास होने के साथ मानसिक शांति भी बढ़ती है.

माता का स्वरूप
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां महागौरी का अत्यंत गौर यानि सफेद वर्ण हैं, इसीलिए उन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा जाता हैं. माता महागौरी की चार भुजाएं हैं, जिनमें ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल होता है. मां अपने ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू धारण करती हैं और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में होता है. मां महागौरी का वाहन वृषभ है, इसी कारण माता को वृषारूढ़ा भी कहा जाता है. मां की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है.

महागौरी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अपने पूर्व जन्म में कठोर तपस्या की थी तथा शिव जी को पति स्वरूप प्राप्त किया था. शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां ने जब कठोर तपस्या की थी तब मां गौरी का शरीर धूल मिट्टी से ढंककर मलिन यानि काला हो गया था. इसके बाद शंकर जी ने गंगाजल से मां का शरीर धोया था. तब गौरी जी का शरीर गौर व दैदीप्यमान हो गया. तब ये देवी महागौरी के नाम से विख्यात हुईं.


मां महागौरी की पूजा विधि
प्रात: काल उठकर स्नानादि कर साफ वस्त्र धारण कर लें. इसके बाद एक लकड़ी की चौकी लें और उस पर प्रतिमा या चित्र स्‍थापित करें. उन्हें फूल चढ़ाएं और मां का ध्यान करें. फिर मां के समक्ष दीप जलाएं. फिर मां को फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें. मां को नारियल अधिक प्रिय है अत: नारियल चढ़ाएं इसके बाद मां की आरती करें और मंत्रों का जाप करें. इस दिन कन्या पूजन किया जाता है.

कन्या पूजन विधि

कन्‍या पूजन के लिए आने वाली कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं. इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से या साफ जल से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से कन्यायों के पैर धोएं. इसके बाद पैर छूकर आशीष लें. इसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाएं. फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं. भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्‍य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पैर छूकर आशीष लें. कन्या पूजन के लिए हलवा पूड़ी और चने प्रसाद के रूप में बनाया जाता है.

कन्या पूजन का महत्व

मान्यता के अनुसार नवरात्रि में कन्या पूजन से प्रसन्न होकर माता रानी दुख और दरिद्रता दूर करती हैं. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति के रूप में मानी जाती है. त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्‍य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है. चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है. इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है. जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है. रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है. छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

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