प्रयागराज: सदी के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन माघ मेले का आगाज 14 जनवरी को मकर संक्रांति स्नान पर्व के साथ शुरू हो चुका है. ऐसे में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन का स्थल संगम तट पर एक नया शहर बस चुका है. मध्य प्रदेश से आए श्रद्धालु अमर बहादुर वैसे तो यहां आस्था की डुबकी लगाने आए थे, लेकिन अब धर्म प्रचार में जुट गए हैं. इस कार्य में अमर बहादुर के साथ युवा भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं और आस्था के रंग बिखेर रहे हैं.
विश्व में आस्था और श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र माने जाने वाला माघ मेला संगमनगरी में अब पूरी तरह से बस चुका है. इस मेले को देखने के लिए शहर से ही नहीं, बल्कि दूर-दराज से लोग आना शुरू कर दिए हैं. मेले में एक ओर बाबाओं के रंग अलग हैं, लेकिन कुछ रंग ऐसे हैं जो धर्म का प्रचार भी घूम-घूमकर कर रहे हैं. ऐसे ही मध्य प्रदेश से आए अमर बहादुर है, जिन्होंने 2002 कुंभ में संगम में आस्था की डुबकी लगाई थी. तभी से इनको प्रेरणा मिली कि क्यों न अपने हुनर से धर्म का प्रचार किया जाए. अमर बहादुर का मानना है कि घाट पर खटिया के टीके से कुछ मिलने वाला नहीं है, असली टीका तो धर्म के प्रचार से है.
रामलीला के पात्रों का करते थे मेकअप
अमर बहादुर रामलीला में पात्रों के मेकअप का काम करते थे, लेकिन संगम नगरी आने के बाद इन्होंने सब कुछ छोड़ दिया और यहां आने वाले सभी के चेहरे पर राम नाम का प्रचार करना शुरू कर दिया. किसी के चेहरे पर महाकाल, तो किसी के चेहरे पर राधे-राधे और किसी के चेहरे पर सीताराम लिख रहे हैं. इनका कहना है कि इस भागादौड़ी भरी जिंदगी में धर्म मरता जा रहा है, इसलिए अगर प्रवचन, कीर्तन, भजन के अलावा किसी के चेहरे पर इन देवताओं का नाम लिखा जाए, तो बिना बोले ये घूम-घूमकर खुद ही धर्म का प्रचार कर देंगे. अमर बहादुर अपने सिर पर तिरंगे झंडे को लगाए हुए हैं. उनका मानना है कि यह तिरंगा झंडा उनके भारतीय होने का संदेश देता है. अमर बहादुर की यह सोच धर्म के प्रचार में अवश्य ही कारगार साबित होगी.
चेहरे पर लिखवा रहे देवताओं के नाम
चेहरे पर राम नाम, भोले भंडारी, राधे-राधे का लेप लगाए युवाओं का कहना था कि संगम स्नान के बाद अगर यह लेप चेहरे पर नहीं लगाया, तो मानों स्नान अधूरा सा रह जाता है. माघ मेले में आए युवा जब तक चंदन से देवताओं का नाम अपने चेहरे पर नहीं लिखवाते, तब तक इनका मन नहीं भरता.