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प्रयागराज: दस सालों से बंद है सहकारी कताई मिल, हजारों मजदूर बेरोजगार

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले की इकलौती मऊआइमा सहकारी कताई मिल दस सालों से बंद पड़ी है. करोड़ों की मशीनें धूल फांक रही हैं. सरकार ने अब तक मिल को दोबारा शुरू कराने के लिए कोई भी कदम आगे नहीं बढ़ाया है.

सालों से बंद है सहकारी कताई मील.
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Published : Sep 3, 2019, 2:46 PM IST

प्रयागराज: मऊआइमा सहकारी कताई मिल बंद होने से काम करने वाले मजदूर अब दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं. प्रदेश में कई बार सत्ता परिवर्तन हुआ, लेकिन किसी भी पार्टी के मुख्यमंत्री ने कताई मिल को चालू कराने की जरूरत नहीं समझी. जनपद के हजारों बुनकर और मजदूर परेशान हो रहे हैं. दस सालों से बंद इस मिल को दोबारा शुरू कराने की योजनाएं तो कई बार बनीं, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हुआ.

सालों से बंद है सहकारी कताई मिल.
1984 में रखी गई थी आधारशिला
प्रयागराज से प्रतापगढ़ राजमार्ग पर स्थित मऊआइमा सहकारी कताई मिल पिछले 10 सालों से बंद पड़ी है. 1984 में इस मिल की आधारशिला रखी गई थी. 1988 में यह मिल पूरी झमता के अनुरूप चलने लगी. मिल में बनने वाला धागा अन्य राज्यों में सप्लाई किया जाता था, लेकिन लूट खसोट के चलते धीरे-धीरे मिल में उत्पादन कम होने लगा. इसके चलते 10 अगस्त 2010 को मिल में ताला लटक गया और अब तक यह मिल बंद पड़ी है.
लोकसभा से लेकर विधानसभा तक उठीं आवाजें
मऊआइमा सहकारी कताई मिल शुरू कराने का मुद्दा लोकसभा से लेकर विधानसभा तक उठा, लेकिन मिल शुरू नहीं हो सकी. प्रदेश में कई बार सरकार बदली, लेकिन कोई मुख्यमंत्री इस मिल को शुरू कराने की बात नहीं कर रहा है. प्रयागराज के रहने वाले उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम चुनाव प्रचार में कई बार मिल को शुरू कराने की बात तो की, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद मिल का हाल लेने कोई नहीं आता है.

कर्ज में डूबी है मिल
मऊआइमा सहकारी कताई मिल में काम करने वाले मजदूरों का 12 करोड़ रुपये वेतन और बोनस अभी बकाया है. मिल बन्द होने से 1500 मजदूर बेरोजगार हो गए. रूस से खरीदी गई करोड़ों की मशीन कबाड़ हो गई है. मिल की 9 हजार वर्ग गज जमीन को सड़क चौड़ीकरण और ब्रिज निर्माण के लिए बेच दिया गया है.
100 बीघे जमीन में बनी है कताई मिल
मऊआइमा सहकारी कताई मिल सन 1980 में केंद्र और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार में मिल का प्रस्ताव लाया गया. इसके बाद 1981 में प्रदेश के तत्कालीन उद्योग मंत्री मोहम्मद अमीन अंसारी ने मऊआइमा में 100 बीघे जमीन की व्यवस्था कराई. इस क्षेत्र में बुनकरों की संख्या ज्यादा देखते हुए सरकार ने प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी. 50 करोड़ की लागत से मिल 1 जनवरी 1986 में शुरू हो गई. इसके साथ ही मिल में तमाम उन लोगों को रोजगार मिला, जिनकी जमीन अधिग्रहीत की गई थी.

12 हजार किलोग्राम सूत का होता था उत्पादन
मिल के शुरूआत में 12 हजार किलोग्राम सूत का उत्पादन रोज होने लगा था और यह मिल 1990 तक पूरे रफ्तार के साथ मिल चली गई. इसी दौरान मऊआइमा सहकारी कताई मिल यूनियन का गठन हो गया और कर्मचारियों ने बोनस की मांग लेकर पहली हड़ताल की. 1995 में मिल की रफ्तार धीमी हो गयी. फिर इसके बाद 1996 में मिल की कमान आईएएस विजय शंकर पांडेय ने संभाली तो मिल फायदे में पहुंची. यूनियन के गठन होने से आये दिन पैसे को लेकर मिल प्रदर्शन जारी रहा. इसके बाद वर्ष 2000 से यह मामला फिर गड़बड़ाने लगा. 2002 में घाटा लगने पर मिल बन्द हो गई.
मिल के कर्मचारियों ने ले लिया वीआरएस
जब मिल की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा था तो उस समय वर्तमान सरकार ने एक समझौते के तहत दिसम्बर 2003 में मिल को हरियाणा के गोयल एंड सन्स को जॉब वर्क पर चलाने को दे दिया. काम चला फिर कुछ साल बाद 2006 में सरकार ने यूनियन का दबाव पड़ने पर कर्मचारियों को वीआरएस लेने का प्रस्ताव दिया. इस प्रस्ताव में 369 कर्मचारियों ने वीआरएस ले लिया. इसी बीच 2007 में मिल फिर बन्द हो गई.
2 वर्ष तक कलकत्ता की कंपनी ने चलाई मिल
जब इलाहाबाद लोकसभा का चुनाव जीतकर कपिल मुनि करवरिया सांसद बने तो उनके प्रयास से कलकत्ता की एक पार्टी ने दो वर्ष के लिए मिल को चलाने का बीड़ा उठाया. कुछ दिन बाद सरकार ने फिर वीआरएस योजना प्रस्तुत कर दी. उसी समय कर्मचारियों को लगा कि जॉब वर्क के तहत करा रही संस्था उनको पूरा पैसा दे नहीं रही है, ऐसे में वीआरएस ही लेना ठीक है.
चुनाव के समय मिल को किया याद
मिल के कर्मचारियों का कहना है कि जब चुनाव नजदीक आता है तो जनपद के प्रत्याशी मिल को देखने आते हैं और अगल-बगल गांव जाकर मिल शुरू कराने की बात कर के वोट मांगते है. हर बार चुनाव के समय नेताओं ने अपने चुनावी वादों में मिल को शामिल किया, लेकिन किसी ने मिल को शुरू करने लिए दोबारा मुड़ कर नहीं देखा.

प्रयागराज: मऊआइमा सहकारी कताई मिल बंद होने से काम करने वाले मजदूर अब दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं. प्रदेश में कई बार सत्ता परिवर्तन हुआ, लेकिन किसी भी पार्टी के मुख्यमंत्री ने कताई मिल को चालू कराने की जरूरत नहीं समझी. जनपद के हजारों बुनकर और मजदूर परेशान हो रहे हैं. दस सालों से बंद इस मिल को दोबारा शुरू कराने की योजनाएं तो कई बार बनीं, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हुआ.

सालों से बंद है सहकारी कताई मिल.
1984 में रखी गई थी आधारशिला
प्रयागराज से प्रतापगढ़ राजमार्ग पर स्थित मऊआइमा सहकारी कताई मिल पिछले 10 सालों से बंद पड़ी है. 1984 में इस मिल की आधारशिला रखी गई थी. 1988 में यह मिल पूरी झमता के अनुरूप चलने लगी. मिल में बनने वाला धागा अन्य राज्यों में सप्लाई किया जाता था, लेकिन लूट खसोट के चलते धीरे-धीरे मिल में उत्पादन कम होने लगा. इसके चलते 10 अगस्त 2010 को मिल में ताला लटक गया और अब तक यह मिल बंद पड़ी है.
लोकसभा से लेकर विधानसभा तक उठीं आवाजें
मऊआइमा सहकारी कताई मिल शुरू कराने का मुद्दा लोकसभा से लेकर विधानसभा तक उठा, लेकिन मिल शुरू नहीं हो सकी. प्रदेश में कई बार सरकार बदली, लेकिन कोई मुख्यमंत्री इस मिल को शुरू कराने की बात नहीं कर रहा है. प्रयागराज के रहने वाले उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम चुनाव प्रचार में कई बार मिल को शुरू कराने की बात तो की, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद मिल का हाल लेने कोई नहीं आता है.

कर्ज में डूबी है मिल
मऊआइमा सहकारी कताई मिल में काम करने वाले मजदूरों का 12 करोड़ रुपये वेतन और बोनस अभी बकाया है. मिल बन्द होने से 1500 मजदूर बेरोजगार हो गए. रूस से खरीदी गई करोड़ों की मशीन कबाड़ हो गई है. मिल की 9 हजार वर्ग गज जमीन को सड़क चौड़ीकरण और ब्रिज निर्माण के लिए बेच दिया गया है.
100 बीघे जमीन में बनी है कताई मिल
मऊआइमा सहकारी कताई मिल सन 1980 में केंद्र और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार में मिल का प्रस्ताव लाया गया. इसके बाद 1981 में प्रदेश के तत्कालीन उद्योग मंत्री मोहम्मद अमीन अंसारी ने मऊआइमा में 100 बीघे जमीन की व्यवस्था कराई. इस क्षेत्र में बुनकरों की संख्या ज्यादा देखते हुए सरकार ने प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी. 50 करोड़ की लागत से मिल 1 जनवरी 1986 में शुरू हो गई. इसके साथ ही मिल में तमाम उन लोगों को रोजगार मिला, जिनकी जमीन अधिग्रहीत की गई थी.

12 हजार किलोग्राम सूत का होता था उत्पादन
मिल के शुरूआत में 12 हजार किलोग्राम सूत का उत्पादन रोज होने लगा था और यह मिल 1990 तक पूरे रफ्तार के साथ मिल चली गई. इसी दौरान मऊआइमा सहकारी कताई मिल यूनियन का गठन हो गया और कर्मचारियों ने बोनस की मांग लेकर पहली हड़ताल की. 1995 में मिल की रफ्तार धीमी हो गयी. फिर इसके बाद 1996 में मिल की कमान आईएएस विजय शंकर पांडेय ने संभाली तो मिल फायदे में पहुंची. यूनियन के गठन होने से आये दिन पैसे को लेकर मिल प्रदर्शन जारी रहा. इसके बाद वर्ष 2000 से यह मामला फिर गड़बड़ाने लगा. 2002 में घाटा लगने पर मिल बन्द हो गई.
मिल के कर्मचारियों ने ले लिया वीआरएस
जब मिल की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा था तो उस समय वर्तमान सरकार ने एक समझौते के तहत दिसम्बर 2003 में मिल को हरियाणा के गोयल एंड सन्स को जॉब वर्क पर चलाने को दे दिया. काम चला फिर कुछ साल बाद 2006 में सरकार ने यूनियन का दबाव पड़ने पर कर्मचारियों को वीआरएस लेने का प्रस्ताव दिया. इस प्रस्ताव में 369 कर्मचारियों ने वीआरएस ले लिया. इसी बीच 2007 में मिल फिर बन्द हो गई.
2 वर्ष तक कलकत्ता की कंपनी ने चलाई मिल
जब इलाहाबाद लोकसभा का चुनाव जीतकर कपिल मुनि करवरिया सांसद बने तो उनके प्रयास से कलकत्ता की एक पार्टी ने दो वर्ष के लिए मिल को चलाने का बीड़ा उठाया. कुछ दिन बाद सरकार ने फिर वीआरएस योजना प्रस्तुत कर दी. उसी समय कर्मचारियों को लगा कि जॉब वर्क के तहत करा रही संस्था उनको पूरा पैसा दे नहीं रही है, ऐसे में वीआरएस ही लेना ठीक है.
चुनाव के समय मिल को किया याद
मिल के कर्मचारियों का कहना है कि जब चुनाव नजदीक आता है तो जनपद के प्रत्याशी मिल को देखने आते हैं और अगल-बगल गांव जाकर मिल शुरू कराने की बात कर के वोट मांगते है. हर बार चुनाव के समय नेताओं ने अपने चुनावी वादों में मिल को शामिल किया, लेकिन किसी ने मिल को शुरू करने लिए दोबारा मुड़ कर नहीं देखा.

Intro:प्रयागराज: दस सालों से बंद है सहकारी कताई मिल, हजारों मजदूर हुए बेरोजगार

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मऊआइमा सहकारी मिल की स्टोरी

प्रयागराज: जिले का इकलौता मऊआइमा सहकारी कताई मिल दस सालों से बंद पड़ा है. करोंड़ो की मशीनें धूल फांक रही है. सरकार अब तक मिल को दुबारा शुरू कराने के लिए कोई भी कदम आगे नहीं बढ़ा रही है. मिल बंद होने से काम करने वाले मजदूर अब दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं. प्रदेश में कई बार सत्ता परिवर्तन हुआ लेकिन किसी भी पार्टी के मुख्यमंत्री ने कताई मिल को चालू कराने की जरूरत नही समझी. जनपद के हजारों बुनकर और मजदूर परेशान हो रहे हैं. दस सालों से बंद इस मिल को दोबारा शुरू कराने की योजनाएं तो कई बार बनीं, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हुआ. अगर मिल को फिर से चालू किया जाए तो एक हजार से अधिक बेरोजगार श्रमिक व कर्मचारियों के अलावा क्षेत्रीय लोगों को फिर से रोजगार मिल सकेगा.




Body:1984 में रखी गई थी आधार शिला।

प्रयागराज से प्रतापगढ़ राजमार्ग पर स्थित मऊआइमा सहकारी कताई मिल पिछले 10 सालों से बंद पड़ी है. 1984 में इस मिल की आधार शिला रखी गई थी. 1988 में यह मिल पूरी छमता के अनुरूप चलने लगी. मिल में बनने वाला धागा अन्य राज्यो में सप्लाई किया जाता था. लेकिन लूट खसोट के चलते धीरे धीरे मिल में उत्पादन कम होने लगा. जिसके चलते 10 अगस्त 2010 को मिल में ताला लटक गया और अब तक यह मिल बंद पड़ी है.

लोकसभा से लेकर विधानसभा तक उठी आवाजें

मऊआइमा सहकारी कताई मिल सुरु कराने का मुद्दा लोकसभा से लेकर विधान सभा तक उठा लेकिन मिल सुरु नही हो सकी. प्रदेश में कई बार सरकार बदली लेकिन कोई मुख्यमंत्री इस मिल शुरू कराने की बात नहीं कर रहा है. प्रयागराज के रहने वाले उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम चुनाव प्रचार में कई बार मिल को शुरू कराने की बात तो की लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद मिल हाल लेने कोई नहीं आता है. इसके साथ मिल शुरू होने की बात भी ठंडे बस्ते में रह जाता है. प्रयागराज से दो सांसद, दो मंत्री और एक उपमुख्यमंत्री चुने जाने के बावजूद यह सहकारी कताई मिल शुरू नहीं हो सकी है और मिल में रखी करोड़ो की मसीने सड़ रही हैं. 

कर्ज में डूबी है मिल

मऊआइमा सहकारी कताई मिल में काम करने वाले मजदूरों का 12 करोड़ रुपये वेतन और बोनस अभी बकाया है. मिल बन्द होने से 1500 मजदूर बेरोजगार हो गए. रूस से खरीदी गई करोड़ो की मसीन कबाड़ हो गई है. मिल की 9 हजार वर्ग गज जमीन को सड़क चौड़ीकरण और   ब्रिज निर्माण के लिए बेंच दिया गया है.




Conclusion:
100 बीघे जमीन में बनी है कताई मिल

मऊआइमा सहकारी कताई मिल सन 1980 में केंद्र और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार में मिल का प्रस्ताव लाया गया. इसके बाद 1981 में प्रदेश के तत्कालीन उधोग मंत्री मोहम्मद अमीन अंसारी ने मऊआइमा में 100 बीघे जमीन की व्यवस्था कराई. इस क्षेत्र में बुनकरों की संख्या ज्यादा देखते हुए सरकार ने प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी. 50 करोड़ की लागत से मिल 1जनवरी 1986 में शुरू हो गई. इसके साथ ही मिल में तमाम उन लोगों को रोजगार मिल जिनकी जमीन अधिग्रहीत की गई थी.

12 हजार किलोग्राम सूत का होता था उत्पादन

मिल के शुरुआत में 12 हजार किलोग्राम सूत का उत्पादन रोज होने लगा था और यह मिल 1990 तक पूरे रफ्तार के साथ मिल चली गई. इसी दौरान मऊआइमा सहकारी कताई मिल यूनियन का गठन हो गया और कर्मचारियों ने बोनस की मांग लेकर पहली हड़ताल की. 1995 में मिल की रफ्तार धीमी हो गयी. फिर इसके बाद 1996 में मिल की कमान आईएएस विजय शंकर पांडेय ने संभाली तो मिल फायदे में पहुंची. यूनियन के गठन होने से आये दिन पैसे को लेकर मिल प्रदर्शन जारी रहा. इसके बाद वर्ष 2000 से यह मामला फिर गड़बड़ाने लगा. 2002 में घाटा लगने पर मिल बन्द हो गई.

मिल के कर्मचारियों ने ले लिया वीआरएस

जब मिल स्थिति में सुधार नहीं हो पा रही थी तो उस समय वर्तमान सरकार ने एक समझौते के तहत दिसम्बर 2003 में मिल को हरियाणा के गोयल एंड सन्स को जॉब वर्क पर चलाने को दे दिया. काम चला फिर कुछ साल बाद 2006 सरकार ने यूनियन का दबाव पड़ने पर कर्मचारियों को वीआरएस लेने का प्रस्ताव दिया. इस प्रस्ताव में 369 कर्मचारियों ने वीआरएस ले लिया
इसी बीच 2007 में मिल फिर बन्द हो गई.

2 वर्ष तक कलकत्ता की कंपनी ने चलाई मिल

जब इलाहाबाद लोकसभा का चुनाव जीतकर कपिल मुनि करवरिया सांसद बने तो उनके प्रयास से कलकत्ता की एक पार्टी ने दो वर्ष के लिए मिल को चलाने का बीड़ा उठाया. फिर कुछ दिन बाद सरकार ने फिर वीआरएस योजना पस्तुत कर दी. उसी समय कर्मचारियों को लगा जॉब वर्क के तहत करा रही संस्था उनको पूरा पैसा दे नही रही है ऐसे में वीआरएस ही लेना ठीक है, इस बार 947 कर्मचारियों ने वीआरएस ले लिया. इसके बाद 2010 में मऊआइमा मिल में फिर से ताला लग गया.

चुनाव प्रचार में मिल किया जाता है याद

मिल के कर्मचारियों का कहना है कि जब चुनाव नजदीक आता है तो जनपद के प्रत्याशी मिल को देखने आते हैं और अगल-बगल गांव जाकर मिल शुरू कराने की बात कर के वोट मांगते है. हर बार चुनाव के समय नेताओं ने अपने चुनावी वादों में मिल को शामिल किया, लेकिन किसी ने मिल को शरू करने लिए दोबारा मुड़ कर नहीं आया. मिल में करोड़ों की लागत से बनी मशीन और करोंडो के जनरेटर धूल फांक रहे हैं. इसके साथ ही अब मिल के अंदर रखी गई मशीनें अब कंडम हो गई है. अगर इस मिल को शरू कराया जाए तो अलग-बगल गांव से हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा.

बाईट- नंदलाल, मऊआइमा सहकारी मिल कर्मचारी

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